पुण्य - पथ के पथिक- पावन ने सुपथ यह ऋतु दिखाई
श्लोक - शाश्वत गुनगुनाती शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
सरित सर के सलिल निर्मल सत्पुरुष के शुभ्र मन सम
कास-कुसुम- चँवर- डुलाते शरद स्वागत में मनोरम ।
वसुधा विमल-जल में नहाई शुभ्र-शुचितर शरद आई ॥
तुहिनकण में मुस्कुराता शशि-किरण का चपल यौवन
काम - शर हैं शस्त्र उसके आखेट ही उसका है धन ।
विनयावनत में है भलाई शुभ्र -शुचितर शरद आई ॥
नील- नभ आतुर धरा पर निज हृदय उत्सर्ग करता
ज्योत्स्ना अगणित धरा पर निछावर पलपल है करता।
मुग्धा - मधुर शरदा सुहाई शुभ्र -शुचितर शरद आई ॥
कुमुद सर - पर है सुशोभित शशी नभ - पर मुस्कुराता
रश्मि उसकी खिलखिलाती बावरा बरबस बनाता ।
समष्टि की शुभ दृष्टि भाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
विविध - वर्णा सुमन - सुन्दर पवन- प्रमदा- प्रेम- पूर्णा
मंद - मदतर डग है भरती सुरभि - संग है भार- दूना ।
प्रीति - पूँजी - परम पाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
ब्रह्म- रव नित - प्रति सुनाती अॅध - उर के तम मिटाती
वेदवत् - आचरण करती साम के वह गीत गाती।
शरद में संस्कृति समाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
सरसिज सुमन से सर सजे हैं कमलकेसर अलि बिछौना
पन्ना - पलंग पर पद्म पौढे सलिल सुख - कर है सलोना।
समता सरोवर में समाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
शकुन्तला शर्मा , भिलाई { छ. ग. }
श्लोक - शाश्वत गुनगुनाती शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
सरित सर के सलिल निर्मल सत्पुरुष के शुभ्र मन सम
कास-कुसुम- चँवर- डुलाते शरद स्वागत में मनोरम ।
वसुधा विमल-जल में नहाई शुभ्र-शुचितर शरद आई ॥
तुहिनकण में मुस्कुराता शशि-किरण का चपल यौवन
काम - शर हैं शस्त्र उसके आखेट ही उसका है धन ।
विनयावनत में है भलाई शुभ्र -शुचितर शरद आई ॥
नील- नभ आतुर धरा पर निज हृदय उत्सर्ग करता
ज्योत्स्ना अगणित धरा पर निछावर पलपल है करता।
मुग्धा - मधुर शरदा सुहाई शुभ्र -शुचितर शरद आई ॥
कुमुद सर - पर है सुशोभित शशी नभ - पर मुस्कुराता
रश्मि उसकी खिलखिलाती बावरा बरबस बनाता ।
समष्टि की शुभ दृष्टि भाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
विविध - वर्णा सुमन - सुन्दर पवन- प्रमदा- प्रेम- पूर्णा
मंद - मदतर डग है भरती सुरभि - संग है भार- दूना ।
प्रीति - पूँजी - परम पाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
ब्रह्म- रव नित - प्रति सुनाती अॅध - उर के तम मिटाती
वेदवत् - आचरण करती साम के वह गीत गाती।
शरद में संस्कृति समाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
सरसिज सुमन से सर सजे हैं कमलकेसर अलि बिछौना
पन्ना - पलंग पर पद्म पौढे सलिल सुख - कर है सलोना।
समता सरोवर में समाई शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥
शकुन्तला शर्मा , भिलाई { छ. ग. }
सुन्दरतम शब्द प्रवाह, शरद की शोभा को उभार गया।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया,सुंदर शब्द सृजन !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
लयबद्ध शब्दों का सौंदर्य अनूठा है !
ReplyDeleteशरद स्वागत गीत पसंद आया , आपकी कलम से निकली हर रचना , हिंदी के लिए उपहार बने , यही कामना है !
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