Tuesday 24 December 2013

सूक्त- 82

[ऋषि- विश्वकर्मा भौवन । देवता- विश्वकर्मा । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

9646
चक्षुषः पिता  मनसा  हि  धीरो  घृतमेने  अजनन्नम्नमाने ।
यदेदन्ता अददृहन्त  पूर्व आदिद्  द्यावापृथिवी अप्रथेताम्॥1॥

पूर्व  समय  में  जब  पृथ्वी  और  द्यावा  का विस्तार  हुआ था ।
आलोक लिए आदित्य आ गए दिग्दर्शन भी तभी हुआ था॥1॥

9647
विश्वकर्मा  विमना  आद्विहाया  धाता विधाता परमोत संदृक् ।
तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रा सप्तऋषीन्पर एकमाहुः॥2॥

विश्वकर्मा  हैं  सृजन - देव  जग - रचना  का  श्रेय  उन्हें  है ।
वे महाप्रतापी अद्वितीय हैं अपने अभीष्ट का ध्येय विदित है॥2॥

9648
यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा ।
यो  देवानां  नामधा  एक एव तं सम्प्रश्नं भुवना यन्त्यन्या॥3॥

परमेश्वर जीवन - दाता  है  वह  ही  पालन-पोषण  करता  है ।
एक ही है पर विविध नाम से वह हम सबका दुख हरता है॥3॥

9649
त आयजन्त  द्रविणं समस्मा ऋषयः पूर्वे जरितारो न भूना ।
असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानि समकृण्वन्निमानि ॥4॥

अंतरिक्ष  में  वह  रहता  है  उसने  ही  की  है  जग-रचना ।
पञ्च-भूत  भी  हमें  दिया है सब पा-कर मौन हुई रसना ॥4॥

9650
परो  दिवा  पर  एना  पृथिव्या  परो  देवेभिरसुरैर्यदस्ति ।
कं स्विद्गर्भं प्रथमं दध्र आपो यत्र देवा: समपश्यन्त विश्वे॥5॥

वह  प्रभु  मेरे  भीतर  बैठा है आकाश-अवनि से वह है दूर ।
वह सुर-असुरों से भी परे है पर कण-कण में वह है ज़रूर॥5॥

9651
तमिद्गर्भं प्रथमं दध्र आपो यत्र देवा: समगच्छन्त विश्वे ।
अजस्य नाभावध्येकमर्पितं यस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुः॥6॥

हिरण्य- गर्भ  में  छिपा हुआ वह सभी शक्तियों का आश्रय है ।
चर-अचर नियंता-मात्र वही है उसी परम का यह परिचय है॥6॥

9652
न   तं   विदाथ   य   इमा   जजानान्यद्युष्माकमन्तरं   बभूव ।
नीहारेण   प्रावृता   जल्प्या   चासुतृप    उक्थशासश्चरन्ति॥7॥

परमेश्वर की  इस प्रबभुता को कौन भला कह - सुन सकता है ।
सबसे परे  है  वह  परमात्मा पर सबके  भीतर वह रहता है॥7॥    
 

4 comments:

  1. वार्तालाप की शैली में निहित ज्ञान।

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  2. परमेश्वर की इस प्रबभुता को कौन भला कह - सुन सकता है ।
    सबसे परे है वह परमात्मा पर सबके भीतर वह रहता है॥7॥
    प्रभु का प्रभुता का बखान नहीं किया जा सकता

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  3. आलोक लिए आदित्य आ गए दिग्दर्शन भी तभी हुआ था

    वाह !!

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  4. सृजनहार को कोटिश: प्रणाम...

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