Sunday 13 September 2015

टोनही

                              टोनही                  [ कहानी ]

' रोज सॉझ को दारु पीने के लिए मेरे पास आ जाता है पर अपनी एक लडकी को मेरे यहॉ काम पर लगा दे बोलता हूँ तो मना कर देता है । पढ -लिख कर क्या मास्टरनी बन जाएगी तेरी बेटी ?'
' मेरी घरवाली अपनी बेटियों को आने नहीं देती सेठ ! वरना मैं तो चारों को तुम्हारे यहॉ भेज देता.'
' औरत की इतनी हिम्मत कि वो मर्द की बात को काटे ? सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता बुधराम,उसे टेढी करना पढता है. समझा कि नहीं ? '
' समझ गया सेठ.'
 आज बुधराम जब घर आया तो वह राक्षस बन कर आया । आते ही वह ढेली के ऊपर बरस पडा. गंदी - गंदी गालियॉ देने लगा और ढेली को पीटने लगा. बेटियों ने जाकर छुडाया और चारों बेटियॉ,मॉ के पास ही बैठी रहीं.बारह बरस की निर्मला ने मॉ को बताया कि जब भी वह सम्पत सेठ की दुकान के सामने से गुज़रती है वह उसे आवाज़ देकर बुलाता है कहता है कि-'आ जा ! तुझे चॉकलेट दूँगा ,बिस्किट दूँगा ' पर मैं उधर देखती भी नहीं,  चुपचाप वहॉ से निकल जाती हूँ.' निर्मला की बात सुनकर उसकी बडी दीदी कविता ने उसे समझाया- ' इन जैसे लोगों से हमें बच कर रहना है निर्मला. हमें कभी भी इनकी बातों में नहीं आना है. मन लगा कर पढाई करना है और इस दल-दल से निकलना है. समझी रे मेरी प्यारी बहना ?' निर्मला ने मुस्कुरा कर कहा-' हॉ दीदी.'

ढेली का परिवार भवतरा गॉव में रहता है. उनका छोटा सा घर है. ढेली,चार-पॉच घरों में चौका-बरतन करती है तब कहीं जाकर उनके घर में चूल्हा जलता है और लडकियों की पढाई का खर्च पूरा होता है.उसका पति बुधराम दिन भर सम्पत सेठ का काम करता है और दारु पी कर आ जाता है. घर में कभी एक पैसा नहीं देता. कहता है- 'तू मुझे एक भी सन्तान नहीं दी तो मैं तुझे किसके लिए पैसा दूँ ?'
कविता अभी बारहवीं में पढती है. वह अपने स्कूल में झाडू-पोछा करती है और उसकी मैडम उसे 500 सौ रुपए देती है.कविता हर महीने 400 रुपए बैंक में जमा कर देती है.

ढेली अभी भी इतनी सुन्दर है कि उस पर से निगाहें हटती नहीं.वह बिना सिंगार के सुन्दर दिखती है.उसकी बेटियॉ भी अपनी मॉ जैसी हैं.ऐसा लगता है कि मॉ- बेटियॉ जानती ही नहीं कि वे कितनी सुन्दर हैं कारण उनके घर में दर्पण नहीं है.हर औरत के मन में यह भाव आ ही जाता है कि काश.....
अचानक आज सुबह से ही सरपंच ने ढेली को बुलवाया है. ढेली जब सरपंच के घर पहुँची तो उसकी पडोसन वहीं बैठी थी. ढेली भी उसी के पास जाकर बैठ गई.सरपंच ने कहा-' ढेली! तुम मेरी बात का बुरा मत मानना पर तुम्हारी पडोसन तुम्हारी शिकायत लेकर आई है कि तुमने उसके ऊपर जादू-टोना कर दिया है.'
ढेली की ऑखों में ऑसू आ गए, उसने आश्चर्य से भूरी को देखा तो भूरी चिल्लाने लगी-'सरपंच जी ! देखो इसकी ऑखें,यह ऐसे ही जादू-टोना करती है.'
'अब मैं आपसे क्या कहूँ सरपंच जी ? आप तो मुझे बचपन से जानते हैं' कहते - कहते ढेली ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और रोते-रोते वह बेहोश हो गई.गॉव में छोटा सा अस्पताल था, सरपंच ने ढेली को वहीं भिजवा दिया. ढेली बीच-बीच में बडबडाती थी-' मेरी बेटियों को बचाओ' और फिर बेहोश हो जाती थी. दिन बीत गया, रात बीत गई, ढेली को होश नहीं आया.दुनियॉ सो रही थी पर उसकी जीभ जाग रही थी. आग की तरह आस-पास के गॉवों में यह खबर फैल गई कि ढेली टोनही है. सुबह जब ढेली को होश आया तो उसके सामने पामगढ के इंसपेक्टर खडे थे और ढेली से पूछ रहे थे-'क्या हुआ ढेली ?' ढेली ने कहा - 'मेरी चार बच्चियॉ हैं उनको बचा लीजिए साहब, उनकी जान खतरे में है.' इंसपेक्टर ने तुरन्त वायरलेस से पुलिस-फोर्स को एलर्ट कर दिया, ढेली की चारों बेटियॉ, बिलासपुर रेल्वे-स्टेशन में, मुँबई-हावरा ट्रेन के ए. सी.कोच में मिलीं, उनके साथ सम्पत-सेठ भी मिला जो चेहरा छुपा-कर बैठा हुआ था. पुलिस ने बुधराम को खोजने की कोशिश की- वह सम्पत - सेठ के घर के सामने बेहोश पडा हुआ था.                                                

2 comments:

  1. गरीब होने का दर्द और अपनी इज्ज़त बचाने के लिए संघर्ष को कहानी में बहुत सटीकता से उतारा है...कहानी दिल को छू जाती है...बधाई

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  2. Well written. I support and encourage you
    . Kaushik

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