Friday, 5 July 2013

थाईलैण्ड में कवयित्री सम्मेलन


" .....21वीं शताब्दी में नारी उज्जागरण का प्रबलतम ज्वार है ए. आई. पी.सी.। दुनियॉं की सारी बहनों, आओ तुम्हारे पास खोने को मात्र वर्जनाओं की ऊँची दीवारें और सदियों की ज़ंजीरें हैं तथा पाने के लिए भविष्य के सारे सपने जिसे पुरुष समाज ने अपनी बपौती मान रखी है।"
-डा. लारी आज़ाद [ संस्थापक ए. आई. पी. सी. ]
22/ 6 / 2013
अभी आषाढ महीना दो दिन बाद आने वाला है , पर उसके स्वागत में  सुबह से ही , काली घटायें छाई हुई हैं। मैं ट्रेन में बैठी हूँ । कोलकाता जा रही हूँ । कोलकाता से हम  'थाईलैण्ड' जायेंगे , जहॉं ' बैंकाक ' में हमारा 11वॉं अन्तर्राष्ट्रीय कवयित्री सम्मेलन आयोजित है । भारत के विभिन्न प्रदेशों से 34 बहनें जा रही हैं और कुछ बहनें हमें ' बैकाक ' में मिलने वाली हैं । मैं  'आज़ाद -हिन्द ' 12129 में ए-1 कोच में 30 नम्बर के बर्थ में बैठी हूँ ।अभी गाडी भाटापारा को पार कर रही है । किसान , कोठार के पैरा को , घर के भीतर , सुरक्षित जगह में रख रहे हैं क्योकि बरसात आने को आतुर है और यदि पैरा बाहर रह गया तो गाय- बैल की भूख कैसे मिटेगी ? नदी आ गई मतलब बिलासपुर आने वाला है । मेरी सहेली चन्द्रा भी इसी ट्रेन में मेरे साथ ही जा रही है । वह ' चाम्पा '  में आकर ट्रेन पकड लेगी , वैसे उसकी टिकट भी ' दुर्ग ' से  ही है पर चूँकि वह ' कोरबा ' में रहती है , उसे 'चाम्पा ' ही पास पडेगा । चन्द्रा आ गई है । हमने सामान बर्थ के नीचे रखकर लॉक कर दिया है और दोनों गपशप में लगी हुई हैं । दुनियॉं-जहॉं की बातें , जो खतम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं , पर चन्द्रा बहुत थकी - थकी सी लग रही है और सोना चाह रही है । मैने उसे कितना समझाया कि सोना बहुत महँगा हो गया है पर वह मानती ही नहीं । मैंने उससे कहा कि चल पहले खा लेते हैं फिर सोने की बात करेंगे । हमने अपने झोले से रोटी-सब्ज़ी का डिब्बा निकाला और खा कर अपने-अपने बर्थ में बिस्तर ठीक करने का उपक्रम कर रहे हैं ।
23 / 6 / 2013
आदतन ' आज़ाद- हिन्द ' 5.00 बजे प्रातः हावरा पहुँच गई । मैं नींद में थी तभी एक झन चिल्लाता हुआ , हमारे बर्थ के सामने से गुज़रा - " दादा ! उतरो- उतरो , हावरा आ गया । बउदी ! हावरा आ गया , उतरो-उतरो ।" मैं झकना कर तुरन्त नीचे उतरी फिर चन्द्रा को उठाई , चल उठ , हावरा आ गया , फिर हम दोनों वेटिंग-रुम में चले गए । आराम से बैठ कर दोनों झन कॉफी मँगवा कर पिए । वहीं पर एक टी. सी. बैठी थी , उसका नाम ' शँकरी ' था । उससे मेरी दोस्ती हो गई । वह अपनी दो बेटियों ' राधिका ' और ' रैना ' के साथ बैठी हुई थी । बातों ही बातों में उसने हमें बताया कि वह " वेलूर - मठ " जा रही है । उसने मुझसे भी आग्रह किया कि मैं उसके साथ  "वेलूर-मठ "  चलूँ । मैंने तुरन्त उसकी बात मान ली क्योंकि मेरे पास चार बजे तक का समय था और अभी तो सात ही बजे हैं । मैंने मुस्कुराते हुए चन्द्रा से कहा - " चल वेलूर-मठ चलते हैं - गोरस बेचत हरि मिले एक पन्थ दो काज ।"
" वेलूर-मठ " मैं कई बार आई हूँ , हर बार उतना ही सुकून उतनी ही शान्ति पाई हूँ । गँगा की गोद में बैठा हुआ यह मठ , मुझे बहुत भाता है , ' शान्ति - निकेतन ' की तरह लगता है । चूँकि यहॉं फोटो खींचने की मनाही थी , एक आर्मी अफसर को फोटो खींचते देखकर , अपना मेल आई डी उसे दे आई हूँ , ताकि वह अपने खींचे हुए फोटो मुझे मेल कर सके । उसने हॉं तो कहा है पर देखते हैं कि वह भेजता है या नहीं । वेलूर-मठ में हमने भोजन किया, हमने वहॉं गुराम और खीर भी खाई । मज़ा आ गया । जैसे ही हम लोग मठ से बाहर निकले तो चन्द्रा ने कहा - "कोलकाता में डाभ नहीं पिए तो क्या किए ?" तुरन्त हम लोग नारियल-पानी पिए और वहीं से टैकसी लेकर फिर " दमदम- एयरपोर्ट " के लिए निकल गए । हम यहॉं दो बजे ही पहुँच गए हैं जबकि हमें चार बजे पहुँचना था , वैसे यहॉं आठ-दस बहनें दिख रही हैं , जो हमारी तरह थोडा पहले आ गई हैं । चन्द्रा थोडा घूम-कर आती हूँ कह कर कहीं गई है और बिना समय खोए हम सभी बहनें , बोलने-बताने में लग गई हैं । रात में दो बजे हमारी फ्लाइट है ।
24 / 6 / 2013
आज आषाढ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा है । सुकुआ उगने को है और हम  बैंकॉक पहुँचे हैं । यहॉं ए. आई. पी .सी. की ओर से एक खास तरीके का हार और हमारे लिए गाडी और गाईड लेकर एक शख्स आया हुआ है । उसने फूलों के हार से हम सब का स्वागत किया । यह हार अमलतास के फूलों की तरह न केवल पीले रंग का है अपितु आकार में भी अमलतास की तरह है । वस्तुतः संस्कृत साहित्य में अमलतास की बडी महिमा है ।बैंकॉक से हम सडक-मार्ग से ' पटाया ' जा रहे हैं । रास्ता बहुत सुन्दर एवम् लुभावना है , वैसे भी भोर का वक्त बहुत खुशनुमा लगता ही है । महादेवी के शब्दों में...." कनक से दिन मोती सी रात सुनहली सॉंझ गुलाबी प्रात , मिटाता रंगता बारम्बार कौन जग का यह चित्राधार ।" रास्ते में हमारा गाईड कुछ विशेष जगह के विषय में बताता था । हम जिज्ञासा-वश अपनी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में प्रश्न भी किया करते थे और वह समाधान की चेष्टा में अपनी मातृभाषा की ओट में छिप जाता था ।उसकी यह भाषा भी हमें अच्छी लगने लगी थी । उसका नाम व्ही था । रास्ता लम्बा था पर चूँकि सभी रात-भर जागे हुए थे ,अधिकॉंश सदस्यों की ऑंखें बँद थीं पर कुछ लोग जाग रहे थे और खिडकी पर अपनी निगाहें जमाए , सुन्दर दृश्यों को अपनी ऑंखों में समेट लेने को तत्पर दिखाई दे रहे थे । अब हम " पटाया " पहुँच चुके हैं । चन्द्रा और मुझे 5208 नम्बर का कमरा मिला है ।" MIKE GARDEN RESORT " में हमें ठहरना है । हम अपने-अपने कक्ष में गए और फिर थोडी ही देर में जलपान के लिए नीचे आए । जलपान के पश्चात् हम पुनः अपने कक्ष में चले गए । हमने विश्राम किया फिर हम बाहर निकल गए, हमारा भ्रमण और भोजन साथ-साथ सुचारु रुप से चलता रहा ।
25 / 6 / 2013
आज हम पटाया समुद्र तट की ओर जा रहे हैं । पटाया का समुद्र-तट बहुत सुन्दर है । यह विश्व के आठ सुन्दरतम तटों में से एक है । यहॉं का पानी पिस्ता के रँग का है । यहॉं हम पैराग्लाइडिंग करेंगे , समुद्र में पानी के अन्दर मास्क लगा कर जायेंगे और जल-क्रीडा करेंगे । मैं पैराग्लाइडिंग की टिकट खरीद ली हूँ और अब पैराग्लाइडिंग के लिए जा रही हूँ ।
पैराग्लाइडिंग में बहुत मज़ा आया । मुझे ऐसा लगा जैसे मैं आकाश में उड रही हूँ । डर की कोई बात नहीं थी क्योंकि नीचे समुद्र तो है ही और हम गॉंवों में पले हैं , तैरना जानते हैं ।मेरे एक मित्र ने मुझे मन्दिर जाने की सलाह दी है पर यहॉं कोई मन्दिर दिखता ही नहीं हॉं! बौध्द-विहार हम ज़रुर जायेंगे । अब लञ्च लेने के बाद हम " कोरल-आईलैण्ड " और " नूँग-नूच गॉंव " देखने जायेंगे । मैं और अञ्जू नूँग-नूच को "नूँग-चूँग " ही कहते रहे हमें आखिर तक उसका असली नाम " नूँग-चूँग " कहना नहीं आया ।  ये दोनों ही जगहें मनोरम हैं । यहॉं हमने गजराज को क्रिकेट खेलते हुए देखा , जिसे सभी ने सराहा । यहॉं के बगीचे में बैठ कर हमने जम कर फोटोग्राफी की और घर से जो चना-मुर्रा ले गए थे उसे बॉंट कर खाया और कुछ शरारती बहनों ने छीन-छीन कर खाया । यही तो मज़ा है , दोस्तों के साथ घूमने का ।
26 / 6 / 2013
आज हमें पटाया से बैंकॉक जाना है । आज बैंकॉक में हमारा 11वॉ अन्तर्राष्ट्रीय कवयित्री सम्मेलन का आयोजन किया गया है । यह आयोजन भारत के राजदूत श्री अनिल वाधवा के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न होगा । मुझे छत्तीसगढ की ओर से उन्हें अँग-वस्त्र भेंट करना है । इस कार्यक्रम में मुझे " कुल-गीत " गाना है पर हमारे पास संगीत का कोई साधन नहीं है । मैने यह बात मुख्य-सचिव प्रथम राजनैतिक श्री राजेश शर्मा को बताई और उन्होंने हारमोनियम और तबला , वादक के साथ हमें उपलब्ध करवा दिया । दो लाइन गाकर मैंने जल्दी से प्रैक्टिस कर ली और अपने साथ , सौदामिनी ,सुनन्दा और भारती बहनों को ले लिया और फिर हमने झूम-झूम कर गाया ..." हम झूमेंगे हम गायेंगे जीवन का गीत सुनायेंगे ए. आई. पी.सी. का परचम हम देश-देश फहरायेंगे।" वादक कलाकारों का नाम साबरी-बन्धु था , उन्होंने इतना सुन्दर संगत दिया कि  जनता झूम उठी । हमें भी बहुत मज़ा आया । " हिज़ एम्बैसी " में बाहर से भी हिन्दुस्तानी जनता  अपनी बात कहने और हमें सुनने के लिए आई थी । हमने अपनी बात कविता के माध्यम से कही । अनिल जी ने हमारी बात ध्यान से सुनी और सराहना भी की । उन्होंने मुझे " THE BLESSED JUNO " सम्मान से अलॅंकृत भी किया । वस्तुतः 'जुनो ' एक क्रान्तिकारी महिला है जिसने सृजन के लिए क्रान्ति को अपना हथियार बनाया और ऑंदोलन का सूत्रपात किया ।
27 / 6 / 2013
" बैंकॉक " में हम " ALL SEASONS SIAM " होटल में ठहरे हुए हैं । छत्तीसगढ को 222 नम्बर का कक्ष मिला है । आज हम सुबह-सुबह , बौध्द-विहार देखने जा रहे हैं । यहॉं हमने दो बौध्द-विहार देखा । दोनों में बुध्द की स्वर्ण-प्रतिमा है । एक विहार में वे शान्त-चित्त , बैठे हुए मिले और दूसरे विहार में 80 फीट लम्बी उनकी हेम-प्रतिमा है जहॉं वे शान्ति-मुद्रा में लेटे हुए हैं । यह भव्य मूर्ति है , दृष्टि हटती नहीं है । जैसे भारत में कुशीनगर में जो पाषाण‌-प्रतिमा है , उतनी ही बडी , ठीक वैसी ही मुद्रा में यह स्वर्ण-प्रतिमा है । समाधि में जाते समय बुध्द के शिष्य आनन्द ने उनसे पूछा था कि हमारे लिए क्या आदेश है ? बुध्द ने कहा था -" अप्प दीपो भव ।" अर्थात् तुम अपने दीपक स्वयम् बनो । बुध्द के प्रथम शिष्य थे प्रसेनजित जो यशोधरा के पिता और बुध्द के ससुर थे । बुध्द ने यह सिध्द कर दिया कि " न धर्मवृध्देषु वयः समीक्ष्यते ।"
28 / 6 / 2013
आज भारतीय समयानुसार प्रातः चार बजे हम अपने वतन लौट जायेंगे । अभी दिन-भर हम और घूमेंगे क्योंकि
थाईलैण्ड का वाट [मुद्रा] हमारे पास बचा हुआ है , उसे खर्च करेंगे । ड्रीमलैण्ड जायेंगे , अम्बिके-मॉल जायेंगे फिर डिनर के बाद " सुवर्णभूमि एयरपोर्ट " जायेंगे । अभी हम ड्रीमलैण्ड आए हैं । सचमुच यह सपनों की दुनियॉं है । यहॉं सब कुछ है , तरह-तरह के झूले , नौका-विहार की विभिन्न शैलियॉं मुझे लुभा रही हैं । यहॉं कार ड्राईविंग भी मैंने कर ली है । मुझे बहुत मज़ा आ रहा है । बडे खतरनाक किस्म के झूले और गाडियॉं भी हैं पर मैंने ठान लिया है कि मैं सबकी सवारी करुँगी।
यहॉं एक कलाकृति को देखकर मुझे अपने भिलाई के ' नेल्सन ' की याद आ गई , जिसमें एक आदमी ज़मीन में धँसा हुआ है , बाहर बस उसके हाथ,पैर और चेहरा दिखाई दे रहा है । वह इतनी बडी कलाकृति थी कि मैं उसे अपने मोबाईल के कैमरे में कैद नहीं कर पाई । मानो वह मुझसे कह रहा हो कि " शकुन्तला जी ! भले ही आज मैं ज़मीन में धँसा हुआ हूँ पर मुझे भरोसा है कि एक दिन मैं अपने पैरों पर अवश्य खडा हो सकूँगा , मैं अभी भी इतना निरीह नहीं हूँ , जितना आप मुझे समझ रही हैं । " मैंने उसकी अदम्य इच्छा-शक्ति को सलाम किया  और मैं आगे बढ गई ।
यहॉं देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास " चन्द्रकान्ता " की शैली में एक समूचा राजमहल है , जहॉं इन्सान दिन में भी डर जाए । चारों ओर डरावने दृश्य हैं , ऐसा लगता है मानों ऐयार हमारा पीछा कर रहे हों । मैं और अन्जू हाथ पकड कर चल रहे थे फिर भी हम दोनों डर के मारे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते थे । ले-देकर किसी तरह वहॉं से बाहर आए । ड्रीमलैण्ड में एक ग्लेशियर भी था जहॉं हमने " सोनमर्ग " की शीतलता का अनुभव किया । यहॉं संगीत की स्वर- लहरी सुनाई दे रही थी , जिसमें बीच-बीच में " पंथी " की धुन का समावेश था । मुझे बहुत मज़ा आया, मैं और वर्षा उस धुन पर थिरकने लगे । थोडी देर में वर्षा ने मुझसे कहा कि उसे ठंड लग रही है और हम वहॉं से बाहर आ गए ।
ड्रीम-लैण्ड का बगीचा भी बहुत सुन्दर है , जहॉं भी नज़र जाती है , वहॉं से हटती नहीं है । जितना हो सका हमने इन दृश्यों को कैमरे में कैद कर लिया है । यहीं हमारे लञ्च की व्यवस्था भी है । भोजन के बाद हम अपने अगले पडाव की ओर लौटने लगे । अब हम " अम्बिके-मॉल " पहुँच गए हैं । यहॉं जिसे जो-जो खरीदना था , सबने खरीदा और लौटते समय , मैं, वर्षा और नागेश्वर रास्ता भटक गए । बडी मुश्किल से हम मीटिंग - प्लेस तक पहुँच पाए। चलते-चलते हम बुरी तरह थक चुके थे, डिनर के लिए हम अपने परिचित होटल में गए और इतमिनान से हमने भोजन किया फिर हम अपनी गाडी से " सुवर्णभूमि- एयरपोर्ट " पहुँच गए । चूँकि हमारी फ्लाइट देर रात में थी , हम एयरपोर्ट में भी मस्ती करते रहे और फिर प्लेन में बैठकर अपने वतन " "दमदम-एयरपोर्ट" लौट आए । हमने अपना-अपना सामान लिया और फिर मुस्कुराते हुए अपने-अपने गन्तव्य की ओर यह कहते हुए निकल गए - " आमी आश्ची । "                          

8 comments:

  1. वाह ! बहुत रोचक यात्रा विवरण...सम्मान पाने पर बहुत बहुत बधाई शकुंतला जी !

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. अच्‍छी रवानी भरी यात्रा.

    ReplyDelete
  4. यात्रा का सुन्दर विवरण...

    ReplyDelete
  5. Beautiful description...lovely pics.

    ReplyDelete
  6. मैंने करगा पढकर विकलांग विमर्श पर लेख बना लिया है

    ReplyDelete
  7. रोचक यात्रा विवरण

    ReplyDelete
  8. बहुत रोचक यात्रा वृतांत...

    ReplyDelete