Sunday 11 May 2014

सूक्त - 52

[ऋषि- उचथ्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

8052
तव द्युक्षः सनद्रयिर्भरद्वाजं नो अन्धसा । सुवानो अर्ष पवित्र आ॥1॥

जब  मानव  पावन - मन  लेकर  कोई  अभिलाषा  करता  है । 
तब मनो-कामना पूरी होती सबका ध्यान वही  रखता  है ॥1॥

8053
तव प्रत्नेभिरध्वभिरव्यो वारे परि प्रियः। सहस्त्रधारो यात्तना॥2॥

वेद - ऋचा  की  महिमा  अद्भुत  यह  आनन्द  की  सरिता  है ।
विविध - विधा में यह बहती है कवि की कोमल कविता है ॥2॥

8054
चरुर्न यस्तमीङ्खयेन्दो न दानमीङ्खय । वधैर्वधस्नवीङ्खय॥3॥

हे  परमेश्वर  राह  दिखाना  सत् - पथ  पर  मुझको  ले  चलना ।
आनन्द - मार्ग है कहॉ किधर है तुम मेरे  मन  में ही रहना ॥3॥

8055
नि शुष्ममिन्दवेषां पुरुहूत जनानाम् । यो अस्मॉ आदिदेशति॥4॥

चारों  बल  मुझको  देना  प्रभु  हम  सब  बन  जायें  विद्या - वान ।
सत्कर्मों  में  रुचि हो सबकी हे दीन - बन्धु हे दया - निधान ॥4॥

8056
शतं न इन्द ऊतिभिः सहस्त्रं वा शुचीनाम् । पवस्व मंहयद्रयिः॥5॥

अनन्त - शक्ति  के  तुम  स्वामी  हो  मुझको  भी  तुम  देना  बल ।
कर्म - मार्ग पर चलूँ निरन्तर पा जाऊँ मैं भी शुभ - शुभ  फल ॥5॥

1 comment:

  1. वेद - ऋचा की महिमा अद्भुत यह आनन्द की सरिता है ।
    विविध - विधा में यह बहती है कवि की कोमल कविता है ॥2॥

    मनहर पंक्तियाँ..

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