हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के ब्लॉग सेमिनार के विषय में मुझे कुछ भी नहीं मालूम था पर सञ्जीव तिवारी और अरविन्द मिश्र के सौजन्य से मुझे इस कार्यक्रम में जाने का अवसर उपलब्ध हुआ । सौभाग्य से टिकिट भी जल्दी मिल गई और मैं 19/ 09 / 2013 / को मुँबई - हावरा मेल से ए-1 बोगी में 34 नम्बर के बर्थ में बैठकर वर्धा के लिए रवाना हो गई । जैसे ही मै वर्धा पहुँची एक व्यक्ति मेरे पास आया और मेरा झोला उठाने लगा फिर उसने मुझे बताया कि वह हिन्दी विश्वविद्यालय से आया है । मैं गाडी में बैठ गई और गाडी चल पडी हिन्दी विश्वविद्यालय की ओर । रिमझिम -रिमझिम बारिश हो रही थी और मैं पंत की कविता की पंक्तियों को मन ही मन गुनगुना रही थी.....
" पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश ।
मेखलाकार पर्वत अपार अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड ।
अवलोक रहा है बार-बार नीचे जल में निज-महाकार ।
जिसके चरणों में पडा ताल दर्पण सा फैला है विशाल ।"
कुछ ही देर में गाडी " महात्मा गॉंधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय " परिसर पर पहुँच गई और ' नागार्जुन सराय ' में 215 नम्बर का कक्ष मुझे मिल गया ।यह परिसर वैभवशाली एवम् गरिमामण्डित् तो है ही साथ ही उसमें गज़ब का आकर्षण भी है ।छोटे-छोटे पौधे भी बहुत आग्रह-पूर्वक मुझे अपने पास बुला रहे हैं ।मैंने उनसे वादा किया कि मैं तुमसे मिलूँगी जरूर और फिर अपने कमरे में पहुँच गई ।मेरे कमरे की खिडकी के सामने पहाडी का सौन्दर्य , झांक रहा था,उसने मुझसे कहा-" इस कक्ष में तुम्हारा स्वागत है । उसने मुस्कुरा- कर मुझसे कहा- " तुम चाहो तो झट से एक कविता लिख लो, कल-परसों तुम व्यस्त रहोगी बस आज का ही समय है ।" मैंने मुस्कुराकर उसकी बात मान ली और सचमुच एक कविता लिख डाली , जैसे ही कविता पूरी हुई किसी ने मेरा द्वार खटखटाया । मैंने दरवाजा खोला तो सामने ,रचना और सिध्दार्थ खडे थे । उनसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा ।विशेषकर रचना की 'टूटी-फूटी' भाषा में बडी सरलता और अपनापन था ।रात्रि में भोजन के समय तक बहुत से भाई-बन्धु पहुँच चुके थे ।सभी का आत्मीय भरा व्यवहार पाकर ऑंखें भर आईं और मैंने यह अनुभव किया कि यह भी अपना ही परिवार है ।हम एक-दूसरे से इस तरह मिल रहे थे जैसे बरसों से एक-दूसरे को जानते हैं ।
19 और 20 सितम्बर 2013 को हिन्दी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण रॉय के मार्गदर्शन में ," हबीब तनवीर प्रेक्षागृह में , हिंदी ब्लॉग का राष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न हुआ । इस ब्लॉग सेमिनार में अनेक प्रदेशों से पधारे ब्लॉगर्स ने न केवल अपनी उपस्थिति दी अपितु सभी कार्यक्रम में उन्होने अपना योगदान भी दिया । वर्धा में आयोजित इस सेमिनार में कुल सात सत्र थे । सेमिनार की रूपरेखा कुछ इस प्रकार थी ।
एक-उद्घाटन सत्र :- विषय प्रवर्तन , सोशल मीडिया के तीव्र उद्भव के बीच हिन्दी ब्लॉगिंग की प्रास्थिति ।
दो -ब्लॉग, फेसबुक ,ट्विटर की तिकडी, एक -दूसरे के विकल्प या पूरक ? प्रतिद्वन्द्वी या सहयोगी ?
तीन-तकनीकी-सत्र , ब्लॉग बनाने की तकनीक , देवनागरी -यूनीकोड का प्रयोग,इन्स्क्रिप्ट, ट्रान्सलिटरेशन, इनपुट-मेथड आदि ।
चार-सोशल मीडिया और राजनीति :- देश के राजनैतिक परिदृश्य में सोशल मीडिया की भूमिका और इसके विविध आयाम ।
पॉंच-ब्लॉग में हिन्दी साहित्य :- साहित्य के कितने आयामों को छूता है हिन्दी ब्लॉग और इन्टरनेट ?
छः-तकनीकी सत्र :-हिन्दी ब्लॉग व हिन्दी वेवसाइटों के लिए ध्यान रखने योग्य बातें, लोकप्रिय और खोजप्रिय बनाने के नुस्खे । संकलक के आर. एस. एस. प्रारूप व प्रमुख हिस्से ।
सात-खुली चर्चा :- हिन्दी ब्लॉगिंग को सांस्थानिक समर्थन कैसे ? पत्रकारिता और जनसंचार सम्बन्धी पाठ्यक्रमों में सभी स्तरों [डिप्लोमा, डिग्री , एम. फिल., शोध-कार्य ] में हिन्दी ब्लॉगिंग का विषय सम्मिलित होना ।विश्वविद्यालय की वेबसाइट "हिंदी समय " पर एक समर्थ ब्लॉग एग्रीगेटर "चिट्ठा समय " को सक्रिय किया जाना ।
इस सेमिनार में मुझे सबसे ज्यादा मज़ा किसमें आया ,यदि यह बात मैं बता दूँगी तो भाई लोग मेरा उपहास करेंगे और शायद मुझे ऐसे कार्यक्रम में कभी नहीं बुलायेंगे पर मेरा बताने का मन कर रहा है कि मुझे क्या अच्छा लगा । एक- " कुलगीत " जिसे बच्चों ने झूम-झूम कर गाया और जिसकी शब्द-रचना पर मन मुग्ध हो
गया ।दो-सेवाग्राम-भ्रमण । बापू को करीब से जीने का अवसर मिला , मन तृप्त हो गया ।तीन -कवि-गोष्ठी , इसमें सिध्दार्थजी की कविता से ज्यादा उनके कविता सुनाने के अँदाज़ पर मज़ा आया ।चार-सुबह-सुबह पहाडी पर चढने में बहुत मज़ा आया यद्यपि लौटते समय सैंडिल में मिट्टी लग जाने की वजह से उसे हाथ में पकड कर लाना पडा ,पर किसी ने देखा नहीं ।
हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण रॉय ने ,न केवल औपचारिकता-वश अपितु व्यक्तिगत रुचि लेकर इस सेमिनार में अपनी सहभागिता दी । वे अधिकतर समय सेमिनार में ही उपस्थित रहे, इस अवसर पर उनकी श्रीमतीजी का भी आत्मीय -पूर्ण व्यवहार हमें भरपूर मिला ।" जयतु ब्लॉगम् ।"
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
" पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश ।
मेखलाकार पर्वत अपार अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड ।
अवलोक रहा है बार-बार नीचे जल में निज-महाकार ।
जिसके चरणों में पडा ताल दर्पण सा फैला है विशाल ।"
कुछ ही देर में गाडी " महात्मा गॉंधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय " परिसर पर पहुँच गई और ' नागार्जुन सराय ' में 215 नम्बर का कक्ष मुझे मिल गया ।यह परिसर वैभवशाली एवम् गरिमामण्डित् तो है ही साथ ही उसमें गज़ब का आकर्षण भी है ।छोटे-छोटे पौधे भी बहुत आग्रह-पूर्वक मुझे अपने पास बुला रहे हैं ।मैंने उनसे वादा किया कि मैं तुमसे मिलूँगी जरूर और फिर अपने कमरे में पहुँच गई ।मेरे कमरे की खिडकी के सामने पहाडी का सौन्दर्य , झांक रहा था,उसने मुझसे कहा-" इस कक्ष में तुम्हारा स्वागत है । उसने मुस्कुरा- कर मुझसे कहा- " तुम चाहो तो झट से एक कविता लिख लो, कल-परसों तुम व्यस्त रहोगी बस आज का ही समय है ।" मैंने मुस्कुराकर उसकी बात मान ली और सचमुच एक कविता लिख डाली , जैसे ही कविता पूरी हुई किसी ने मेरा द्वार खटखटाया । मैंने दरवाजा खोला तो सामने ,रचना और सिध्दार्थ खडे थे । उनसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा ।विशेषकर रचना की 'टूटी-फूटी' भाषा में बडी सरलता और अपनापन था ।रात्रि में भोजन के समय तक बहुत से भाई-बन्धु पहुँच चुके थे ।सभी का आत्मीय भरा व्यवहार पाकर ऑंखें भर आईं और मैंने यह अनुभव किया कि यह भी अपना ही परिवार है ।हम एक-दूसरे से इस तरह मिल रहे थे जैसे बरसों से एक-दूसरे को जानते हैं ।
एक-उद्घाटन सत्र :- विषय प्रवर्तन , सोशल मीडिया के तीव्र उद्भव के बीच हिन्दी ब्लॉगिंग की प्रास्थिति ।
दो -ब्लॉग, फेसबुक ,ट्विटर की तिकडी, एक -दूसरे के विकल्प या पूरक ? प्रतिद्वन्द्वी या सहयोगी ?
तीन-तकनीकी-सत्र , ब्लॉग बनाने की तकनीक , देवनागरी -यूनीकोड का प्रयोग,इन्स्क्रिप्ट, ट्रान्सलिटरेशन, इनपुट-मेथड आदि ।
चार-सोशल मीडिया और राजनीति :- देश के राजनैतिक परिदृश्य में सोशल मीडिया की भूमिका और इसके विविध आयाम ।
पॉंच-ब्लॉग में हिन्दी साहित्य :- साहित्य के कितने आयामों को छूता है हिन्दी ब्लॉग और इन्टरनेट ?
छः-तकनीकी सत्र :-हिन्दी ब्लॉग व हिन्दी वेवसाइटों के लिए ध्यान रखने योग्य बातें, लोकप्रिय और खोजप्रिय बनाने के नुस्खे । संकलक के आर. एस. एस. प्रारूप व प्रमुख हिस्से ।
सात-खुली चर्चा :- हिन्दी ब्लॉगिंग को सांस्थानिक समर्थन कैसे ? पत्रकारिता और जनसंचार सम्बन्धी पाठ्यक्रमों में सभी स्तरों [डिप्लोमा, डिग्री , एम. फिल., शोध-कार्य ] में हिन्दी ब्लॉगिंग का विषय सम्मिलित होना ।विश्वविद्यालय की वेबसाइट "हिंदी समय " पर एक समर्थ ब्लॉग एग्रीगेटर "चिट्ठा समय " को सक्रिय किया जाना ।
इस सेमिनार में मुझे सबसे ज्यादा मज़ा किसमें आया ,यदि यह बात मैं बता दूँगी तो भाई लोग मेरा उपहास करेंगे और शायद मुझे ऐसे कार्यक्रम में कभी नहीं बुलायेंगे पर मेरा बताने का मन कर रहा है कि मुझे क्या अच्छा लगा । एक- " कुलगीत " जिसे बच्चों ने झूम-झूम कर गाया और जिसकी शब्द-रचना पर मन मुग्ध हो
गया ।दो-सेवाग्राम-भ्रमण । बापू को करीब से जीने का अवसर मिला , मन तृप्त हो गया ।तीन -कवि-गोष्ठी , इसमें सिध्दार्थजी की कविता से ज्यादा उनके कविता सुनाने के अँदाज़ पर मज़ा आया ।चार-सुबह-सुबह पहाडी पर चढने में बहुत मज़ा आया यद्यपि लौटते समय सैंडिल में मिट्टी लग जाने की वजह से उसे हाथ में पकड कर लाना पडा ,पर किसी ने देखा नहीं ।
हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण रॉय ने ,न केवल औपचारिकता-वश अपितु व्यक्तिगत रुचि लेकर इस सेमिनार में अपनी सहभागिता दी । वे अधिकतर समय सेमिनार में ही उपस्थित रहे, इस अवसर पर उनकी श्रीमतीजी का भी आत्मीय -पूर्ण व्यवहार हमें भरपूर मिला ।" जयतु ब्लॉगम् ।"
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
इस गोष्ठी के बहाने आप सबसे मिल कर बड़ा ही आनन्द आया।
ReplyDeleteगोष्ठी के बहाने ही सही सबसे मुलाक़ात तो हो गई ! बधाई ,
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
BADHAAI NONI
ReplyDeleteऔर जो मैंने गला फाड़ा वो ? :-)
ReplyDeleteअरविंद जी, आपने बहुत अच्छा गाया पर रचना तो सोम ठाकुर की थी न ! हमने उन्हें बधाई भेज दी है ।
Deleteसम्मेलन की अवधि 20-21 सितम्बर थी।
ReplyDeleteबहुत रोचक है आपका संस्मरण..बधाई..और आपकी वह कविता कहाँ है..
ReplyDeleteअनिता जी , कवि गोष्ठी में , मैं एक गीत सुनाई थी, जिसका शीर्षक है- "जिंदगी किताब बन गई ।"
Deleteबढ़िया वृत्तांत
ReplyDeleteबढ़िया है। मेरे हिस्से जो खुशिया आयीं उनमें आपका योगदान महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteइस राष्ट्रीय सेमिनार में मैं भी शामिल हुआ था अपने नुक्कड़ ब्लॉग के साथ। पर आपने पोस्ट काव्यमयी रची है और नुक्कड़ में कविता कहीं नहीं है।
ReplyDeleteबढिया है! आपकी कवितायें सुनकर आनन्दित हुये।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार पूरे सेमिनार की रूपरेखा मिली है..
ReplyDeleteएक औपचारिक सम्मलेन की अनौपचारिक आत्मीय पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इसे पढना !
एक औपचारिक रपट
ReplyDeleteब्लागियान के माध्यम से वर्धा "विभूति "के बहुविध दर्शन हुए। परिसर की साहित्यिक गरिमा उसके नामों से भी रूपायित हुई यथा नाम तथा गुण और ब्लागिंग के सभी आयाम मुखरित हुए ब्लागिंग का विस्तृत फलक विस्तार्शील सृष्टि की तरह है साहित्य की सभी विधाओं को समेटे हैं ब्लागिंग।
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण पढ़ने को मिल रहे हैं एक के बाद एक। बधाई सब चिठ्ठा प्रतिनिधियन कू।
बढ़िया रिपोर्ट … हम आपकी २०/९/१३ वाली कविता सुनने से वंचित रह गए
ReplyDeleteअच्छा संस्मरण, अच्छी यादें।
ReplyDeleteतुम्हारे वर्धा ट्रिप की जानकारी पढ़ी बहुत अच्छा लगा
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