[ एकांकी ]
पात्र - परिचय
1 - रामलाल - घर का मुखिया उम्र - 50 वर्ष ।
2 - कमला - रामलाल की पत्नी । उम्र - 45 वर्ष ।
3 - पवन - रामलाल का बेटा । उम्र - 25 वर्ष ।
4 - पूजा - पवन की पत्नी । उम्र - 22 वर्ष ।
5 - शोभा - रामलाल की बेटी । उम्र - 21 वर्ष ।
6 - श्याम - पूजा का भाई । उम्र - 24 वर्ष ।
रामलाल - कमला ! तुम बहू को समझा दो कि अब वह नौकरी नहीं करेगी । हमारे घर में बहू - बेटियॉ नौकरी नहीं करतीं । यह बात वह जितनी जल्दी समझ जाए, उतना ही अच्छा है ।
कमला - बहू नौकरी कर रही है, इसमें हर्ज ही क्या है ? अब ज़माना बदल गया है । हमें भी ज़माने के साथ चलना पडेगा, वर्ना हम पीछे रह जायेंगे । जो अन्याय मेरे साथ हुआ , वह अपनी बहू के साथ मैं नहीं होने दूँगी । रामलाल - तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है । हर बात का मतलब उल्टा ही निकालोगी । तुम्हारे भेजे में तो गोबर भरा है ।
कमला - मैं भी तुम्हारे बारे में यही बात कह सकती हूँ । मेरी सज्जनता को मेरी क़मज़ोरी समझने की भूल मत करना ।
रामलाल - हे भगवान ! इस औरत को सद्बुद्धि दे ।
कमला - इसकी ज़्यादा ज़रूरत तुम्हें है ।
[ बहू का प्रवेश ]
पूजा - अम्मॉ ! मैं उनके लिए चाय बना रही हूँ । आप लोगों के लिए बना दूँ क्या ?
कमला - हॉ, बेटा ! बना ले । चाय का टाइम तो हो ही गया है ।
रामलाल - हमारी बहू कितनी समझदार है, देखो हमारा कितना ध्यान रखती है, पर पता नहीं शोभा से कैसा व्यवहार करेगी ? मुझे इस बात की बडी चिन्ता है ।
कमला - मैंने कितनी बार यह बात कही कि हमें सच्चाई बता देनी चाहिए पर तुमने हर बार मना कर दिया । अब मैं क्या करूँ ?
पूजा - लीजिए अम्मॉ ! गरमा - गरम चाय । साथ में आलू - बैगन की पकौडी भी है ।
कमला - बेटा ! चाय पॉच कप क्यों बनाई हो ? हम तो चार ही हैं न !
पूजा - अम्मॉ ! आप शोभा को कैसे भूल सकती हैं ? क्या वह घर पर नहीं है ?
[ रामलाल के हाथ से चाय छलक जाती है पर कमला के हाथ से, चाय का कप गिर जाता है । कप के टूटने की आवाज़ से सभी स्तब्ध हो जाते हैं, सास - ससुर को असहज देखकर, पूजा कहती है -'आप रहने दीजिए अम्मॉ मैं उठा देती हूँ ।' वह कप के टुकडे उठा - कर भीतर चली जाती है ।]
[ पूजा का प्रवेश ]
पूजा - अम्मॉ ! लीजिए, आपकी चाय ।
[ पवन और पूजा पूरे घर को खोज डाले पर शोभा उन्हें कहीं नहीं मिली । थक - हार कर पवन ने अपनी मॉ से पूछा - ]
पवन - अम्मॉ ! शोभा कहॉ है ?
कमला - [ असहज होने का अभिनय करती हुई ] शोभा अपने कमरे में ही है ।
पवन - पर उसके कमरे में तो ताला लगा हुआ है अम्मॉ !
कमला -ये रही चाबी, जा खोल दे ।
[ पवन ने कमरे की चाबी, पूजा के हाथ में देते हुए कहा- " पूजा ! अम्मॉ - बाबूजी शोभा को लॉक करके रखे हैं " तिरस्कार से अपनी माता - पिता को देखते हुए ]
पवन - वह लँगडी है, इसमें उसकी क्या गलती है ? हद कर दिए आप लोग ! अपने ही बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार ? वैसे पूजा ! मैं भी इंजीनियर नहीं हूँ । मैं एम. ए. बी. एड. किया हूँ । शिक्षा - कर्मी वर्ग - एक में बच्चों को हिन्दी पढा रहा हूँ । कभी - कभी मुँह खोलना ज़रूरी होता है अम्मॉ ! इसलिए बोल रहा हूँ । यदि बाबूजी यही बात समझ जाते तो मुझे पूजा के सामने ज़लील होने से बच जाता ।
पात्र - परिचय
1 - रामलाल - घर का मुखिया उम्र - 50 वर्ष ।
2 - कमला - रामलाल की पत्नी । उम्र - 45 वर्ष ।
3 - पवन - रामलाल का बेटा । उम्र - 25 वर्ष ।
4 - पूजा - पवन की पत्नी । उम्र - 22 वर्ष ।
5 - शोभा - रामलाल की बेटी । उम्र - 21 वर्ष ।
6 - श्याम - पूजा का भाई । उम्र - 24 वर्ष ।
प्रथम - दृश्य
[ गॉव का घर । गोबर से लीपा हुआ अंगना । अंगना में चौक । रामलाल अपनी पत्नी को कुछ समझा रहे हैं । च्रहरे पर परेशानी का भाव झलक रहा है । ]रामलाल - कमला ! तुम बहू को समझा दो कि अब वह नौकरी नहीं करेगी । हमारे घर में बहू - बेटियॉ नौकरी नहीं करतीं । यह बात वह जितनी जल्दी समझ जाए, उतना ही अच्छा है ।
कमला - बहू नौकरी कर रही है, इसमें हर्ज ही क्या है ? अब ज़माना बदल गया है । हमें भी ज़माने के साथ चलना पडेगा, वर्ना हम पीछे रह जायेंगे । जो अन्याय मेरे साथ हुआ , वह अपनी बहू के साथ मैं नहीं होने दूँगी । रामलाल - तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है । हर बात का मतलब उल्टा ही निकालोगी । तुम्हारे भेजे में तो गोबर भरा है ।
कमला - मैं भी तुम्हारे बारे में यही बात कह सकती हूँ । मेरी सज्जनता को मेरी क़मज़ोरी समझने की भूल मत करना ।
रामलाल - हे भगवान ! इस औरत को सद्बुद्धि दे ।
कमला - इसकी ज़्यादा ज़रूरत तुम्हें है ।
[ बहू का प्रवेश ]
पूजा - अम्मॉ ! मैं उनके लिए चाय बना रही हूँ । आप लोगों के लिए बना दूँ क्या ?
कमला - हॉ, बेटा ! बना ले । चाय का टाइम तो हो ही गया है ।
रामलाल - हमारी बहू कितनी समझदार है, देखो हमारा कितना ध्यान रखती है, पर पता नहीं शोभा से कैसा व्यवहार करेगी ? मुझे इस बात की बडी चिन्ता है ।
कमला - मैंने कितनी बार यह बात कही कि हमें सच्चाई बता देनी चाहिए पर तुमने हर बार मना कर दिया । अब मैं क्या करूँ ?
पूजा - लीजिए अम्मॉ ! गरमा - गरम चाय । साथ में आलू - बैगन की पकौडी भी है ।
कमला - बेटा ! चाय पॉच कप क्यों बनाई हो ? हम तो चार ही हैं न !
पूजा - अम्मॉ ! आप शोभा को कैसे भूल सकती हैं ? क्या वह घर पर नहीं है ?
[ रामलाल के हाथ से चाय छलक जाती है पर कमला के हाथ से, चाय का कप गिर जाता है । कप के टूटने की आवाज़ से सभी स्तब्ध हो जाते हैं, सास - ससुर को असहज देखकर, पूजा कहती है -'आप रहने दीजिए अम्मॉ मैं उठा देती हूँ ।' वह कप के टुकडे उठा - कर भीतर चली जाती है ।]
[ पूजा का प्रवेश ]
पूजा - अम्मॉ ! लीजिए, आपकी चाय ।
[ पवन और पूजा पूरे घर को खोज डाले पर शोभा उन्हें कहीं नहीं मिली । थक - हार कर पवन ने अपनी मॉ से पूछा - ]
पवन - अम्मॉ ! शोभा कहॉ है ?
कमला - [ असहज होने का अभिनय करती हुई ] शोभा अपने कमरे में ही है ।
पवन - पर उसके कमरे में तो ताला लगा हुआ है अम्मॉ !
कमला -ये रही चाबी, जा खोल दे ।
[ पवन ने कमरे की चाबी, पूजा के हाथ में देते हुए कहा- " पूजा ! अम्मॉ - बाबूजी शोभा को लॉक करके रखे हैं " तिरस्कार से अपनी माता - पिता को देखते हुए ]
पवन - वह लँगडी है, इसमें उसकी क्या गलती है ? हद कर दिए आप लोग ! अपने ही बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार ? वैसे पूजा ! मैं भी इंजीनियर नहीं हूँ । मैं एम. ए. बी. एड. किया हूँ । शिक्षा - कर्मी वर्ग - एक में बच्चों को हिन्दी पढा रहा हूँ । कभी - कभी मुँह खोलना ज़रूरी होता है अम्मॉ ! इसलिए बोल रहा हूँ । यदि बाबूजी यही बात समझ जाते तो मुझे पूजा के सामने ज़लील होने से बच जाता ।
द्वितीय - दृश्य
[ पूजा ने जब कमरे का ताला खोला तो मारे बदबू के, उसे अपनी नाक में साडी का पल्ला रखना पडा और यह क्या ? शोभा तो यहॉ बेहोश पडी है । वह रोती - चिल्लाती अम्मॉ के कमरे की ओर भाग रही है । ]
पूजा - अम्मॉ ! शोभा बेहोश पडी है और उसके मुँह से झाग निकल रहा है ।
[अफरा-तफरी में पवन, वैद्य जी को लेकर आया है । सभी के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें दिखाई दे रही है ।]
वैद्य - चिन्ता की कोई बात नहीं है । थोडी देर में जाग जाएगी । चेहरे पर ठण्डे - पानी का छींटा डालिए । [ पूजा शोभा के चेहरे पर ठण्डा - पानी छिडकती है , शोभा ऑखें मिचमिचाती है ।] शोभा जाग गई है ,उसे नीबू - पानी पिला दीजिए और वह जो खाना चाहे उसे खिला दीजिए । अब मैं चलता हूँ ।
[ पवन, वैद्य जी का बैग पकड - कर उन्हें छोडने जाता है ।]
[ शोभा की यह हालत देख कर पूजा रो - रो कर बेहाल है । उसकी ऑखें सूज गई हैं । वह सपने में भी नहीं सोच सकती कि कोई माता - पिता अपने बच्चे के साथ, ऐसा व्यवहार कर सकता है । वह शोभा का ध्यान इस तरह रखने लगी, जैसे वह उसकी छोटी बहन हो । ननद और भाभी, बतिया रही हैं, आइए हम भी सुनते हैं ।]
शोभा - भाभी । मुझे अम्मॉ - बाबूजी, फटे हुए कपडे की तरह क्यों छिपाते फिरते हैं ? कभी - कभी मैं अपने आप से पूछती हूँ कि यदि मैं लडका होती, तो भी क्या मेरे माता - पिता, मुझे इसी तरह छिपा - कर रखते ? लडकी को कितना अपमानित होना पडता है, भाभी ! उसे उस गलती की सज़ा मिलती है जो उसने कभी की ही नहीं है ।
[ वह पूजा को पकड - कर रोने लगती है ।]
शोभा - आपके सिवाय, मेरा कोई नहीं है भाभी !
पूजा - मत चिन्ता कर । मैं हूँ न !
शोभा - भाभी ! मैं आपसे कुछ मॉगना चाहती हूँ , आप मना तो नहीं करेंगी ?
पूजा - तू मॉग कर तो देख !
शोभा - भाभी ! आपने तो खैरागढ से लोक - गीत में एम. ए. किया है न ? मुझे भी सिखाइये न प्लीज़ !
पूजा - तुम मन लगा - कर सीखोगी तो सिखाऊँगी ।
शोभा - मैं आपसे प्रॉमिज़ करती हूँ , आपको कभी निराश नहीं करूँगी ।
[ हम सब काम करते - करते थक जाते हैं और थक - कर सो जाते हैं पर काल - चक्र कभी नहीं रुकता, वह निरन्तर चलता रहता है । दिन के बाद रात आती है और रात के बाद दिवस आता है और इसी तरह न जाने कितनी बरसात निकल जाती है । पूजा अपनी ननद को लोक - गीत गाना सिखाने लगी और सचमुच पूजा ने भी, पूरे मन से गाना सीखा और अब वह स्टेज़ पर गाने लगी है । आइए हम भी सुनें- वह "भरथरी " गा रही है ।
शोभा -
ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ए ओ मोर नोनी
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर
महतारी अस महतारी अस मोर नोनी sssssssssssssssssssssss।
लइका ल कोख म वोही धरथे भले ही पर - धन ए मोर - नोनी
सब ल मया दिही भले पीरा सइही भले रोही - गाही
ओही डेहरी म ओही डेहरी म मोर - नोनी sssssssssssssssssss।
पारस पथरा ए जस ल बढाथे मइके के ससुरे के मोर नोनी
ओला झन हींनव ग ओला झन मारव ग थोरिक सुन लेवव ग
गोहरावत हे गोहरावत हे मोर - नोनी sssssssssssssssssssssss।
पूजा - तुम बहुत अच्छे से गाई हो शोभा ! पर मैं चाहती हूँ कि तुम फील - करो, इससे तुन्हें मज़ा भी आएगा और गीत में तुम्हारी पकड और मजबूत होगी ।
शोभा - ठीक है भाभी मैं कोशिश करूँगी ।
तृतीय - दृश्य
[ श्याम पूजा का भाई है । वह भाई - दूज में अपनी बहन के घर आया है । पूजा, अपने भाई को तिलक, लगा कर, आरती उतार ही रही थी कि आसपास से "कजरी " गीत का स्वर सुनाई देता है ।]
कजरी
रंगबे - तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।
झंडा- फहराए बर महूँ हर जाहँवँ
उप्पर म टेसू - रंग देबे बरेठिन ।
सादा - सच्चाई बर हावय जरूरी
भुलाबे झन छोंड देबे सादा बरेठिन।
नील रंग म चर्खा कस चक्का बनाबे
नभ ल अमरही - तिरंगा बरेठिन ।
श्याम - पूजा ! यह किसकी आवाज़ है ? वह देश - प्रेम में कजरी गा रही है पर उसकी आवाज़ में दर्द क्यों है ? पूजा बताओ न ! वह कौन है ? क्या तुम उसे जानती हो ?
पूजा - है एक लडकी, तुम्हें क्या इंटरेस्ट है ?
श्याम - पूजा ! मैं उसके गायन का मुरीद हो गया हूँ । उसके लिए कुछ भी कर सकता हूँ ।
पूजा - लूली , लँगडी, अंधी होगी, तब भी क्या तुम --------------------
श्याम - हॉ पूजा हॉ, वह जैसी भी हो, मैं उसे अपनाने के लिए तैयार हूँ ।
[ तभी गीत के आखरी दो पंक्तियों को गुनगुनाती हुई, पूजा का प्रवेश ]
रंगबे - तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।
[ 'कजरी' गाते- गाते शोभा, अपने भाई - भाभी के कमरे में आती है और किसी अजनबी को देख - कर ठिठक जाती है । श्याम और शोभा के बीच कोई बात नहीं होती पर दोनों असहज हो जाते हैं । अरे ! ये दोनों एक - दूसरे से ऑखें क्यों चुरा रहे हैं ? लगता है कि ये दोनों एक - दूसरे के बहुत क़रीब आने वाले हैं । आज पूजा अपनी शिष्या शोभा को " बिहाव - गीत " गाना सिखा रही है क्योंकि देवउठनी एकादशी आने वाली है । कोसला गॉव के गुँडी में " बिहाव - गीत " का कार्यक्रम है । शोभा, बिहाव - गीत गा रही है और पूजा हारमोनियम बजा रही है, पवन ढोलक बजा रहा है और श्याम बॉसुरी बजा रहा है ।]
शोभा -
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव
शुभ - शुभ होही सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।
बॉस - पूजा पहिली मँडवा म होही
उपरोहित ल झट के बलाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ होही सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।
चूल - माटी खनबो परघा के लानबो
थोरिक माटी के मान बढाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ होही सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।
पाणि - ग्रहण के बेरा हर आ गे
सु - आसीन मंगल - गाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ होही सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।
बर - कइना दुनों ल असीस देवव
दायी - बेटा आघू ले आव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ होही सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।
हरियर हे मडवा हरियर हे मनवा
जिनगी ल हरियर बनाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ होही सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।
[ बिहाव - गीत के सम्पन्न होते ही पवन कुछ कह रहे हैं आइए हम भी सुनते हैं । ]
पवन - आज आप सबको साक्षी मान कर मैं श्याम को अपना बहनोई बना रहा हूँ । [ उसने श्याम का तिलक किया और शगुन के रूप में 101 रुपया उसके हाथ में दिया । श्याम ने तुरन्त पवन के पॉव छुए ।] आज मेरी बहन शोभा ने तुलसी - विवाह में " बिहाव - गीत गाया और आज से ठीक तीन दिन बाद, पूर्णिमा के दिन गोधूलि - वेला में मेरी बहन शोभा की शादी है । आप सभी को निमंत्रण है, उसे आशीर्वाद देने ज़रूर आइये ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई मो - 093028 30030