Sunday 30 November 2014

विश्व - विकलॉग चेतना दिवस के अवसर पर - राग - भैरवी

छाया बचपन से लँगडी थी
      घर - वाले बोझ  समझते  थे ।
लँगडी क्या स्कूल जाएगी
      यह सोच के घर पर रखते थे ।

छाया का स्वर बहुत मधुर था
       वह  हर  गाना  गा लेती थी ।
प्रतिदिन वह गाना गा-गा कर
        चिडियों को दाना- देती थी ।

उसी गॉव में गायक आया
        राग -  भैरवी  उसने  गाया ।
सब ने उसको खूब सराहा
        पावन प्यार सभी का पाया ।

" मेरे साथ कौन गाएगा
        दो - गाना गाने का मन है ।"
छाया उठी मंच पर पहुँची
         " गाने का मेरा भी मन  है ।"

दोनों ने जब सुर में गाया
        मंत्र -  मुग्ध  था  पूरा गॉव ।
जन-जन भाव विभोर हो गया
      छाया को अब मिला है छॉव ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई   


3 comments:

  1. waah !! हिम्मत होनी चाहिए राह मिल ही जायेगी !!

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  2. बहुत सुंदर...शकुंतला जी, कोई भी यहाँ पूर्ण नहीं, कोई तन से लंगड़ा है कोई मन से...पर हरेक के लिए छाँव है यहाँ

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  3. व्यक्तित्व की खासियत को सही मंच चाहिये...और आत्मविश्वास...

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