Thursday 18 September 2014

बेटी

क्यों  घर  में  नौकरानी  सी  पल रही है बेटी
लडकी है लकडी जैसी क्यों जल रही है बेटी ?

संवेदना  कहॉ  है  यह क्या हुआ मनुज को
बेबस सी रात-दिन यूँ क्यों रो रही  है बेटी ?

भर-पेट रोटियॉ भी मिलती कहॉ है उसको
बाज़ार  में  खडी  है  रोटी  के  लिए  बेटी ।

हर  घर  में असुर  बैठा  है नोचने को आतुर
जाए  तो  कहॉ  जाए  यह  सोच  रही  बेटी ।

बेटी को दो सुरक्षा  बेटे  से  कम  नहीं  वह
मॉ-बाप का सहारा खुद  बन  रही  है  बेटी ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो. 09302830030

2 comments:

  1. हाँ विचारणीय

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  2. बेटियों को सुरक्षा मिले..उन्हें आगे बढने का अवसर मिले...

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