Monday 8 April 2013

आमचो बस्तर

बहुत दिनों बाद मै कांकेर जा रही थी । कांकेर की ब्यूटी एकदम अलग है । यह दूध नदी के तट पर , गड़िया पहाड़ की तलहटी में बसा हुआ है । वहाँ पर छोटे बड़े विभिन्न आकार प्रकार के बहुत ही खूबसूरत पत्थर , रास्तों के दोनों ओर , चुलबुले बच्चों की तरह दिखाई देते हैं । साथ चलने के लिए मचलते हैं । मेरी इनसे दोस्ती हो गई है । ये मुझसे बातें करते हैं । कहते हैं - 'शकुन ! तुम बहुत मतलबी हो । भिलाई पहुँचकर हमें भूल जाती हो ! हमें तुम्हारी बहुत याद आती है । तुम्हें याद है न ! जब तुम पिछली बार हमसे मिलने आई थी तो हम लोग कितनी मस्ती किए थे , है न ? तुमने हमें ' निराला ' की वह कविता सुनाई थी , जिसमे हमारा भी जिक्र हुआ है ।

वह कविता हमें याद है - 'वह तोड़ती पत्थर , देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर । '

पिछली बार तुमने हमसे कहा था कि पन्ना , पुखराज , माणिक और नीलम भी हमारे ही वंशज हैं , मेरे मस्तक पर हाथ रखकर तुमने बड़े प्यार से कहा था कि - ' हे शिलाखण्ड ! तुम पर मुझे गर्व है । तुम मुझे गोवर्धन की तरह लगते हो , क्योंकि तुम भी तो गो - वर्धन में सहयोग करते हो । तुम्हारे आस - पास गोचर होता है , जिससे गायों को भोजन मिलता है । गाय हमें गो - रस देती है । हमें स्वस्थ ,सुन्दर एवं समृद्ध बनाती है, तुम लोग बहुत अच्छे हो , मेरे दोस्त !'

सुनो न शकुन ! जैसे तुम लोग , बाघ , हाथी ,वन - भैसा आदि के लिए अभ्यारण्य बनाते हो वैसे ही हम पत्थरों के लिए क्यों नही बनाते ? हम भी तो तुम्हारी धरोहर हैं ,फिर तुम लोग हमें ,जंगलों में ऐसे ही अदियावन क्यों छोड़ देते हो ? हम अलग - अलग चेहरे से तुम्हारा शहर , जंगल , पर्वत ,पठार सब कुछ तो सजाते हैं और पशु- पक्षियों की तरह तुमसे , कुछ खाने को भी नही मांगते , फिर भी तुम लोग हमें प्यार क्यों नहीं करते ?

शकुन ! तुम लोग पाखण्ड क्यों करते हो ? एक ओर तो गाय की पूजा करते हो , गो - माता कहते हो , दूसरी ओर जब वह बूढ़ी हो जाती है , तो उसे , थोड़े से पैसों में बेच देते हो , ताकि तुम्हारी सरकार उसे कत्ल - खाने भेज कर , उसकी निर्मम हत्या कर सके l अपने दोहरे चरित्र से क्या तुम लोग तनिक भी शर्मिन्दा नही होते ? वैसे मैं तुम्हें बता दूँ कि आज - कल , जैविक खेती करने वाले लोग गो - मूत्र को 15 रू लिटर में खरीद रहे हैं और गोबर भी अच्छी कीमत में बिक रहा है । शकुन !भारत में गायों की निर्मम हत्या होगी , ऐसा हमने कभी सोचा भी नहीं था l तुम गो - रक्षा के लिए कुछ करती क्यों नहीं ? ' अचानक वह चुप हो गया ।

गोवर्धन जिन परिस्थितियों में अचानक जिस ढंग से चुप हुआ , उसने मुझे अंदर से हिला दिया वह जब गो - हत्या के बारे में बता रहा था , तो मुझे ऐसा लगा , जैसे वह सिसक रहा है और उसे साँस लेने में तकलीफ हो रही है । वह हांफते - हांफते बोल रहा था और अचानक रुक गया था , फिर उसके सहोदर कैलाश ने मुझसे कहा - ' शकुन ! तुम जल्दी आओ l पता नहीं गो - वर्धन को क्या हो गया है , हम सबकी जान खतरे में है शकुन! तुम आ जाओ । कुछ मत पूछो । यहाँ आकर हमारी दुर्गति तुम खुद ही देख लो । तुम खुद ही समझजाओगी । '

मैं तुरन्त अपनी गाड़ी से कांकेर के लिए रवाना हो गई l रास्ते भर मैं बेचैन रही कि मेरे दोस्तों के साथ कुछ गलत न हो गया हो l जब मैं वहाँ पहुँची तो गो - वर्धन के प्राण - पखेरू उड़ गए थे, वह जगह - जगह से क्रेक हो चुका था , मेरे सभी दोस्त भी मरनासन्न हो चुके थे l मैंने कैलाश से पूछा तो उसने मुझे गुस्से से देखा और कहा - ' हमे देखकर भी क्या तुम्हें समझ में नहीं आता कि हमें हुआ क्या है ? हमें ध्यान से देखो और खुद

हमारी पीड़ा को महसूस करो । '

जब मैंने उन्हें ध्यान से देखा , तो मुझे पता चला कि किसी ने उन सबके शरीर पर 'x' बना दिया है । उनकी बुझी - बुझी आँखें मुझे टकटकी लगाए देख रही थीं और मैं उनके सामने बेबस बनकर , फूट - फूट कर रो रही थी ।

शकुन्तला शर्मा
भिलाई [छ ग ]

1 comment:

  1. द्रवित कर देने वाली रचना...मूक पाषाण भी बोलते हैं पर जो मानव अपनों के प्रति ही कान दिए बैठा है वह भला इनकी कैसे सुने..

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