Saturday 12 July 2014

तस्मै श्री गुरवे नमः

सुख  से  सना  था  शैशव मेरा चिन्ता से परिचय न था 
वरद-हस्त था बडे-बडों का सुख सपना अतिशय न था।

अँजोरा  भूरी  शैलकुमारी  प्यारी - प्यारी  सखियॉ  थीं 
लडते - मिलते - इठलाते हम फूलझडी की लडियॉ थीं ।

जाने कब यह यौवन आया तितर-बितर कर गया हमें
सखियॉ प्यारी गॉव में रह गईं गॉव छोडना पडा हमें ।

हमें पढाए जो बचपन में गुरु - जन  कितने अच्छे  थे
प्रियाप्रसाद थे  परसराम  थे  तिलकेश्वर भी सच्चे  थे ।

बडे गुरु जी होरी - लाल थे सच - मुच में वे थे गुरुतर
पूरे गॉव में सम्मानित थे थे प्रणम्य वे गुरु घर - घर ।

लालटेन  लेकर  हम  सब  जाते  थे  उनके  घर  पढने 
बडे  प्रेम  से  हमें  पढाते  वह तो आए  थे  हमें   गढने ।

अक्षर-अक्षर हमें पढाया गुरु है सचमुच भाग्य-विधाता
तमस हटा आलोक दिखाया गुरु ही तो है जीवन-दाता ।

छुआ - छुवौवल  रेस -  टीप भी गुरु सँग खेला करते थे
नया गडी और नया दाम के नेम  भी गुरु पर चलते थे ।

कहॉ  भूल  पायेंगे  हम उन खट्टी - मीठी  स्मृतियों  को
कुडिया पोखरी बँधवा अँधरी की खोई -खोई गलियों को ।

पावन - ठौर सिध्द बावा का अब  भी  बसा है इस मन में
गुडी में राम - कृष्ण लीला की मोहक स्मृति है जीवन में ।

ग्राम - देव "कोसला" नमन है तुझ में बसा है मेरा बचपन 
आत्मोन्नति का मार्ग दिखाया जीवन यह कृतज्ञताज्ञापन।


 

4 comments:

  1. बचपन के दिन भी क्या दिन थे..

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  2. गुरुकुल की यादें

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  3. बचपन की सुकोमल स्मृतियाँ !
    कविता में होकर और लुभाएँ !

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  4. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...

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