Monday 9 June 2014

सूक्त - 7

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7751
असृगमिन्दवः पथा धर्मन्नृतस्य सुश्रियः। विदाना अस्य योजनम्॥1॥

परमात्मा के सत्य - रूप का ज्ञानी  को  है समुचित - भान ।
सत्-पथ पर वह ही चलता है वैभव का मिलता वरदान ॥1॥

7752
प्र धारा मध्वो अग्रियो महीरपो वि गाहते । हविर्हविष्षु वन्द्यः ॥2॥

परमात्मा  हम  सबको  प्रिय  है  परम - मित्र  है वही हमारा ।
परमानन्द  वही  देता  है  सब  कुछ  मिलता उसके द्वारा ॥2॥

7753
प्र युजो वाचो अग्रियो वृषाव चक्रदद्वने । सद्माभि सत्यो अध्वरः॥3॥

सत् - पथ  पर  तुम  चलो  निरन्तर परमात्मा हमसे कहते  हैं ।
प्रिय - वाणी से प्रवचन करते हम उसकी उपासना करते  हैं ॥3॥

7754
परि यत्काव्या कविर्नृम्णा वसानो अर्षति । स्वर्वाजी सिषासति॥4॥

सर्व - व्याप्त  है  वह  परमात्मा  दिव्य - गुणों का वह स्वामी है ।
कवि - कर्मों का वह अभिलाषी आनन्द - रूप अन्तर्यामी है ॥4॥

7755
पवमानो अभि स्पृधो विशो राजेव सीदति । यदीमृण्वन्ति वेधसः॥5॥

परमात्मा  प्रोत्साहित  करता  कर्म - मार्ग  वह  दिखलाता  है ।
सबको सुख - सन्मति देता है कर्म - धर्म वह सिखलाता है ॥5॥

7756
अव्यो वारे परि प्रियो हरिर्वनेषु सीदति । रेभो वनुष्यते मती ॥6॥

परमात्मा  सबका  प्यारा  है  वह  ही  देता  है  ज्ञान - आलोक ।
प्रभु  साधक - मन  में  रहता  है  वह  हर लेता  है हर शोक ॥6॥

7757
स वायुमिन्द्रमश्विना साकं मदेन गच्छति । रणा यो अस्य धर्मभिः॥7॥

प्रभु - उपासना  करने  वाले  विद्वत् -  जन  उनको  पाते  हैं ।
खट् - रागों से वही बचाते वह मञ्जिल तक पहुँचाते  हैं ॥7॥

7758
आ मित्रावरुणा भगं मध्वः पवन्त ऊर्मयः। विदाना अस्य शक्मभिः॥8॥

जो  परमात्म -  परायण  होते  सब  का  करते  हैं  उपकार । 
वसुधा  है  परिवार  हमारा  हे  प्रभु  कर  दो  बेडा - पार ॥8॥

7759
अस्मभ्यं रोदसी रयिं मध्वो वाजस्य सातये । श्रवो वसूनि सं जितम्॥9॥

परमात्मा  अवढर - दानी  है  सत् - जन  को  देता  वर -  दान ।
वरद - हस्त हम पर भी रखना हे प्रभु दीन - बन्धु भगवान ॥9॥  

3 comments:

  1. सुन्दर सकारात्मक विचार...

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  2. अद्भुत प्रवाहमयी अनुवाद...कुछ व्यस्तताओं की वजह से १ माह से ब्लोग्स पर नहीं आ सका, पुरानी रचनाओं को पढ़ने के लिए फिर आना होगा..आभार

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  3. परमेश्वर सबका प्यारा है सब को देता है ज्ञान - आलोक ।
    साधक के मन में रहता है वह हर लेता है रोग - शोक ॥

    सुंदर भाव

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