Sunday 23 August 2015

वचन

                             [ कहानी ]

श्याम और उसके आठ साथी रुक-रुक कर फायरिंग करते रहे, जब पडोसी देश से फायरिंग होती कश्मीर बॉर्डर से हमारे जवान जवाबी फायरिंग करते रहे. अचानक फायरिंग रुकी, हमारे जवान 30- 35 मिनट तक चुपचाप अपनी पोजिशन पर तैनात रहे पर जब घंटा भर हो गया तो इन्होंने सोचा, फायरिंग बन्द हो गई है, चलो हम भी देखते हैं कि आखिर पडोसी की नीयत क्या है ? रोज़-रोज़ फायरिंग करना इसने अपनी आदत बना ली है. जब तक ईंट का जवाब पत्थर से न मिले, उसकी फायरिंग बन्द ही नहीं होती. रिहायशी इलाके में फायरिंग करता है, महिलायें और बच्चे डर जाते हैं, इस तरह आपस में बातें करते जैसे ही सीमा पर जवान उठ कर खडे हुए फिर फायरिंग हुई और इस बार गोली कैप्टन श्याम को लगी. गोली उसके सीने में लगी थी, वह तुरन्त बेहोश हो गया. उसे तुरन्त अस्पताल पहुँचाया गया. उसे दो घंटे बाद होश आ गया, उसके दोस्तों ने उसका मोबाइल उसे पकडाया और बताया-' सुभद्रा का फोन है, ग्यारह मिस्ड-कॉल आ चुके हैं. श्याम ने फोन उठाया तो सुभद्रा ने रुठ कर कहा-' क्या भाई आप मुझसे बात भी नहीं करते हो,राखी आ रही है, भाई ! तुम राखी के दो दिन पहले नहीं आ सकते हो क्या ? अच्छा ये बताओ कि तुम्हारे लिए क्या-क्या बनाऊँ ? तुम्हारे लिए छुहारे की खीर तो बनेगी ही और बताओ क्या बनाऊँ ?'
श्याम ने कहा- ' वो जो तुम मूँगफली डाल कर हलुआ बनाती हो न ! वो ज़रूर बनाना पर सुभद्रा मैं राखी के पहले नहीं आ सकता पर तुम्हें वचन देता हूँ कि मैं राखी के दिन आऊँगा ज़रूर.' श्याम मारे दर्द के कराहने लगा और उसके हाथ से मोबाइल छूट गया. तन के दर्द पर मन का दर्द भारी पड रहा था. डाक्टरों ने तुरन्त श्याम को ऑपरेशन थियेटर में शिफ्ट किया और ऑपरेशन थियेटर का दरवाज़ा बन्द हो गया.

उडीसा के तरापुर गॉव में श्याम का घर है. उसके माता-पिता कपास से कपडा बनाते हैं और उसे रंग कर बाज़ार में बेच देते हैं. यही उनके जीने का जरिया है. उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पढाया- लिखाया और स्वावलम्बी बनाया और अपना बुढापा सुख से गुज़ार रहे हैं. बेटा आर्मी में कैप्टन है और बेटी सुभद्रा स्कूल में इतिहास की व्याख्याता है. सुभद्रा ने राखी की ज़ोरदार तैयारी कर ली है. उसने कटक जाकर, राखी में पहनने के लिए पीले रंग की रेशमी साडी खरीदी है. उसकी सभी सहेलियॉ भी श्याम को राखी बॉधती हैं. कुछ सहेलियों की शादी हो चुकी है पर वे श्याम को राखी बॉधने के लिए हर साल राखी में आती हैं और श्याम की जेब खाली करने पर तुली रहती हैं और श्याम आखरी में अपनी जेब खाली करके ही जाता है. वह अपनी बहनों को कहता है- तुम सबने मेरी जेब खाली कर दी है अब मैं टिकट कैसे खरीदूँगा ? तुम्हीं लोगों से उधार मॉग कर टिकट लेना पडेगा.

उधर श्याम की हालत दिन-ब-दिन ढीली होती जा रही है. सीने से गोली निकालते समय बहुत खून बह गया है, खून चढाया गया है फिर भी हालत बिगडती ही जा रही है.
आज राखी है. सुभद्रा ने ऑगन में फूलों की पंखुडियों से अल्पना बनाई है और उस पर पीले गुलाब की पंखुडियों से अपने भाई का नाम लिखा है. उसने छुहारे की खीर और आटे का हलुवा भी मूँगफली डाल कर बना लिया है. उसकी सभी सहेलियॉ भी आ गई हैं और सभी ऑगन में बैठ कर श्याम का इन्तज़ार कर रही हैं. सभी के पेट में चूहे दौड रहे हैं पर भाई को राखी बॉधे बिना वे कुछ खायेंगी नहीं.

तभी अचानक गाडी की आवाज़ सुनाई दी.खिलखिलाती हुई सभी लडकियॉ दौड कर बाहर निकलीं. उन्होंने देखा कि चार - पॉच गाडियॉ उनके घर के पास खडी हो गई हैं. सभी गाडियॉ सफेद रंग की हैं. सभी बहनें भाई की आगवानी के लिए गाडी के पास जाकर खडी हो गईं, पर श्याम बाहर क्यों नहीं आ रहा है ? तभी सुभद्रा ने ज़ोर से कहा-' भाई ! यदि तुम जल्दी से बाहर नहीं आए तो मैं रो दूँगी, भाई ! तुम शुभ-मुहूर्त में आ गए हो, तुमने अपना वचन निभाया है, अब तुम जल्दी से बाहर आ जाओ.' तभी गाडी का पिछला दरवाज़ा खुला, जिसमें श्याम तिरंगे  में लिपटा हुआ चुपचाप सो रहा था और उसके ऊपर फूल- मालायें बिखरी हुई थीं.                               

4 comments:

  1. भावपूर्ण और मार्मिक..

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  2. दिल को छूती बहुत मार्मिक कहानी....

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  3. दो बातें कहूँगा आदरणीय शकुंतला जी ! पहली ये कि कहानी बहुत मार्मिक है और ये बताती है कि लड़ाई से सभी का बहुत नुक्सान होता है ! लेकिन दूसरी बात - शहीद जवान का शव तिरंगे में लपेटा जाता है और मुझे लगता है तिरंगे में लपेटा जाना ही अपने आपमें गर्व का विषय हो जाता है ! हर कोई ये ही कामना करता है कि उसके शव पर तिरंगे की चादर हो और ऐसी वीरता सबको प्राप्त नही होती !!

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    1. आदरणीय सारस्वत जी , मैंने सुधार लिया है । मुझे लगा था कि घर से तिरंगे में लपेट - कर श्मशान ले जायेंगे और फिर तोपों की सलामी दी जाएगी । मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने पढ - कर न केवल टिप्पणी की अपितु त्रुटि को रेखाञ्कित करके मुझे आगाह भी किया । आपको बहुत - बहुत धन्यवाद ।

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