Wednesday 20 November 2013

सूक्त - 116

[ऋषि- अग्नियुत स्थौर । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप ।]

10123
पिबा  सोमं  महत  इन्द्रियाय  पिबा  वृत्राय  हन्तवे  शविष्ठ ।
पिब राये शवसे  हूयमानः पिब  मध्वस्तृपदिन्द्रा वृषस्व॥1॥

हे इन्द्र - देव  हे  बलशाली  यह  सुखद  सोम-रस अर्पित  है ।
तुम हमें अन्न - धन देना प्रभु वह देना जो अभीप्सित है॥1॥

10124
अस्य  पिब  क्षुमतः प्रस्थित्स्येन्द्र  सोमस्य  वरमा सुतस्य ।
स्वस्तिदा  मनसा   मादयस्वार्वाचीनो  रेवते  सौभगाया ॥2॥

हे प्रभु तुम आनंदित होकर यह सुखद सोम स्वीकार करो ।
सबको सुख दो सबको यश दो धन-वैभव का भण्डार भरो॥2॥

10125
ममत्तु  त्वा  दिव्यः  सोम  इन्द्र  ममत्तु  यः  सूयते  पार्थिवेषु ।
ममत्तु  येन  वरिवश्चकर्थ  ममत्तु  येन  निरिणासि  शत्रून् ॥3॥

यह  दिव्य  सोम  सुख  दे  तुमको  मन  में  रहे सदा आनंद ।
श्रेष्ठ - सुखों  के  स्वामी  तुम  हो  न हो कोई भी निरानंद ॥3॥

10126
आ द्विबर्हा अमिनो यात्विन्द्रो वृषा  हरिभ्यां परिषिक्तमन्धः।
गव्या सुतस्य प्रभृतस्य मध्वः सत्रा खेदामरुशहा वृषस्व॥4॥

हे  प्रभु  आवाहन  करते हैं तुम आओ  सोम  ग्रहण  कर लो ।
शहद सदृश यह सोम यहॉं है आकर आहार प्राप्त कर लो ॥4॥

10127
नि तिग्मानि भ्राशयन्भ्राश्यान्यव स्थिरा तनुहि यातुजूनाम्।
उग्राय  ते सहो बलं  ददामि प्रतीत्या शत्रून्विगदेषु  वृश्च ॥5॥

असुरों  का  उध्दार  करो  प्रभु तुम तो सज्जन के रक्षक हो । 
सदा  नीरोग रहें हम भगवन तुम अहंकार के भक्षक हो ॥5॥

10128
व्य1र्य इन्द्र तनुहि  श्रवांस्योजः स्थिरेव धन्वनोSभिमातीः।
अस्मद्रय्ग्वावृधानः   सहोभिरनिभृष्टस्तन्वं   वावृधस्य ॥6॥ 

धन और धान  हमें भी दो  प्रभु सब कुछ रहे  सदा अनुकूल ।
जीवन के हर शिखर छुयें हम भूल से भी न हो कोई भूल॥6॥

10129
इदं   हविर्मघवन्तुभ्यं   रातं   प्रति   सम्राळहृणानो   गृभाय ।
तुभ्यं सुतो मघवन्तुभ्यं पक्वो3ध्दीन्द्र पिब च प्रस्थितस्य॥7॥

हम  आवाहन  करते हैं प्रभु यह हविष्यान्न अर्पित करते हैं ।
तुम प्रेम से ग्रहण करो प्रभुवर बस यही निवेदन करते  हैं ॥7॥

10130
अध्दीदिन्द्र प्रस्थितेमा हवींषि चनो दधिष्व पचतोत सोमम् ।
प्रयस्वन्तःप्रति हर्यामसि त्वा सत्या:सन्तु यजमानस्य कामा:॥8॥

अन्न - सोम  अर्पित है भगवन हम तेरा आवाहन करते हैं ।
मनोकामना  पूरी  करना  करो  अनुग्रह  यह  कहते  हैं ॥8॥

10131
प्रेन्द्राग्निभ्यां सुवचस्यामियर्मि सिन्धाविव प्रेरयं नावमर्कैः।
अयाइव  परि चरन्ति  देवा ये अस्मभ्यं धनदा उद्भिदश्च ॥9॥

हे  सूर्यदेव  हे  अग्निदेव  तुम  धन - वैभव  देते  रहना ।
तुम पूजनीय हो तुम पावन हो सतत हमारी रक्षा करना ॥9॥ 

1 comment:

  1. अन्न - सोम अर्पित है भगवन हम तेरा आवाहन करते हैं ।
    मनोकामना पूरी करना करो अनुग्रह यह कहते हैं ॥8॥

    बहुत सुंदर प्रार्थना !

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