Wednesday 1 April 2015

मुझको आज समझ में आया

पटाया - तट - पर  देखा  मैंने  लडकी  मजे  से तैर रही है
जब  मैं  उसके  पास  गई  तो  देखा  वह लडकी लंगडी है ।

बैंकाक  की  वही  जल - परी  पाती  है अनगिन सम्मान
ज़ेन  नाम  है उस - बच्ची  का अभी  हुई  उससे  पहचान ।

जब  मैं  उसके  पास  गई  तब  पास आई  तैरते -  तैरते
दोनों - हाथ  जुडे  थे  उसके  किया  नमस्ते हँसते - हँसते ।

प्रतिदिन तीन- चार घंटे वह स्वीमिंग का करती अभ्यास
ओलम्पिक  में  मैडल  लाना  है  ऐसा है उसको - विश्वास ।

मैं भी सुन  कर दंग रह गई ज़ेन की उमर है सोलह साल
पर कर रही तपस्या ऐसी मन में अनगिन कठिन सवाल ।

ज़ेन  की  जिजीविषा  है  ऐसी  जो  क़मज़ोरी  पर भारी  है
ओलम्पिक  में  जाए  न जाए बहुत है अब तक जो पाई है ।

दया कर रही  थी मैं उस पर उसने मुझे किया विषयान्तर
'यह तो कुछ भी नहीं है ऑटी ' समझाया था ऐसा कहकर ।

तन पर मन पडता है भारी ज़ेन  ने  ही  मुझको समझाया
मन मेरा कितना अतुल्य है मुझको आज समझ में आया । 

1 comment:

  1. तन पर मन पडता है भारी ज़ेन ने ही मुझको समझाया
    मन मेरा कितना अतुल्य है मुझको आज समझ में आया ।
    ...बिलकुल सच...अंतस को छूती बहुत प्रेरक प्रस्तुति...

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