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Tuesday, 8 April 2014

सूक्त - 89

[ऋषि- उशना काव्य । देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8494
प्रो स्य वह्निः पथ्याभिरस्यान्दिवो न  वृष्टिः पवमानो अक्षा: ।
सहस्त्रधारो असदन्न्य1स्मे मातुरुपस्थे वन आ च सोमः॥1॥

जो  प्रभु  पर  आश्रित  होते  हैं  निर्भय  जीवन  वे  जीते  हैं ।
मॉ की गोद सदृश ही सुख-कर प्रभु-प्रसाद को वे पीते  हैं ॥1॥

8495
राजा  सिन्धूनामवसिष्ट  वास  ऋतस्य  नावमारुहद्रजिष्ठाम् ।
अप्सु द्रप्सो वावृधे श्येनजूतो दुह ईं पिता दुह ईं पितुर्जाम्॥2॥

कर्म-योग  सुख  की  नौका  है  करती  है  कर्म-नदी  को पार ।
परमेश्वर  सर्वत्र  व्याप्त  है एक-मात्र  है  वह  मेरा आधार ॥2॥

8496
सिंहं  नसन्त  मध्वो अयासं  हरिमरुषं  दिवो अस्य  पतिम् ।
शूरो युत्सु प्रथमः पृच्छते गा अस्य चक्षसा परि पात्युक्षा॥3॥

वह  पावन  पूजनीय  परमेश्वर  धीर  वीर  को  ही मिलता है ।
परमात्मा आश्रय  देता  है  प्रेम-प्रसून  तभी  खिलता  है ॥3॥

8497
मधुपृष्ठं    घोरमयासमश्वं    रथे    युञ्जन्त्युरुचक्र    ऋष्वम् ।
स्वसार ईं जामयो मर्जयन्ति सनाभयो वाजिनमूर्जयन्ति॥4॥

चित्त - वृत्तियॉ  प्रेरित  करती  परमेश्वर  का  करतीं  हैं ध्यान ।
अनन्त-शक्ति का वह स्वामी है दिव्य-शक्ति का देता दान॥4॥

8498
चतस्त्र   ईं   घृतदुहः   सचन्ते   समाने  अन्तर्धरुणे  निषत्ता: ।
ता ईमर्षन्ति नमसा पुनानास्ता ईं विश्वतःपरि षन्ति पूर्वीः॥5॥

परमेश्वर  का  वैभव  दिखता  वह  वैभव  का  है  आधार ।
पात्रानुरूप  वर्चस  देता  है  उसकी  लीला  अपरम्पार ॥5॥

8499
विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्या विश्वा उत क्षितयो हस्ते अस्य ।
असत्त उत्सो गृणते नियुत्वान्मध्वो अंशुः पवत इन्द्रियाय॥6॥

कर्म-राह  पर  चल-कर  हम  भी अपना अभीष्ट  पा  सकते  हैं ।
जीवन सार्थक कर सकते हैं गुरु-जन  यही  कहा  करते हैं ॥6॥

8500
वन्वन्नवातो  अभि  देववीतिमिन्द्राय  सोम  वृत्रहा  पवस्व ।
शग्धि  महः पुरुश्चन्द्रस्य  रायः सुवीर्यस्य  पतयः स्याम॥7॥

अज्ञान-तमस को  वही  मिटाते  सबको  देते  हैं  धन - धान ।
चारों- बल  हमको  भी  देना  हे  परमेश्वर कृपा - निधान ॥7॥

3 comments:

  1. यही गीता का ज्ञान है...कर्ता और कारक सब वही है...

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  2. गहरे दर्शन से संपोषित संस्कृति के अंग।

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  3. वह पावन पूजनीय परमेश्वर धीर वीर को ही मिलता है ।
    परमात्मा आश्रय देता है प्रेम-प्रसून तभी खिलता है ॥3॥

    भक्तिरस में डूबी पंक्तियाँ..

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