Wednesday 2 December 2015

कंस

                    कहानी


नीलू बहुत अच्छी लडकी है । पास - पडोस के सभी लोग उसे बहुत पसन्द करते हैं. वह हमेशा खुश रहती है पर आज वह बहुत खुश है आज उसे उसकी पहली पगार मिली है. वह अपने लिए जेवर खरीदने जा रही है,अपनी शादी की तैयारी कर रही है. वह सोचती है-' मेरी मॉ बिचारी कितना करेगी ?' नीलू के पिता नहीं हैं,पिछले साल दिवंगत हो गए. एक बडा भाई है जो नौकरी करने जाता है और रोज नशे में लडखडाते हुए घर पहुँचता है, उसका नाम किसन है. उसकी शादी हो गई है पर उसकी बीबी अक्सर अपने मायके में ही रहती है. बात भी सही है, जो दिन-रात नशे में रहता हो,अपनी पत्नी को बहन को मारता-पीटता हो उसे कौन पसन्द करेगा ? पत्नी बेचारी भी तो किसी की बेटी है, उसे भी तो शौक लगता होगा कि उसका पति सभ्यता से रहे,कभी-कभी उसे भी घुमाने-फिराने लेकर जाए और सबसे बडी बात अपनी बीबी-बच्चे का ध्यान रखे.

आज नीलु अपने लिए करधन खरीद कर लाई है. अपनी पेटी में रख कर ताला लगा ही रही थी कि उसके भाई ने कहा-' नीलू! इधर आ- देख मैं मछली लाया हूँ,इसको तुरन्त मेरे लिए सब्जी बना दे.' नीलू उस दिन उपवास रखी थी, उसने कहा-' भैया ! आज मेरा उपवास है, मैं आज मछली की सब्ज़ी नहीं बना सकती. मैं तुलसी-चौंरा में दिया बारने जा रही हूँ.'

' देख नीलू ! तू ज्यादा नाटक मत कर, समझी न ! मुझे अभी तुरन्त मछली और भात खाना है, तू अभी इसी वक्त मुझे मछली की सब्ज़ी बना कर दे, वर्ना मैं तुलसी-चौंरा के सामने तुझे जला दूँगा,समझी ?' नीलू ने फिर कहा- 'समझने की कोशिश कर भैया ! आज मेरा उपवास है. तुम क्यों मुझे परेशान कर रहे हो ? आज मैं मछली को हाथ भी नहीं लगाऊँगी, भाभी से रोज-रोज इतना लडते हो,इसीलिए तो वह तुम्हारे साथ रहना पसन्द नहीं करती, मायके चली जाती है. तुम लोग तो अलग रहते हो न! तुम्हारा किचन तो अलग है फिर मुझे क्यों परेशान करते हो ? खुद बना कर खा लो, तुम्हें किसने मना किया है ?'

नीलू की बात सुन कर किसन गुस्से से पागल हो गया और अपनी सगी छोटी-बहन को दौडा-दौडा कर इतना मारा कि वह लहुलुहान हो गई और फिर उसको उठा कर अपने कमरे की ओर ले गया. घंटे भर बाद मोहल्ले में खबर फैल गई कि- नीलू ने आत्महत्या करने की कोशिश की और वह बुरी तरह झुलस गई है. उसके पडोसी  उसे अस्पताल में भर्ती करके आए हैं, तभी पुलिस इन्सपैक्टर भी नीलू का बयान लेने के लिए वहॉ पहुँच गए. डॉक्टर की टीम ने नीलू का उपचार किया पर उन्होंने इन्सपैक्टर से कहा-' इसके बचने की उम्मीद नहीं के बराबर है, आप चाहें तो लडकी का बयान ले सकते हैं.'

नीलू ने अपने बयान में कहा - ' मेरे घरवालों का कोई दोष नहीं है,मैं अपनी मर्जी से आत्महत्या कर रही हूँ.इस घटना की जिम्मेदार मैं खुद हूँ,'

इतना कहते ही नीलू ने दम तोड दिया. दूसरे दिन जब मैं नीलू के घर गई तो उसकी मॉ का रो-रो कर बुरा हाल था. उसने मुझे देखते ही ज़ोर से पकड लिया और बताया-' वोकर कंस भाई हर वोला, नाक-कान के फूटत ले, मोर आघू म मारिस हे बहिनी ! पटक-पटक के मारिस फेर वोला उठा के सुन्ना-कुरिया म ले गे अऊ माटी-तेल डार के  भूँज डारिस. ए दे देख न वोकर पेटी ल !' जैसे ही उस संदूक पर मेरी नज़र पडी,उसका चॉदी का करधन चमक रहा था और एक हरे रंग की नई कमीज़ रखी हुई थी क्योंकि उसके भाई का आज जन्म-दिन है.                                     

Tuesday 20 October 2015

गंगा से वोल्गा तक

'ऑल इन्डिया पोएटेस कान्फ्रेंस' एक ऐसी संस्था है जो बहनों के सर्वांगीण विकास के लिए कटिबद्ध है. इस संस्था के माध्यम से हमारी प्रतिभा को अनन्त आकाश मिलता है और हमें प्रेरित प्रोत्साहित करने के लिए हमारी अध्यक्षा डॉ रोशन आरा हमेशा हमारे साथ होती हैं. विविध प्रदेशों से पहुँचने वाली विभिन्न बहनें, विविध नदियों की तरह ए. आई. पी. सी. के सागर में समा जाती हैं और स्वयं समुद्र बन जाती है, ए. आई. पी. सी. में रच-बस जाती है.

25 / 09 / 2015
2015 में हम रूस की यात्रा पर निकल रहे हैं. हमें इन्दिरा गॉधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली में 10 बजे रात तक पहुँचना है और 11. 30 को चेक इन करना है. इस बार छत्तीसगढ से हम चार बहनें रूस घूमने जा रही हैं- आशा लता नायडू, चन्द्रावती नागेश्वर, मधूलिका अग्रवाल और मैं पर आशा दीदी आज कल मुँबई में रहती हैं तो वे हमें दिल्ली एअरपोर्ट पर मिलेंगी. अब मैं चन्द्रा और मधु, गोंडवाना से ए सी 3 में बैठ कर दिल्ली जारहे हैं. हमारे सामने के बर्थ पर हमारे जगदलपुर के भदौरिया दम्पत्ति विराजमान हैं और उनसे हमारी दोस्ती भी हो गई है. हँसते-गाते, खाते-पीते कब भोपाल आ गया हमें पता ही नहीं चला. भोपाल में मेरी बेटी आस्था मुझसे मिलने आई है वस्तुतः मिलने के बहाने वह मेरे पसन्द की खाने-पीने की चीज़ें लेकर आई है. हम तीनों के लिए कॉफी लाई है, पर हम सभी ने कॉफी बॉट कर पी, मूँगफली खाई और हँसते-गाते हमने अपना सफर तय किया. निजामुद्दीन में हम उतर गए
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26 / 09 / 2015
हम तीनों छत्तीसगढ सदन की ओर जा रहे हैं. यहॉ हमने दिन भर के लिए एक कमरा ले लिया है. हम आराम से नहाए धोए फिर मधु और चन्द्रा ने कैंटीन से खाना मँगवा लिया पर मैं घर से जो पराठा और करेले की सब्ज़ी ले गई थी उसी को खाई. दोपहर को हम शॉपिंग के लिए निकल गए, नागेश्वर को मफलर चाहिए था पर मफलर कहीं नहीं मिला. हम लोग घूम- घाम कर आ गए. थोडी देर आराम किए फिर उन दोनों ने डिनर मँगाया और मैंने वही घर का खाना खाया. काउन्टर में फोन करके हमने टैक्सी मँगाई और रात को आठ बजे एरोड्रम की ओर निकल गए, वहॉ हमें टर्मिनल-5 में एकत्र होना है. हम वहॉ पहुँचकर इतमिनान से बैठ गए. बहनें आती रहीं गप-शप चलता रहा और फिर आशा दीदी का फोन आया-'शकुन! तू कहॉ है ? मैं टर्मिनल 4 के पास खडी हूँ.' मैं आशा दीदी को लेने गई तो दंग रह गई. दीदी इतना सामान लेकर आई हैं, हे भगवान ! कैसे ढोएंगी ? अभी तो मैं ढो रही हूँ पर...मैंने दीदी से पूछा तो वे बोलीं- ' उठा लूँगी रे ! तू चिन्ता मत कर. आशा दीदी घर कुछ-कुछ बना कर लाई थीं उसे हम सब खाए और जब पूरी टीम इकट्ठी हो गई तो भैया ने कहा- ' चलो ! कतार बना लो, चेक इन करना है' आगे-आगे भैया-भाभी और पीछे-पीछे हम सभी कतार से चलते रहे, औपचारिकतायें पूरी करते रहे फिर अरब-अरेबिया के प्लेन पर बैठ गए.

27/ 09 / 2015
 हमारा प्लेन 4 .10 को सुबह उडा और हमें लगभग 4 - 5 घंटे में शारज़ाह पहुँचा दिया. शारज़ाह में हमने हाथ - मुँह धोकर चाय पी, ब्रेकफास्ट किया और फिर अरब अरेबिया से मास्को के लिए रवाना हो गए. जब हम मास्को पहुँचे तो शाम हो रही थी और मास्को के समय के अनुसार मेरी घडी में शाम के 5.30 बजे थे. मास्को में बोर्डिंग के समय बहुत वक़्त लग गया और इसी चक्कर में शाम को सर्कस देखने का हमारा अभियान फेल हो गया जबकि हमारी टिकट हो चुकी थी फिर भी हम वहॉ के नायाब सर्कस को नहीं देख पाए इसका अफसोस है पर यात्रा के दौरान तो इस तरह की घटनायें होती रहती हैं तो ' बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेइ' की राह पर आगे बढते हैं.मास्को में हमारी गाइड श्वेता श्वेतलाना,हमारे लिए गाडी लेकर हमें रिसीव करने आई है. श्वेता गज़ब की सुन्दर है, मुस्कुराता हुआ चेहरा, अपने कार्य के प्रति उसका समर्पण, प्रणम्य है. हम मास्को सिटी की ओर बढ रहे हैं और हमारे भैया हमें बता रहे हैं कि-' देखो ! यह 'मास्कवा' नदी है, इसी के नाम पर इस शहर का नाम ' मास्को' पडा, उन्होंने हमें 'वोल्गा' नदी से रूबरू करवाया और बतलाया कि यह 'गंगा' जैसी महत्वपूर्ण नदी है और यह भी बताया कि क्रेमलिन जैसा सुन्दर राजमहल कहीं नहीं है. हमारे संस्थापक डॉ लारी आज़ाद इतिहास के प्राध्यापक हैं और अपनी विभिन्न गतिविधियों द्वारा सम्पूर्ण विश्व में जाने जाते हैं. वे हमें इतिहास की घटनाओं को बडी दिलचस्पी से लगातार बताते जाते हैं और मैं सभी घटनाओं को लिखना चाहती हूँ पर बीच-बीच में छूट जाता है, मुझे इतिहास और भूगोल की तनिक़ भी जानकारी नहीं है कि मैं घटनाओं को आपस में जोड सकूँ. काश ! मैं भैया के एक-एक शब्द को लिख पाती तो मेरा ब्लॉग कितना भव्य बन जाता.अब हम डिनर के लिए जा रहे हैं. रेस्टोरेंट का नाम है -'तन्दूरी नाइट'. यह एक भारतीय रेस्टोरेंट है. यहॉ हमने भोजन किया और फिर अपने हॉटेल ' मास्को अज़िमत ओलम्पिक' में जाकर आराम किया. यह एक चार सितारा हॉटेल है,बहुत सुन्दर और साफ-सुथरा है. हम बहुत थके हुए थे, ठंड बहुत थी. अधिकतम-16' c और न्यूनतम 3'c.आशा दीदी मेरे साथ हैं,हमें 11वें माले में रूम मिला है, बहुत ही साफ-सुथरा,आराम-दायक बिस्तर है. मन प्रसन्न हो गया, हमें अच्छी नींद आई
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28 / 09 / 2015
हम सुबह उठे तो बारिश हो रही थी. जब हम नहा-धोकर जलपान के लिए पहुँचे तो हमने देखा कि सैकडों तरह की चीज़ें वहॉ विद्यमान हैं, मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या खाऊँ ? मैं सूखे मेवे की ओर गई और अखरोट,बादाम,किसमिस और एक गोल-गोल कुछ था, जिसका स्वाद चिरौंजी जैसा था,उसे लेकर आई, दो केले और एक सेब खाई,मेरा पेट भर गया, खाने में मज़ा भी आया.अब हम घूमने जा रहे हैं जिधर नज़र जाती है वहॉ से उठती नहीं है. साफ-सुथरी सडकें हरे-भरे बागों ने हमारा ऑचल पकड लिया. अभी दोपहर के दो बजे हैं,अब हम लंच के लिए 'स्लोथनिक हॉटेल' में जा रहे हैं.यह एक भारतीय रेस्टोरेंट है, हमने यहॉ भोजन किया खाना अच्छा था पर रोटी मैदे की थी. लंच के बाद हम म्युज़ियम देखने के लिए फिर निकल गए और फिर शाम को हॉटेल 'खजुराहो' में हमारा ए. आई. पी. सी. का कार्यक्रम था. भारतीय दूतावास के संस्कृति-विभाग के डिप्टी-डायरेक्टर श्री सञ्जय जैन हमसे मिलने आए थे और वहॉ की लायब्रेरियन डा. मिताली सरकार भी वहॉ उपस्थित थी. यह एक बहुत ही गरिमामय कार्यक्रम था. भैया ने हम सभी का परिचय श्री सञ्जय जैन जी से करवाया और फिर बहनों ने अपनी-अपनी किताबों का विमोचन करवाया.श्री सञ्जय जैन जी हम सबको भारतीय दूतावास में आमंत्रित करना चाहते थे, किन्तु हमें आज शाम को मास्को के मैट्रो में घूमना था. हम सबने डिनर किया और फिर मैट्रो की ओर चल पडे
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मास्को के मैट्रो तक जब हम पहुँचे तो हम भौचक्के रह गए. मैट्रो की दीवारें इस तरह सजी हुई थीं मानो दीवाली हो. भव्य-दीवारें, अद्भुत-कला-कृतियॉ. मैट्रो तक पहुँचने के लिए हमने आधा-किलोमीटर स्कलेटर का सफर तय किया. हे भगवान ! मेरे भारत को भी ऐसा ही वैभव देना. हर क्षेत्र में मेरा भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे,तुझसे यही प्रार्थना है.

29 / 09 / 2015
आज हमें मास्को से सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचना है. हमने यह तय किया है कि हम ट्रेन से सेंट पीटर्सबर्ग जायेंगे. हमने जलपान किया और फिर अपनी गाडी में बैठ कर मास्को के रेल्वे-स्टेशन पर पहुँच गए. हम वहॉ अपनी गाडी में अपनी सीट पर बैठ गए.ट्रेन में जब मैं वाश-रूम गई तो मैंने देखा वाश-रूम के भीतर एक सुन्दर सी लडकी खडी है मैंने संकोच-वश तुरन्त दरवाजा बन्द कर दिया. थोडी देर बाद जब मैंने फिर दरवाज़ा खोला तो वही सुन्दरी फिर दिखी, इस बार मैंने उस पर दृष्टि डाली तो पता चला कि वह दर्पण है. मैं बाहर आकर जब अपनी सहेलियों को यह बात बताई तो उन्होंने मेरी अच्छी मरम्मत की,कहा-' तू और सुन्दर ? कभी दर्पण में अपनी शकल देखी है ? ' मैंने कहा- ' हॉ, आज देखी हूँ.' और हम सभी हँसती हुई लोट-पोट हो गईं.
गोधूलि-वेला में हम सेंट-पीटर्सबर्ग पहुँचे. वहॉ हमारी दूसरी गाइड एना हमारे लिए कोच लेकर आई थी. हम सब उसी के पीछे कतार-बद्ध होकर चलते गए और अपनी गाडी पर जाकर बैठ गए. एक भारतीय रेस्टोरेंट जिसका नाम 'नमस्ते जी' है हम डिनर के लिए गए फिर अपने हॉटेल ' पार्क इन ' पहुँचकर विश्राम किए. मैं और आशा दीदी साथ-साथ हैं. हमें दसवें माले में रूम मिला है और हमारे रूम का नम्बर है-10012. सेंट पीटर्सबर्ग में हमने 'नेवा' नदी देखी जो आगे जाकर मास्कवा और वोल्गा नदी से मिल गई है और फिर मेरे होठों में यह गीत थिरकने लगा -
' ओहो रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में कोई जाने न ओहो रे ताल मिले


30 / 09 / 2015
सुबह ब्रेकफास्ट के तुरन्त बाद हम साइड-सीन के लिए निकल गए. हल्की-हल्की बारिश हो रही थी. किसी ने
रेनकोट पहना तो किसी ने छाता खोला पर हम पूरे दिन घूमते रहे. राजमहल देखने के बाद हमने यह अनुभव किया कि भैया ठीक कहते हैं- ' क्रेमलिन से ज्यादा सुन्दर राजमहल कहीं नहीं है. इसका सौंन्दर्य अद्भुत है. लुई 16वीं की बीबी 'मैरी ऑनलोवोस्की' का दृष्टान्त है-कि जब भूख से बौखलाई हुई जनता जब अपनी रानी को अपना दुखडा सुना रही थी कि-' हमारे पास खाने के लिए रोटी नहीं है.' तो उनकी रानी ने उनसे कहा-' तुम लोग केक क्यों नहीं खाते ?' अन्ततः भूखी जनता ने अपनी रानी को सरे आम फॉसी पर लटका दिया और फिर 1917 में ' लेनिनग्राद' बन गया,जहॉ से पूरी दुनियॉ में मार्क्सवाद फैला. 1992 में मिखाइल गोर्वाचोव के काल में रूस 50 टुकडों में बँट गया फिर भी सेंट पीटर्सबर्ग, रूस की सॉस्कृतिक राजधानी के रूप में उभरा और उसका जलवा आज भी बरक़रार है
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1/ 10/ 2015
आज हम सब अपने-अपने प्रदेश के पारम्परिक परिधान में सजे-धजे बैठे हैं क्योंकि आज 9-रेड में सॉस्कृतिक मँच पर भारतीय दूतावास से भारत के राजदूत महामहिम अरुण कुमार शर्मा अपनी पत्नी श्रीमती पूनम शर्मा के साथ हमारे कार्यक्रम में शिरक़त करने आ रहे हैं. भैया ने महामहिम के साथ मेरा परिचय करवाया. दीप प्रज्ज्वलन के साथ हमारा कार्यक्रम आरम्भ हुआ. ' कुलगीत' गाने का दायित्व मुझ पर था. कुलगीत गाने में, मैत्रेयी, मधूलिका, आशा दीदी एवम् असम की बहनों का मुझे पूरा सहयोग मिला. 'कुलगीत' के पश्चात हमने कवितायें सुनाई और उन्होंने हमें " Minerva Of The East " सम्मान से अलंकृत किया.उन्हें विदा करते समय मैंने आदरणीया पूनम शर्मा जी से अनुरोध किया कि वे ए.आई.पी.सी. की मेम्बर बन जायें तो उन्होंने हॉ कहा है अब देखते हैं कि कब वे मेम्बर बनती हैं, मैंने उन्हें अपनी किताब " चाणक्य-नीति" भेंट की है जिसे उन्होंने मुस्कुराते हुए स्वीकार किया. उनके व्यवहार में एक अपनापन है जिससे हम सभी प्रभावित हुए

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जैसे ही सॉस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ हम सब भाग कर अपने रूम में गए और चेंज करके ' नमस्ते जी' में लंच करने के बाद नेवा नदी में बोटिंग करने चले गए, इसके लिए हमने 700 रुबेल खर्च किए. हमें बोटिंग में बहुत मज़ा आया, हमने वहॉ बीहू डॉस किया, फोटोग्राफी की और पूरे समय हम मस्ती करते रहे.अविस्मरणीय'''''''''' बोटिंग के बाद हम डिनर के लिए फिर ' नमस्ते जी ' हॉटेल में गए और लौटते समय मैं अचानक सबसे अलग हो गई और रास्ता भटक गई. मैं बहुत आगे निकल गई, जब कोई भी नहीं दिखा तो मैं लौट कर उसी रास्ते पर वापस आई और 'नमस्ते जी' रेस्टोरेंट की ओर दुबारा जा रही थी तब हमारे साथियों ने मुझे देख लिया और पूछा-' कहॉ जा रही हो ?' मेरी जान में जान आई पर भैया को मुझ पर बहुत विश्वास था, उन्होंने कहा- ' कोई और होता तो मैं डरता पर मुझे शकुन्तला दीदी पर पूरा विश्वास है वे टैक्सी लेकर हॉटेल पहुँच जायेंगी', मैंने भैया को देखा तो ऑखों में ऑसूँ आ गए पर मैं 'हॉटेल अज़िमत' को याद करके रखी थी और ' ' पार्क इन ' का नाम याद ही नहीं आ रहा था, अब जाऊँ तो कहॉ जाऊँ ? अक्सर छोटी-छोटी बातों पर मेरी ऑखें भर आती हैं फिर गाहे ब गाहे कोई मुझसे पूछता हैं - ' तुम्हारी ऑखों में कितने सागर भरे हुए हैं ?' मैं कहती हूँ ' यह तो मैं नहीं जानती पर इतना जानती हूँ कि मैं जब आप सबसे विदा लूँगी तो मेरे चेहरे पर मुस्कान होगी और मैं चाहूँगी कि आप सब मुझे हँस कर विदा करें ।

2 / 10 / 2015
आज ' पार्क इन ' हॉटेल को भी विदा करना है. यह बहुत ही सुन्दर तीन सितारा हॉटेल है. अभी 10 बजे हैं. हमने जलपान कर लिया और हॉटेल के अन्दर ही शॉपिंग करने में लग गए हैं. हमें 11.00 बजे यहॉ से निकलना है. हम रूस के रेल - मार्ग से पुनः मास्को जाने के लिए रेल्वे-स्टेशन की ओर चल पडे हैं और अपनी गाइड एना से भी विदा ले रहे हैं' जैसे ही ट्रेन आई हमने अपना टिकट अपने हाथ में लिया और मास्को के लिए रवाना हो गए' मास्को में हमें एलोविना फिर से मिल गई वह हमारे लिए कोच लेकर आई थी, राह के अन्तिम पडाव में बहनों ने अपने-अपने विचार प्रकट किए और फिर भैया ने बताया कि हम 2016 में बाली और जकार्ता जा रहे हैं. हम एरोड्रम पहुँच गए हैं और चेक इन कर रहे हैं. सभी औपचारिकतायें पूरी करके हम अरब अरेबिया में बैठ गए हैं
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 3 / 10 / 2015

इस विमान ने रशियन समय के अनुसार 4. 45 को हमें शारजाह पहुँचाया है. यहॉ हम हाथ-मुँह धोकर चाय-पानी पीकर पुनः एअर-अरेबिया के विमान पर सवार हो गए हैं और शाम को भारतीय समयानुसार हम 5.30 बजे इन्दिरा गॉधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँच गए हैं. हमने जल्दी-जल्दी अपना-अपना सामान लिया और सबसे विदा लेते हुए अपने गन्तव्य की तलाश में निकल पडे- " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी." मैं अचानक  ' चन्दन कस तोर माटी हे' का यह गीत गुनगुनाने लगी-
' आम लीम बर पीपर पहिरे छत्तीसगढ के सब्बो गॉव ।
नरवा- नदिया तीर म बइठे छत्तीसगढ के सब्बो गॉव ॥'                                            
                                                                   

Tuesday 6 October 2015

सेंट पीटर्सबर्ग में शकुन्तला का सम्मान

ए आई पी सी के तत्वावधान में अन्तर्राष्ट्रीत सम्मेलन 2015 में सेंट पीटर्सबर्ग में सम्पन्न हुआ जिसमें मुख्य - अतिथि के रूप में भारत के राजदूत महामहिम अरुण कुमार शर्मा ने  वरिष्ठ - साहित्यकार श्री मती शकुन्तला शर्मा को  " MINERVA OF THE  EAST " से अलंकृत किया । इससे पहले भी शकुन्तला जी श्रीलंका , बैंकाग और मलेशिया में ,भारतीय दूतावास की ओर से सम्मानित हो चुकी हैं । सम्मान के इस अवसर पर उन्हें तूलिका पाण्डेय अनुराग पाण्डेय , सीपी दुबे शैलेश दुबे , आस्था एलिया नीरज एलिया अनुग्रह, सञ्जीवनी, शाल्मली , तत्सम , पहल , मन , मधूलिका , चन्द्रावती , मीरा शर्मा एवम् उनके  मित्रों ने उन्हें बधाई दी है ।
  

Monday 21 September 2015

बेटी बचाओ

                                 [ एकांकी ]

पात्र - परिचय
 1 - रामलाल - घर का मुखिया   उम्र - 50 वर्ष ।
2 - कमला - रामलाल की पत्नी । उम्र - 45 वर्ष ।
3 - पवन -  रामलाल का बेटा ।  उम्र - 25 वर्ष ।
4 - पूजा - पवन की पत्नी । उम्र  - 22 वर्ष ।
5 - शोभा - रामलाल की बेटी । उम्र - 21 वर्ष ।
6 - श्याम - पूजा का भाई । उम्र - 24 वर्ष ।

                            प्रथम - दृश्य

     [  गॉव का घर । गोबर से लीपा हुआ अंगना । अंगना में चौक । रामलाल अपनी पत्नी को कुछ समझा रहे हैं । च्रहरे पर परेशानी का भाव झलक रहा है । ]

रामलाल - कमला ! तुम बहू को समझा दो कि अब वह नौकरी नहीं करेगी । हमारे घर में बहू - बेटियॉ नौकरी नहीं करतीं । यह बात वह जितनी जल्दी समझ जाए, उतना ही अच्छा है ।
 कमला - बहू नौकरी कर रही है, इसमें हर्ज ही क्या है ? अब ज़माना बदल गया है । हमें भी ज़माने के साथ चलना पडेगा, वर्ना हम पीछे रह जायेंगे । जो अन्याय मेरे साथ हुआ , वह अपनी बहू के साथ मैं नहीं होने दूँगी । रामलाल - तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है । हर बात का मतलब उल्टा ही निकालोगी । तुम्हारे भेजे में तो गोबर भरा है ।
कमला - मैं भी तुम्हारे बारे में यही बात कह सकती हूँ । मेरी सज्जनता को मेरी क़मज़ोरी समझने की भूल मत करना ।
रामलाल - हे भगवान ! इस औरत को सद्बुद्धि दे ।
कमला - इसकी ज़्यादा ज़रूरत तुम्हें है ।
[ बहू का प्रवेश ]
पूजा - अम्मॉ ! मैं उनके लिए चाय बना रही हूँ । आप लोगों के लिए बना दूँ क्या ?
कमला - हॉ, बेटा ! बना ले । चाय का टाइम तो हो ही गया है ।
रामलाल - हमारी बहू कितनी समझदार है, देखो हमारा कितना ध्यान रखती है, पर पता नहीं शोभा से कैसा व्यवहार करेगी ? मुझे इस बात की बडी चिन्ता है ।
कमला - मैंने कितनी बार यह बात कही कि हमें सच्चाई बता देनी चाहिए पर तुमने हर बार मना कर दिया । अब मैं क्या करूँ ?
पूजा - लीजिए अम्मॉ ! गरमा - गरम चाय । साथ में आलू - बैगन की पकौडी भी है ।
कमला - बेटा ! चाय पॉच कप क्यों बनाई हो ? हम तो चार ही हैं न !
पूजा - अम्मॉ ! आप शोभा को कैसे भूल सकती हैं ? क्या वह घर पर नहीं है ?

[ रामलाल के हाथ से चाय छलक जाती है पर कमला के हाथ से, चाय का कप गिर जाता है । कप के टूटने की आवाज़ से सभी स्तब्ध हो जाते हैं, सास - ससुर को असहज देखकर, पूजा कहती है -'आप रहने दीजिए अम्मॉ मैं उठा देती हूँ ।'  वह कप के टुकडे उठा - कर भीतर चली जाती है ।]
                 [ पूजा का प्रवेश ]
पूजा - अम्मॉ ! लीजिए, आपकी चाय ।

[ पवन और पूजा पूरे घर को खोज डाले पर शोभा उन्हें कहीं नहीं मिली । थक - हार कर पवन ने अपनी मॉ से पूछा - ]
पवन - अम्मॉ ! शोभा कहॉ है ?
कमला - [ असहज होने का अभिनय करती हुई ] शोभा अपने कमरे में ही है ।
पवन - पर उसके कमरे में तो ताला लगा हुआ है अम्मॉ !
कमला -ये रही चाबी, जा खोल दे ।
[ पवन ने कमरे की चाबी, पूजा के हाथ में देते हुए कहा- " पूजा ! अम्मॉ - बाबूजी शोभा को लॉक करके रखे हैं " तिरस्कार से अपनी माता - पिता को देखते हुए ]
पवन - वह लँगडी है, इसमें उसकी क्या गलती है ? हद कर दिए आप लोग ! अपने ही बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार ? वैसे पूजा ! मैं भी इंजीनियर नहीं हूँ । मैं एम. ए. बी. एड. किया हूँ । शिक्षा - कर्मी वर्ग - एक में बच्चों को हिन्दी पढा रहा हूँ । कभी - कभी मुँह खोलना ज़रूरी होता है अम्मॉ ! इसलिए बोल रहा हूँ । यदि बाबूजी यही बात समझ जाते तो मुझे पूजा के सामने ज़लील होने से बच जाता ।
                     

                             द्वितीय - दृश्य 

[ पूजा ने जब कमरे का ताला खोला तो मारे बदबू के, उसे अपनी नाक में साडी का पल्ला रखना पडा और यह क्या ? शोभा तो यहॉ बेहोश पडी है । वह रोती - चिल्लाती अम्मॉ के कमरे की ओर भाग रही है । ] 

पूजा - अम्मॉ ! शोभा बेहोश पडी है और उसके मुँह से झाग निकल रहा है ।
[अफरा-तफरी में पवन, वैद्य जी को लेकर आया है । सभी के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें दिखाई दे रही है ।] 
वैद्य - चिन्ता की कोई बात नहीं है । थोडी देर में जाग जाएगी । चेहरे पर ठण्डे - पानी का छींटा डालिए । [ पूजा शोभा के चेहरे पर ठण्डा - पानी छिडकती है , शोभा ऑखें मिचमिचाती है ।] शोभा जाग गई है ,उसे नीबू - पानी पिला दीजिए और वह जो खाना चाहे उसे खिला दीजिए । अब मैं चलता हूँ ।
[ पवन, वैद्य जी का बैग पकड - कर उन्हें छोडने जाता है ।]

[ शोभा की यह हालत देख कर पूजा रो - रो कर बेहाल है । उसकी ऑखें सूज गई हैं । वह सपने में भी नहीं सोच सकती कि कोई माता - पिता अपने बच्चे के साथ, ऐसा व्यवहार कर सकता है । वह शोभा का ध्यान इस तरह रखने लगी, जैसे वह उसकी छोटी बहन हो । ननद और भाभी, बतिया रही हैं, आइए हम भी सुनते हैं ।]
शोभा - भाभी । मुझे अम्मॉ - बाबूजी, फटे हुए कपडे की तरह क्यों छिपाते फिरते हैं ? कभी - कभी मैं अपने आप से पूछती हूँ कि यदि मैं लडका होती, तो भी क्या मेरे माता - पिता, मुझे इसी तरह छिपा - कर रखते ? लडकी को कितना अपमानित होना पडता है, भाभी ! उसे उस गलती की सज़ा मिलती है जो उसने कभी की ही नहीं है । 
[ वह पूजा को पकड - कर रोने लगती है ।] 
शोभा - आपके सिवाय, मेरा कोई नहीं है भाभी !
पूजा - मत चिन्ता कर । मैं हूँ न ! 
शोभा - भाभी ! मैं आपसे कुछ मॉगना चाहती हूँ , आप मना तो नहीं करेंगी ? 
पूजा - तू मॉग कर तो देख ! 
शोभा - भाभी ! आपने तो खैरागढ से लोक - गीत में एम. ए. किया है न ? मुझे भी सिखाइये न प्लीज़ ! 
पूजा - तुम मन लगा - कर सीखोगी तो सिखाऊँगी । 
शोभा - मैं आपसे प्रॉमिज़ करती हूँ , आपको कभी निराश नहीं करूँगी ।

[ हम सब काम करते - करते थक जाते हैं और थक - कर सो जाते हैं पर काल - चक्र कभी नहीं रुकता, वह निरन्तर चलता रहता है । दिन के बाद रात आती है और रात के बाद दिवस आता है और इसी तरह न जाने कितनी बरसात निकल जाती है । पूजा अपनी ननद को लोक - गीत गाना सिखाने लगी और सचमुच पूजा ने भी, पूरे मन से गाना सीखा और अब वह स्टेज़ पर गाने लगी है । आइए हम भी सुनें- वह "भरथरी " गा रही है ।
शोभा - 
ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ए ओ मोर नोनी 
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर 
महतारी अस महतारी अस मोर नोनी sssssssssssssssssssssss।

लइका ल कोख म वोही धरथे भले ही पर - धन ए मोर - नोनी 
सब ल मया दिही   भले पीरा सइही    भले रोही - गाही 
ओही डेहरी म  ओही डेहरी म मोर - नोनी  sssssssssssssssssss।

पारस पथरा ए   जस ल बढाथे    मइके के  ससुरे के  मोर नोनी
ओला झन  हींनव ग ओला झन मारव ग  थोरिक सुन लेवव ग
गोहरावत हे  गोहरावत हे मोर - नोनी sssssssssssssssssssssss।

पूजा - तुम बहुत अच्छे से गाई हो शोभा ! पर मैं चाहती हूँ कि तुम फील - करो, इससे तुन्हें मज़ा भी आएगा और गीत में तुम्हारी पकड और मजबूत होगी ।
शोभा - ठीक है भाभी मैं कोशिश करूँगी ।

             तृतीय - दृश्य 

[ श्याम पूजा का भाई है । वह भाई - दूज में अपनी बहन के घर आया है । पूजा, अपने भाई को तिलक, लगा कर, आरती उतार ही रही थी कि आसपास से  "कजरी "  गीत का स्वर सुनाई देता है ।]
                        कजरी 
रंगबे -  तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन 
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।

झंडा- फहराए  बर  महूँ  हर जाहँवँ
उप्पर म  टेसू -  रंग  देबे  बरेठिन ।

सादा -  सच्चाई  बर  हावय  जरूरी
भुलाबे झन छोंड देबे सादा बरेठिन।

नील रंग म चर्खा कस चक्का बनाबे
नभ  ल अमरही - तिरंगा  बरेठिन ।

श्याम - पूजा ! यह किसकी आवाज़ है ? वह देश - प्रेम में कजरी गा रही है पर उसकी आवाज़ में दर्द क्यों है ? पूजा बताओ न ! वह कौन है ? क्या तुम उसे जानती हो ?
पूजा - है एक लडकी, तुम्हें क्या इंटरेस्ट है ? 
श्याम - पूजा ! मैं उसके गायन का मुरीद हो गया हूँ । उसके लिए कुछ भी कर सकता हूँ ।
पूजा - लूली , लँगडी, अंधी होगी, तब भी क्या तुम --------------------
श्याम - हॉ पूजा हॉ, वह जैसी भी हो, मैं उसे अपनाने के लिए तैयार हूँ ।
[ तभी गीत के आखरी दो पंक्तियों को गुनगुनाती हुई, पूजा का प्रवेश ]
रंगबे -  तिरंगा  मोर लुगरा बरेठिन 
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।
[ 'कजरी' गाते- गाते शोभा, अपने भाई - भाभी के कमरे में आती है और किसी अजनबी को देख - कर ठिठक जाती है । श्याम और शोभा के बीच कोई बात नहीं होती पर दोनों असहज हो जाते हैं । अरे ! ये दोनों एक - दूसरे से ऑखें क्यों चुरा रहे हैं ? लगता है कि ये दोनों एक - दूसरे के बहुत क़रीब आने वाले हैं । आज पूजा अपनी शिष्या शोभा को " बिहाव - गीत " गाना सिखा रही है क्योंकि देवउठनी एकादशी आने वाली है । कोसला गॉव के गुँडी में " बिहाव - गीत " का कार्यक्रम है । शोभा, बिहाव - गीत गा रही है और पूजा हारमोनियम बजा रही है, पवन ढोलक बजा रहा है और श्याम बॉसुरी बजा रहा है ।]
शोभा - 
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव 
शुभ - शुभ  होही  सब काज गौरी - गनेश बेगि आवव ।

बॉस - पूजा पहिली मँडवा म होही 
उपरोहित ल  झट के बलाव  गौरी - गनेश  बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

चूल - माटी खनबो परघा के लानबो 
थोरिक माटी  के  मान  बढाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे  बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

पाणि -  ग्रहण  के  बेरा  हर आ  गे
सु - आसीन  मंगल - गाव  गौरी -  गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

बर - कइना  दुनों  ल असीस  देवव
दायी - बेटा  आघू  ले  आव  गौरी - गनेश  बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

हरियर  हे  मडवा  हरियर हे मनवा
जिनगी  ल  हरियर  बनाव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

[ बिहाव - गीत के सम्पन्न होते ही पवन कुछ कह रहे हैं आइए हम भी सुनते हैं । ]
पवन - आज आप सबको साक्षी मान कर मैं श्याम को अपना बहनोई बना रहा हूँ । [ उसने श्याम का तिलक किया और शगुन के रूप में 101 रुपया उसके हाथ में दिया । श्याम ने तुरन्त पवन के पॉव छुए ।] आज मेरी बहन शोभा ने तुलसी - विवाह में " बिहाव - गीत गाया और आज से ठीक तीन दिन बाद, पूर्णिमा के दिन गोधूलि - वेला में मेरी बहन शोभा की शादी है । आप सभी को निमंत्रण है, उसे आशीर्वाद देने ज़रूर आइये ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई मो - 093028 30030                            
         
                               

Sunday 13 September 2015

टोनही

                              टोनही                  [ कहानी ]

' रोज सॉझ को दारु पीने के लिए मेरे पास आ जाता है पर अपनी एक लडकी को मेरे यहॉ काम पर लगा दे बोलता हूँ तो मना कर देता है । पढ -लिख कर क्या मास्टरनी बन जाएगी तेरी बेटी ?'
' मेरी घरवाली अपनी बेटियों को आने नहीं देती सेठ ! वरना मैं तो चारों को तुम्हारे यहॉ भेज देता.'
' औरत की इतनी हिम्मत कि वो मर्द की बात को काटे ? सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता बुधराम,उसे टेढी करना पढता है. समझा कि नहीं ? '
' समझ गया सेठ.'
 आज बुधराम जब घर आया तो वह राक्षस बन कर आया । आते ही वह ढेली के ऊपर बरस पडा. गंदी - गंदी गालियॉ देने लगा और ढेली को पीटने लगा. बेटियों ने जाकर छुडाया और चारों बेटियॉ,मॉ के पास ही बैठी रहीं.बारह बरस की निर्मला ने मॉ को बताया कि जब भी वह सम्पत सेठ की दुकान के सामने से गुज़रती है वह उसे आवाज़ देकर बुलाता है कहता है कि-'आ जा ! तुझे चॉकलेट दूँगा ,बिस्किट दूँगा ' पर मैं उधर देखती भी नहीं,  चुपचाप वहॉ से निकल जाती हूँ.' निर्मला की बात सुनकर उसकी बडी दीदी कविता ने उसे समझाया- ' इन जैसे लोगों से हमें बच कर रहना है निर्मला. हमें कभी भी इनकी बातों में नहीं आना है. मन लगा कर पढाई करना है और इस दल-दल से निकलना है. समझी रे मेरी प्यारी बहना ?' निर्मला ने मुस्कुरा कर कहा-' हॉ दीदी.'

ढेली का परिवार भवतरा गॉव में रहता है. उनका छोटा सा घर है. ढेली,चार-पॉच घरों में चौका-बरतन करती है तब कहीं जाकर उनके घर में चूल्हा जलता है और लडकियों की पढाई का खर्च पूरा होता है.उसका पति बुधराम दिन भर सम्पत सेठ का काम करता है और दारु पी कर आ जाता है. घर में कभी एक पैसा नहीं देता. कहता है- 'तू मुझे एक भी सन्तान नहीं दी तो मैं तुझे किसके लिए पैसा दूँ ?'
कविता अभी बारहवीं में पढती है. वह अपने स्कूल में झाडू-पोछा करती है और उसकी मैडम उसे 500 सौ रुपए देती है.कविता हर महीने 400 रुपए बैंक में जमा कर देती है.

ढेली अभी भी इतनी सुन्दर है कि उस पर से निगाहें हटती नहीं.वह बिना सिंगार के सुन्दर दिखती है.उसकी बेटियॉ भी अपनी मॉ जैसी हैं.ऐसा लगता है कि मॉ- बेटियॉ जानती ही नहीं कि वे कितनी सुन्दर हैं कारण उनके घर में दर्पण नहीं है.हर औरत के मन में यह भाव आ ही जाता है कि काश.....
अचानक आज सुबह से ही सरपंच ने ढेली को बुलवाया है. ढेली जब सरपंच के घर पहुँची तो उसकी पडोसन वहीं बैठी थी. ढेली भी उसी के पास जाकर बैठ गई.सरपंच ने कहा-' ढेली! तुम मेरी बात का बुरा मत मानना पर तुम्हारी पडोसन तुम्हारी शिकायत लेकर आई है कि तुमने उसके ऊपर जादू-टोना कर दिया है.'
ढेली की ऑखों में ऑसू आ गए, उसने आश्चर्य से भूरी को देखा तो भूरी चिल्लाने लगी-'सरपंच जी ! देखो इसकी ऑखें,यह ऐसे ही जादू-टोना करती है.'
'अब मैं आपसे क्या कहूँ सरपंच जी ? आप तो मुझे बचपन से जानते हैं' कहते - कहते ढेली ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और रोते-रोते वह बेहोश हो गई.गॉव में छोटा सा अस्पताल था, सरपंच ने ढेली को वहीं भिजवा दिया. ढेली बीच-बीच में बडबडाती थी-' मेरी बेटियों को बचाओ' और फिर बेहोश हो जाती थी. दिन बीत गया, रात बीत गई, ढेली को होश नहीं आया.दुनियॉ सो रही थी पर उसकी जीभ जाग रही थी. आग की तरह आस-पास के गॉवों में यह खबर फैल गई कि ढेली टोनही है. सुबह जब ढेली को होश आया तो उसके सामने पामगढ के इंसपेक्टर खडे थे और ढेली से पूछ रहे थे-'क्या हुआ ढेली ?' ढेली ने कहा - 'मेरी चार बच्चियॉ हैं उनको बचा लीजिए साहब, उनकी जान खतरे में है.' इंसपेक्टर ने तुरन्त वायरलेस से पुलिस-फोर्स को एलर्ट कर दिया, ढेली की चारों बेटियॉ, बिलासपुर रेल्वे-स्टेशन में, मुँबई-हावरा ट्रेन के ए. सी.कोच में मिलीं, उनके साथ सम्पत-सेठ भी मिला जो चेहरा छुपा-कर बैठा हुआ था. पुलिस ने बुधराम को खोजने की कोशिश की- वह सम्पत - सेठ के घर के सामने बेहोश पडा हुआ था.                                                

Wednesday 9 September 2015

तीन गज़ल

              छत्तीसगढ के लोग


सरल - सहज हैं संस्कारी हैं छत्तीसगढ के लोग
संकोची - भोले  अल्हड  हैं छत्तीसगढ  के  लोग ।

बाहर  से जो पहुना आता मान  बहुत  देते  हैं वे
सबको अपना कुटुम मानते छत्तीसगढ के लोग ।

भले  ही कोई करे उपेक्षा लडते नहीं किसी से वे
जान- बूझ कर चुप रहते हैं छत्तीसगढ  के लोग ।

नर  हो  चाहे  नारी  डट  कर  मेहनत  वे करते हैं
पुरुषार्थी  हैं  कर्म - वीर  हैं  छत्तीसगढ  के  लोग ।

मेहनत  करता  है किसान जो भरता सबका पेट
भुइयॉ  के  भगवान  हैं भैया  छत्तीसगढ के लोग ।

यहॉ  की  माटी  मम्हाती है देवदारु चन्दन जैसी
'शकुन' यहीं बस जा अच्छे हैं छत्तीसगढ के लोग ।

       तुम मानो या न मानो

        
 जिसकी लाठी भैंस उसी की तुम मानो या न मानो 
नारी  नहीं  बराबर  नर  के  तुम  मानो  या न मानो ।

उसे कभी विश्राम नहीं है तीज तिहार हो या इतवार 
हाथ - बँटाता  नहीं  है  कोई  तुम  मानो या न मानो ।

इंसाफ  नहीं  होता है दफ्तर में भी उसके साथ कभी
ज़्यादा  क़ाम  दिया  जाता है तुम मानो या न मानो ।

कोई  नहीं  समझता उसको कहने को सब अपने  हैं 
नारी  भी  नारी की दुश्मन है तुम मानो या न मानो ।

'शकुन' कोई तरक़ीब बता वह जीवन सुख से जी ले 
जीवन यह अनमोल बहुत है तुम मानो या न मानो ।

  कौम से कटा हुआ ये जी रहा है कौन 

 

 कौम  से  कटा  हुआ  ये  जी रहा है कौन 
ऑख  में ऑसू  लिए  ये  जी रहा है कौन ? 

आज  बहू - बेटियॉ  रोती  हैं  यहॉ  क्यों 
प्रश्न  उठ रहा है कि रुलाता है उन्हें कौन ? 

रोटी - बना  रही  थी  तो आग लग गई 
गगन  में  गूँजता  है  जला रहा है कौन ?

बेबस को मार के भला तुझे मिलेगा क्या 
अपने ही घर में आग लगा रहा है कौन ?

बेटी को बचा ले 'शकुन' रो  रही  है वह
दुनियॉ में आने से उसे  रोक़ रहा कौन ?



Thursday 27 August 2015

हाइकू

   एक
इरा ने पाया
आई ए एस वन
सबको भाया ।

    दो
कुसुमकली
देख नहीं सकती
कुसुम - कली ।

  तीन
अँधी - भैरवी
सुन्दर गाती है
राग - भैरवी ।

   चार
सूरदास है
मन से देखने का
एहसास है ।

   पॉच
अँधा है पर
तोडता है पत्थर
सडक - पर ।

    छः
रानी है नाम
लंगडी है लेकिन
करती - काम ।

   सात
गूँगी है गंगा
बरतन धोती है
मन है चँगा ।

  आठ
काना - कुमार
झूम - झूम गाता है
मेघ - मल्हार ।

    नव
बहरा - राम
दिन भर करता
बढई - काम ।

    दस
अंधी है माला
अंधों को पढाती है
माला है शाला ।

  ग्यारह
लँगडा - मान
किसानी करता है
नेक - इंसान ।

  बारह
बहरा - राम
टोकनी बनाता है
कहॉ - आराम ?   



Sunday 23 August 2015

वचन

                             [ कहानी ]

श्याम और उसके आठ साथी रुक-रुक कर फायरिंग करते रहे, जब पडोसी देश से फायरिंग होती कश्मीर बॉर्डर से हमारे जवान जवाबी फायरिंग करते रहे. अचानक फायरिंग रुकी, हमारे जवान 30- 35 मिनट तक चुपचाप अपनी पोजिशन पर तैनात रहे पर जब घंटा भर हो गया तो इन्होंने सोचा, फायरिंग बन्द हो गई है, चलो हम भी देखते हैं कि आखिर पडोसी की नीयत क्या है ? रोज़-रोज़ फायरिंग करना इसने अपनी आदत बना ली है. जब तक ईंट का जवाब पत्थर से न मिले, उसकी फायरिंग बन्द ही नहीं होती. रिहायशी इलाके में फायरिंग करता है, महिलायें और बच्चे डर जाते हैं, इस तरह आपस में बातें करते जैसे ही सीमा पर जवान उठ कर खडे हुए फिर फायरिंग हुई और इस बार गोली कैप्टन श्याम को लगी. गोली उसके सीने में लगी थी, वह तुरन्त बेहोश हो गया. उसे तुरन्त अस्पताल पहुँचाया गया. उसे दो घंटे बाद होश आ गया, उसके दोस्तों ने उसका मोबाइल उसे पकडाया और बताया-' सुभद्रा का फोन है, ग्यारह मिस्ड-कॉल आ चुके हैं. श्याम ने फोन उठाया तो सुभद्रा ने रुठ कर कहा-' क्या भाई आप मुझसे बात भी नहीं करते हो,राखी आ रही है, भाई ! तुम राखी के दो दिन पहले नहीं आ सकते हो क्या ? अच्छा ये बताओ कि तुम्हारे लिए क्या-क्या बनाऊँ ? तुम्हारे लिए छुहारे की खीर तो बनेगी ही और बताओ क्या बनाऊँ ?'
श्याम ने कहा- ' वो जो तुम मूँगफली डाल कर हलुआ बनाती हो न ! वो ज़रूर बनाना पर सुभद्रा मैं राखी के पहले नहीं आ सकता पर तुम्हें वचन देता हूँ कि मैं राखी के दिन आऊँगा ज़रूर.' श्याम मारे दर्द के कराहने लगा और उसके हाथ से मोबाइल छूट गया. तन के दर्द पर मन का दर्द भारी पड रहा था. डाक्टरों ने तुरन्त श्याम को ऑपरेशन थियेटर में शिफ्ट किया और ऑपरेशन थियेटर का दरवाज़ा बन्द हो गया.

उडीसा के तरापुर गॉव में श्याम का घर है. उसके माता-पिता कपास से कपडा बनाते हैं और उसे रंग कर बाज़ार में बेच देते हैं. यही उनके जीने का जरिया है. उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पढाया- लिखाया और स्वावलम्बी बनाया और अपना बुढापा सुख से गुज़ार रहे हैं. बेटा आर्मी में कैप्टन है और बेटी सुभद्रा स्कूल में इतिहास की व्याख्याता है. सुभद्रा ने राखी की ज़ोरदार तैयारी कर ली है. उसने कटक जाकर, राखी में पहनने के लिए पीले रंग की रेशमी साडी खरीदी है. उसकी सभी सहेलियॉ भी श्याम को राखी बॉधती हैं. कुछ सहेलियों की शादी हो चुकी है पर वे श्याम को राखी बॉधने के लिए हर साल राखी में आती हैं और श्याम की जेब खाली करने पर तुली रहती हैं और श्याम आखरी में अपनी जेब खाली करके ही जाता है. वह अपनी बहनों को कहता है- तुम सबने मेरी जेब खाली कर दी है अब मैं टिकट कैसे खरीदूँगा ? तुम्हीं लोगों से उधार मॉग कर टिकट लेना पडेगा.

उधर श्याम की हालत दिन-ब-दिन ढीली होती जा रही है. सीने से गोली निकालते समय बहुत खून बह गया है, खून चढाया गया है फिर भी हालत बिगडती ही जा रही है.
आज राखी है. सुभद्रा ने ऑगन में फूलों की पंखुडियों से अल्पना बनाई है और उस पर पीले गुलाब की पंखुडियों से अपने भाई का नाम लिखा है. उसने छुहारे की खीर और आटे का हलुवा भी मूँगफली डाल कर बना लिया है. उसकी सभी सहेलियॉ भी आ गई हैं और सभी ऑगन में बैठ कर श्याम का इन्तज़ार कर रही हैं. सभी के पेट में चूहे दौड रहे हैं पर भाई को राखी बॉधे बिना वे कुछ खायेंगी नहीं.

तभी अचानक गाडी की आवाज़ सुनाई दी.खिलखिलाती हुई सभी लडकियॉ दौड कर बाहर निकलीं. उन्होंने देखा कि चार - पॉच गाडियॉ उनके घर के पास खडी हो गई हैं. सभी गाडियॉ सफेद रंग की हैं. सभी बहनें भाई की आगवानी के लिए गाडी के पास जाकर खडी हो गईं, पर श्याम बाहर क्यों नहीं आ रहा है ? तभी सुभद्रा ने ज़ोर से कहा-' भाई ! यदि तुम जल्दी से बाहर नहीं आए तो मैं रो दूँगी, भाई ! तुम शुभ-मुहूर्त में आ गए हो, तुमने अपना वचन निभाया है, अब तुम जल्दी से बाहर आ जाओ.' तभी गाडी का पिछला दरवाज़ा खुला, जिसमें श्याम तिरंगे  में लिपटा हुआ चुपचाप सो रहा था और उसके ऊपर फूल- मालायें बिखरी हुई थीं.                               

Sunday 9 August 2015

वन्दे मातरम

बादल गरज रहे हैं बिजली चमक रही है . इन्द्रदेव अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ सज धज कर नभ जल का प्रसाद दे रहे हैं . नदियॉ तालाब खुश होकर लहरों के माध्यम से अपनी खुशी का इज़हार कर रहे हैं और गोंदा डर के मारे अपनी मॉ की छाती से चिपक कर पूछ रही है ' मॉ पानी बरसना कब बन्द होगा ? मुझे ज़ोर से भूख लग रही है मॉ कुछ खाने को दो न !' गोंदा बचपन से कानी है पर पता नहीं चलता है बिना बताए कोई नहीं जान सकता कि वह कानी है . मॉ ने उसे चार - पॉच तेन्दू दिए और कहा- ' ले बेटा! तू खा ले.' चार बरस की गोंदा खुश होकर तेन्दू खा रही थी कि अचानक बहुत तेज हवा आई और उनके तम्बू को उडा कर ले गई.चंदा अपनी बच्ची को पकड कर पीपल के पेड के नीचे खडी हो गई . उनके साथ बादल नाम का उनका कुत्ता भी था . छोटू- मोटू नाम के दो बन्दर भी थे . यही तो गोंदा के दोस्त हैं वह अपने दोस्तों के साथ खेलने लगी.

गोंदा के परिवार के साथ-साथ दस - बारह देवार- देवरनिन तम्बू तान कर कोसला गॉव के भॉठा में तीन दिनों से रह रहे थे. अभी जब सभी का तम्बू ऑधी में उड गया तो सबने आस-पास के पेडों के नीचे शरण ले ली है. इनकी आजीविका का प्रमुख साधन- गोदना, नाचना-गाना,सुअर और बन्दर पालना आदि हैं. देवार - जाति नट-नटी का करतब दिखा कर लोगों का मनोरंजन करते हैं और बदले में लोग इन्हें कुछ दे दिया करते हैं,इसी से इनका पेट भरता है.पुरखों से इनकी यह परम्परा चली आ रही है कि वे घर नहीं बनाते. वे चार - दीवारी के भीतर क़ैद होकर जीना पसन्द नहीं करते अपितु चलते- चलते जहॉ भी रात हुई वहीं अपना तम्बू - तानकर रात बिता लेते हैं पर गोंदा की मॉ चन्दा ने सोचा-'हमारा जो पुश्तैनी काम है वह मुझे रास नहीं आ रहा है. मैं अपनी बच्ची को पढाना चाहती हूँ उसे अच्छा नागरिक बनाना चाहती हूँ. मैं चाहती हूँ कि वह जहॉ भी रहे अपने देश का नाम उज्ज्वल करे,देश- धर्म सीखे.उसके बापू तो नहीं रहे अब मैं ही उसकी मॉ भी हूँ और बाप भी हूँ.' चन्दा अपने मन की बात कबीले के सभी सदस्यों को बताई तो कबीले के सरदार ने कहा- ' चन्दा बिल्कुल ठीक कह रही है. हम लोगों को अपनी ज़िद छोडनी होगी. परम्परा की तुलना में विवेक को महत्व देना होगा. इसी में हमारा और हमारे बच्चों की भलाई है.

देवारों का पूरा कुनबा देश की मुख्य-धारा से जुडने के लिए शहरों के आस-पास बस गया है. भगवान ने उन्हें मेहनत-क़श तो बनाया ही है उन्हें प्रतिभा का वरदान भी खूब दिया है.गोंदा अब स्कूल जाने लगी है,साथ -साथ वह भरत-नाट्यम् भी सीख रही है.उसके ऊपर ईश्वर की विशेष-कृपा है. नृत्य-कला की सभी खूबियॉ गोंदा को अनायास ही मिल गई हैं. उसकी ऑखें,उसका चेहरा उसके हाव-भाव को सजीव कर देता है.

हम सब काम करते-करते थक जाते हैं और थक -कर सो जाते हैं पर काल-चक्र कभी नहीं थकता,वह निरन्तर चलता रहता है. एक-एक दिन करते-करते कई-बरस बीत जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता. समूची परिस्थितियॉ बदल जाती हैं. गोंदा, खैरागढ संगीत विश्व- विद्यालय में पढती है. भरत-नाट्यम् में ग्रेज़ुएट हो चुकी है, इतना ही नहीं वह भरत-नाट्यम् में जानी-मानी हस्ती भी बन चुकी है. उसकी टीम में चौबीस-लडकियॉ हैं. सभी एक से एक हैं, प्रतिभाशालिनी हैं. उनकी संस्था का नाम है 'वन्दे-मातरम्.' महीनों पहले उनके कार्यक्रमों की बुकिंग हो जाती है. पिछले महीने फ्रॉस के पैरिस में उनका कार्यक्रम था. उन्हें शोहरत और दौलत इफरात मिल रही है.अभी चौदह अगस्त को दिल्ली में उनका कार्यक्रम है, जिसमें गोंदा,सिंह-वाहिनी, भारतमाता के रूप में प्रस्तुत हो रही है,उसके इस कार्यक्रम का नाम है-'वन्दे-मातरम्.'                            

Thursday 30 July 2015

प्रेमचंद - पुण्यतिथि के पावन पर्व पर

           मुंशी प्रेमचंद 

मुंशी प्रेमचंद कह हम तुम्हें पुकारते हैं 
          नमक का दरोगा हमें याद बहुत आता है ।

शील दया करुणा सभी गुणों के स्वामी तुम
           कर्मभूमि - पथ  का  पाथेय बन जाता है ।

प्रेम - पगे शब्द तेरे अजर - अमर हुए 
            होरी धनिया के साथ साथ हम चलते हैं ।

मन में मगन इतिहास रच गए हो तुम 
           पंच परमेश्वर की खाला को याद करते हैं ।

चंदा - चॉदनी में तुम आज भी चमकते हो 
            बूढी काकी आज हमें रास्ता दिखाती है ।

दस - दफा पढी ईदगाह की वही कहानी 
            हामिद के चिमटे की याद बहुत आती है । 



Wednesday 22 July 2015

वसुधा है परिवार हमारा

कर्म - योग  की  महिमा - अद्भुत  कर्मानुरूप मिलता है फल
शुभ - कर्मों  का  फल  भी शुभ है आज नहीं तो निश्चय कल ।

परमात्मा  है  सब के  भीतर  हम - सब हैं उसकी - सन्तान
हमसे अलग  नहीं  है  वह  भी  सबके  मन  में  है  भगवान ।

सत्पथ - पर  हम  चलते जायें मञ्जिल हमें ज़रूर मिलेगी
भले ही रात अमावस की हो सुबह कमल की कली खिलेगी ।

सर्व - व्याप्त  है  वह  परमात्मा  वह  ही  है  प्राणों  का प्राण
मेरे - मुख  से  वह  कहता  है  सबके - मन  में  है भगवान ।

वसुधा  है  परिवार - हमारा आओ  निज कर्तव्य - निभायें
पर - हित  में  ही  हित  है  मेरा यही बात सबको समझायें ।

मानव जीवन अति दुर्लभ है यह प्रभु की सुन्दरतम रचना
तुम  सबको  सुख  देते  रहना  पर - पीडा  से  बचते रहना ।

प्रेम  में  बसता  है  परमात्मा  प्रेम  ही है उसकी - पहचान
सभी  परस्पर - प्रेम  करें  हम  सबके  मन  में है भगवान ।

कण - कण में है वास प्रभु का वह सब  कर्मों का  साक्षी है
प्रेम का पाठ - पढाता सबको घट - घट का वह ही वासी है ।

कर्म - प्रधान विश्व यह अद्भुत इसकी महिमा को हम जानें
सबके - सुख  की  बात  करें हम सबकी पीडा को पहचानें ।

दिव्य - गुणों  का  वह  स्वामी  है देता है सब को अनुदान
भाव  का  भूखा  वह  परमात्मा सबके मन में है भगवान ।

सहज  सरल व्यवहार हमारा परमात्मा को प्यारा लगता
वह भी उसको दण्डित करता जब अपनों को कोई ठगता ।

मन  में उज्ज्वल - भाव  सदा हो जीवन बन जाए वरदान
सत्पथ - पर  हम चलें निरन्तर सबके मन में है भगवान ।

अमर है आत्मा परमात्मा  भी काया है सबकी - नाशवान
इससे  स्वयं - सिद्ध  होता  है  सबके - मन में  है भगवान ।

Sunday 12 July 2015

रथ द्वितीया के पावन - पर्व पर

                     जगन्नाथ  [ कहानी ]


" मॉ ! भूरी - काकी की जो बेटी है न ! राधा , वह रोज एक गिलास दूध - पीती है । मॉ ! दूध कैसा लगता है ? चार - बरस की पुनियॉ ने अपनी मॉ से पूछा । मॉ की ऑखों में ऑसू आ गए पर वह कुछ बोली नहीं । बच्ची का ध्यान भटकाने के लिए मॉ ने कहा - " पुनिया ! देख तो तेरे हाथ - पैर में कितनी धूल लग गई है , चल तो तुझे ठीक से नहला दूँ । मैं भी तो देखूँ - मेरी बिटिया , नहाने के बाद कितनी सुन्दर दिखती है ! " कमला, पुनिया को नहलाने लगी पर पुनियॉ का पूछा हुआ सवाल अब भी उसके देह में , तीर की तरह चुभ रहा था । पति की रोज - रोज की मार - पिटाई पर , बच्ची का सवाल भारी पड रहा था । वह लहुलुहान हुई जा रही थी । उसने सोचा - " मैं पॉच - बरस से यह तिरस्कार सह रही हूँ , यदि आज मैंने इसका प्रतिकार नहीं किया तो मेरी बेटी की जिंदगी भी , मेरी तरह बिखर जाएगी । उसका जीवन भी बर्बाद हो जाएगा । 

कमला ने पीछे - पलट कर देखा - " पॉच - बरस पहले , कटक के इसी घर में मैं ब्याह - कर आई थी । मॉ - बाबा ने कितने सुन्दर गहने और कपडे दिए थे । तरह - तरह के गहने और रेशमी - साडियों में लिपटी मैं कितनी सुन्दर दिखती थी । मॉ - बाबा ने दहेज में , दो बीघा ज़मीन भी दी थी पर पति ने शराब के नशे में सब कुछ गँवा  दिया । उसका बस चले तो वह हमें भी बेच दे । उसने अपने आप से कहा - देख कमला ! तुमने बहुत सहा , पत्नी का कर्तव्य - निभाया पर रक्षक ही यदि भक्षक बन जाए तो उसे त्याग देने में ही भलाई है , अन्यथा अनर्थ हो जाएगा ।" उसने भगवान जगन्नाथ से व्याकुल मन से विनती की -
 " हे जगन्नाथ ! तुम जगत के नाथ हो , हम तुम्हारे बच्चे हैं । तुम्हारे होते हुए दुनियॉ में कभी कोई बच्चा अनाथ न होने पाए , तुम सबकी रक्षा करना भगवान ।"

कमला ने अपने ऑसुओं को पोछा और सोचा - रोज़ - रोज़ भूखी रह - रह कर इधर मेरी तबियत भी बिगडने लगी है और फिर फूल सी मेरी बेटी का भूख से व्याकुल होकर रोना मैं नहीं सुन सकती । कमला ने पुनिया से कहा - " जा तो बेटा ! भूरी - काकी को बुला -कर ले आ । उससे कहना कि अम्मॉ बुला रही है ।" पुनिया दौडती हुई गई और पडोस की भूरी - काकी को साथ लेकर आ गई । कमला उससे लिपट - कर जोर - जोर से रोने लगी । थोडी देर में सहज हुई तब उसने धीरे से कहा - " मैं घर छोड - कर जा रही हूँ भूरी ! तुम कविता से बात कर लो , मैं उसके साथ काम करना चाहती हूँ । " भूरी ने कविता से बात की तो कविता खुश हो गई और उसने कहा -" कमला को आज ही लखनऊ भेज दो , मैं उसे स्टेशन पर लेने आ जाऊँगी ।" भूरी जल्दी - जल्दी टिकट कटाईऔर कमला के हाथ में दे दी । रास्ते में खाने के लिए पराठा और आम का अचार भी भूरी ने कमला के हाथ में दिया क्योंकि वह जानती थी कि पुनिया को पराठे के साथ आम का अचार बहुत पसन्द है । कमला ने अपनी साडी और पुनियॉ का फ्रॉक रखा और रोती हुई , अपना घर छोड - कर स्टेशन की ओर चली गई । 

पुनियॉ खिडकी के पास बैठ कर बाहर देख - देख कर खुश होती रही पर कमला की ऑखों के ऑसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे । वह अपने ऑसुओं को जितना छिपाने की कोशिश करती वह उतनी ही तेजी से बहे जा रहे थे । उसने पीछे झॉकने की कोशिश की तो मोहित का चेहरा दिखने लगा-  " वह क्या खाएगा ? कैसे जिएगा मेरे बिना ? वह व्याकुल हो गई । सोचने लगी कि घर वापस चली जाए । उसने सोचा  पुनिया से बात करके देखती हूँ - "पुनिया ! बाबा के पास वापस चलें क्या बेटा ? " पुनिया जोर - जोर से चिल्लाने लगी - नहीं ! कभी नहीं मॉ । मुझे बाबा अच्छे नहीं लगते । वे मुझे बिल्कुल प्यार नहीं करते । मेरी सभी सहेलियों के बाबा उनको नए - नए कपडे और खिलौने ला - ला कर देते हैं पर मेरे बाबा ने मुझे कभी एक चॉकलेट भी ला कर नहीं दिया । कभी मुझसे प्यार से बात भी नहीं किये । मैं उनके पास कभी नहीं जाऊँगी और मॉ तुमने भी तो मुझे कभी नए कपडे नहीं दिये , मैं तुमसे भी नाराज़ हूँ । " पुनिया रोने लगी । बडी मुश्किल से कमला ने उसे चुप कराया और कहा - " देखना !  अब मैं तेरे लिए क्या - क्या करती हूँ ? तुझे तेरी पसन्द के कपडे पहनाऊँगी और तेरी ही पसन्द का खाना बनाऊंगी ,समझी ! तू तो मेरी रानी बेटी है न ? 

लखनऊ स्टेशन आ गया । कमला; पुनिया को लेकर ट्रेन से उतर रही है । कविता उसे लेने आई है , साथ में पुनिया के लिए दो - दो सुन्दर फ्रॉक और सुन्दर खिलौना भी लाई है । आते ही सबसे पहले कविता ने पुनिया को गोद में ले लिया और फिर उसे बिस्किट और चॉकलेट दिया फिर उसे खिलौना और कपडे दिए । रास्ते - भर कविता , कमला से बातें करती रही दोनों में पहले से ही दोस्ती थी । पुनिया रास्ते भर अपने नए - नए कपडे और खिलौने के साथ खेलती रही । घर पहुँचते ही कविता ने कमला को एक - कमरे का घर दिखाया और कहा - " यह तुम्हारा कमरा है । तुम लोग नहा - धो कर नाश्ते के लिए ऊपर आ जाना । मैं वहीं तुम दोनों का इन्तज़ार कर रही हूँ । पुनिया बहुत खुश थी । नहा - कर उसने पहली - बार नई - फ्रॉक पहनी है । उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है । दोनों ने ऊपर जाकर नाश्ता किया । कमला के समान 110 महिलायें वहॉ काम करती हैं । कविता कामकाजी कर्मचारियों को टिफिन पहुँचाने का काम करती है । सबका काम बँटा हुआ है और सब मिल - जुल कर , परिवार की तरह रहती हैं । कविता ने पुनिया को बाल - मन्दिर में प्रवेश दिलवा दिया है । वहॉ उसे बहुत सी सहेलियॉ मिल गई हैं । वह बहुत खुश रहती है । बडे - मन से वह पढाई भी करती रहती है ।

हम सब दिन - भर काम करते - करते थक जाते हैं और रात में सो जाते है पर काल - चक्र कभी नहीं थकता , वह निरन्तर चलता रहता है । कमला के बाल - सफेद होने लगे हैं । आज - कल  वह कम्पनी की मैनेज़र है । पुनिया एम बी ए करके कविता की कम्पनी में काम करने लगी है । वह माकेटिंग का काम देखती है । पुनीत नाम का एक लडका भी , पुनिया के साथ ही काम करता है । ऐसा लगता है कि पुनीत और पुनिया एक - दूसरे को पसन्द करने लगे हैं । आज पुनिया का जन्म - दिन है । कविता ने उसके जन्म - दिन की शानदार तैयारी की है । जैसे ही पुनिया ने केक काटा , पुनीत ने उसे लाल - गुलाब भेंट किया और सबके सामने शर्माते हुए कहा है - " आई लभ यू पुन्नी ।" पुनिया का चेहरा शर्म से लाल हो गया और फिर सभी समझ गए कि दोनों एक - दूसरे को प्यार करते हैं ।

आज पुनीत के माता - पिता , पुनिया की मॉ से मिलने आए हैं । वे पुनिया के लिए कई तरह के गहने , बनारसी - साडियॉ और ढेर - सारी मिठाइयॉ लाए हैं । कविता , कमला और पुनीत के माता - पिता ने पण्डित जी से पूछ - कर , शादी की तारीख पक्की कर ली है । अक्षय - तृत्तीया को उनकी शादी है ।

आज पुनिया और पुनीत की शादी है । घर दुल्हन की तरह सजा हुआ है । दूल्हा - दुल्हन , सज - धज कर मण्डप की ओर जा रहे हैं । सखी - सहेलियॉ पुनिया से परिहास कर रही हैं साथ ही सखियों की नज़र पुनीत के जूतों पर भी है । कमला वहीं पर बैठी है और सोच रही है कि उसे अकेली ही कन्या - दान करना पडेगा । सबको क्या बताएगी ? यही सब सोच रही थी कि पण्डित जी ने कहा - " कन्या के माता - पिता , कन्या - दान के लिए मण्डप पर आ जायें ।" कमला उठ ही रही थी कि उसके पास सफेद - पाजामा - कुरता पहने , गले में अँग - वस्त्र लपेटे , एक सुदर्शन - पुरुष आकर खडा हो गया । उसने अपना हाथ कमला की ओर बढाया , कमला हिचकिचा रही थी पर उसने कमला का हाथ पकड - कर  उसे उठाया । कमला ने उसे ध्यान से देखा , वह मोहित था । हाथ जोड -कर माफी मॉग रहा था । पुनिया , माता - पिता को साथ देख - कर खुश हो रही थी । दोनों ने कन्या - दान किया । इस दृश्य को देख - कर सबकी ऑखें नम थी । भगवान जगन्नाथ ने कमला की प्रार्थना सुन ली थी ।   

 


Thursday 2 July 2015

बांझ



       बांझ [ कहानी ]  

जैसे ही मॉ के शरीर में हलचल हुई , बच्ची ने अपनी मॉ से तुरन्त पूछा - " मॉ ! रात में तुझे बाबा डंडे से मार क्यों रहे थे ? " मॉ ने जवाब नहीं दिया पर ऑखों से ऑसू ढलकते रहे । कराहने की चीत्कार यह बता रही थी कि अभी वह खतरे से बाहर नहीं है । बच्ची सहम गई , वह फूट - फूट कर रोने लगी । मॉ के सिर से अभी भी खून बह रहा है । चार - बरस की बच्ची , रात - भर मॉ के सिरहाने पर बैठी रही और कब उसकी ऑख लग गई , वह नहीं जानती । जागने पर उसने देखा कि उसकी मॉ अब तक सो रही है । मॉ ने रानी से कहा - " जा भूरी - काकी को बुला - कर ले आ ।" थोडी देर में भूरी - काकी के साथ रानी आ गई । भूरी ने जब देखा कि सिर से खून बह रहा है , उसने तुरन्त नर्स - दीदी को बुलाया और सिर पर पट्टी बँधवा दी । भूरी ने भीतर जा कर देखा कि खाने को कुछ भी नहीं है तो अपने घर से थोडा सा चॉवल ले आई और खिचडी बना - कर सहोदरा और रानी को खिला दिया , और सहोदरा के पास जाकर बैठ गई । सहोदरा , भूरी को पकड - कर बहुत रोई और भूरी से बोली - " अब मैं यहॉ नहीं रह सकती भूरी । यह मुझे और मेरी बच्ची को मार डालेगा । "

  " कहॉ जाएगी तू ? " भूरी ने रोते - रोते पूछा ।
" कहीं भी चली जाऊँगी पर इसके साथ नहीं रहूँगी "
भूरी ने उससे पूछा - " उज्जैन जाएगी ? वहॉ मेरी बहन रहती है । तू तो उसे जानती है , वह पढने वाले बच्चों के लिए टिफिन बना - कर बेचती है । उसके साथ काम करेगी ? "
" हॉ मैं उसके साथ काम करूँगी " सहोदरा ने कहा ।
भूरी ने अपनी बहन अँजोरा से बात की तो अँजोरा ने कहा - " तुरन्त भेज दो ।"
      भूरी ने सहोदरा और रानी को ट्रेन में बिठा दिया । सुबह - सुबह सहोदरा अपनी बच्ची के साथ उज्जैन पहुँच गई । अँजोरा उसे स्टेशन पर लेने आई है । दोनों एक - दूसरे से परिचित हैं । कई बार भूरी के घर दोनों मिल चुकी हैं । अँजोरा निस्संतान है । उसका पति उसे ठडगी कह - कर बहुत अपमानित करता था और अचानक उसे छोड - कर किसी दूसरी के साथ कहीं चला गया ।

  घर पहुँचते ही अँजोरा ने सहोदरा को एक कमरा दे दिया और कहा - " तुम दोनों नहा - धोकर आओ फिर एक साथ नाश्ता करेंगे । " सहोदरा ने बरसों - बाद इतने इतमिनान से नहाया और रानी को भी प्यार से नहलाया । सहोदरा आज ऐसा अनुभव कर रही थी मानो उसका दूसरा जन्म हुआ हो । देह में दर्द अभी भी बहुत था पर फिर भी वह हल्का महसूस कर रही थी ।

नाश्ता करते - करते अँजोरा ने सहोदरा से कहा - " सहोदरा इसे अपना घर समझना । हम दोनों मिल - कर काम करेंगे और रानी - बिटिया को खूब पढायेंगे । " सहोदरा ने कुछ कहा नहीं पर दोनों की ऑखें भीगी हुई थी । सहोदरा और रानी वहॉ आराम से रहने लगे । अँजोरा और सहोदरा दिन भर टिफिन बनाने के काम में लगी रहती हैं । इन्हीं के समान दस - महिलायें भी वहॉ काम करती हैं । सबको एक - एक कमरा मिला है जहॉ वे अपने बच्चों के साथ रहती हैं । रानी आज - कल , ऑगन - बाडी में जाने लगी है । उसकी पढाई - लिखाई की पूरी जिम्मेदारी अँजोरा ने ले ली है ।

मनुष्य दिन - भर काम करता है और रात में थक - कर सो जाता है पर काल - चक्र नहीं थमता वह निरन्तर चलता रहता है । एक - एक दिन करते - करते कितने मौसम आए और चले गए ।
आज उज्जैन में " खीर - सोंहारी " नाम का एक रेस्टोरेंट है , जिसकी मालकिन अँजोरा है । आप वहॉ चाहे कुछ भी ऑर्डर करें , एक - कटोरी खीर , उपहार में मिलती है । सहोदरा जैसी 99 महिलायें वहॉ काम करती हैं । अभी सहोदरा वहॉ की मैनेज़र बन चुकी है । आज " खीर - सोंहारी " रेस्टोरेंट का स्थापना - दिवस है । यहॉ उत्सव का माहौल है । एक बहुत बडी खुश - खबरी भी है । सहोदरा की बेटी , रानी होटल - मैंनेज़मेंट में ग्रेजुएशन करने के बाद आज पहली - बार मॉ से मिलने आ रही है । सहोदरा आरती की थाल लेकर गेट पर , रानी की अगुवाई करने के लिए खडी है । रानी आ गई , वह मॉ से मिली फिर रानी की ऑखें किसी को खोजने लगीं , फिर धीरे से उसने अपनी मॉ से पूछा - " बडी मॉ कहॉ है ?" तभी अँजोरा सामने आई और उसने रानी को गले से लगा लिया और कहा - " बस अब इस रेस्टोरेंट को तू संभाल । तू मेरी रानी बेटी है न ! तू ही तो मेरी " सेन्चुरी "  है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग.]