Monday 23 March 2015

क्वाला लम्पुर में एक लडकी

क्वाला - लम्पुर  में  एक  लडकी  बेच  रही  थी आइसक्रीम
हँस - हँस कर वह कहती सबको खाओ आइसक्रीम सलीम ।

एक - हाथ  ही  था  लडकी  का  पर  चेहरे  पर  थी मुस्कान
'खाओ  तुम आइसक्रीम  हमारा  तुम  हो  मेरे  ही मेहमान ।

दो - रिंगिट  है  इसकी  कीमत तुम खाकर देखो एक - बार
टेस्टी  हो  तब  रिंगिट देना'  लडकी  कहती  थी  बार - बार ।

हम  सब  ने  तो  सोच  लिया  था आइसक्रीम सभी खायेंगे
दो - रिंगिट  ही  देंगे  उस  को  दाम  नहीं  कम - करवायेंगे ।

लडकी  ने  फिर  हमें  बताया  'मैं  भी  तो  हूँ  हिन्दुस्तानी
पूर्वज  यहॉ  बसे  थे आ -  कर  यही  कहा  करती  है  नानी ।'

लाजो  नाम था उस लडकी का हिन्दी बढिया बोल रही थी
सुन्दर  सुघर  सलोनी थी वह हम सबको वह तौल रही थी ।

'लाजो  घर  में  कौन - कौन हैं ' 'मैं  मॉ के साथ में रहती हूँ
मेरी अम्मा   सर्विस  करती  है  मैं  आइसक्रीम  बेचती  हूँ ।'

'पीडा  सबकी  एक  है लाजो हो मलेशिया या हिन्दुस्तान
चलो  बुलाता  देश  तुम्हारा एक ही मॉ की हम - सन्तान ।'

लाजो  की ऑखों  में ऑसूँ  थे अपने - पन ने उसे रुलाया
अपने  वतन  लौट आए  हम  पर  लाजो को नहीं भुलाया ।

मन  से  कितनी  समर्थ है लाजो यद्यपि तन से है लाचार
कर्म - मार्ग  पर  जो  चलता  है उसका होता है बेडा - पार ।


Sunday 22 March 2015

परिचय - पत्र


नाम - शकुन्तला शर्मा
जन्म - कोसला , जिला - जॉजगीर - चॉपा [ छ. ग. ]
शिक्षा - एम. ए. [ संस्कृत, हिन्दी ] बी. एड. सिद्धान्तालंकार, विद्यावाचस्पति [ मानद ]
रचना - धर्मिता- 1962 में " भारतवर्ष हमारा है " शीर्षक से पहली कविता लिखी । 1964 से स्फुट - कवितायें , यत्र - तत्र , विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित ।

छत्तीसगढी

1-' चंदा के छॉव म' [ कविता - संग्रह ] बारह - मासा एवम् अष्टॉग - योग की छन्द - बद्ध , व्याख्या ।
2-' कोसला' [ कविता - संग्रह ] कौशल्या की जन्म - भूमि कोसला , छत्तीसगढ में राम , शबरी - वर्णन ।
3- 'करगा' [ लघु - कथा संग्रह ]
4- ' बूड मरय नहकौनी दय ' गज़ल - संग्रह ।
5- ' चन्दन - कस तोर माटी हे ' [ लोक - धुन पर आधारित - गीत ]
6 - ' कुमारसम्भव ' [ महाकाव्य ]

हिन्दी

1-' ढाई - आखर '[ कविता - संग्रह ]
2- ' लय ' [ गीत - संग्रह ] षड - ऋतु - वर्णन , चारों - वेदों का संक्षिप्त - परिचय ।
3- 'संप्रेषण ' [ गीत - संग्रह ] ईश , केन , कठ , प्रश्न , मुण्डक , माण्डूक्य एवम्  ऐतरेयोपनिषद् का संक्षिप्त         परिचय ।
4 - ' इदं न मम' [ निबंध - संग्रह ]
5 - ' भारत - स्वाभिमान ' [ महाकाव्य ] 
6- ' बेटी - बचाओ ' [ विकलॉग - विमर्श ' - आख्यान - गीत ] 

अनुवाद

1 - 'शाकुन्तल ' कालिदास के ' अभिज्ञान शाकुन्तलम् ' का भाव - पद्यानुवाद ।
2 - ' कठोपनिषद् ' प्रत्येक मन्त्र की छन्द - बद्ध - व्याख्या ।
3- ' रघुवंश ' [ महाकाव्य ] कालिदास के 'रघुवंश' महाकाव्य का भाव - पद्यानुवाद । 
4- ' चाणक्य - नीति ' [ भाव - पद्यानुवाद , हिन्दी , छत्तीसगढी ]
5 - ' विदुर - नीति ' [ भाव - पद्यानुवाद , हिन्दी , छत्तीसगढी ] 
6 - ' ऋग्वेद ' नवम एवं दशम मण्डलम् [ भाव - पद्यानुवाद , हिन्दी ]
7 - 'ऋग्वेद' सप्तम एवं अष्टम मण्डलम् [ भाव - पद्यानुवाद - हिन्दी ]

अलंकरण 

1 - राजभाषा प्रशस्ति - पत्र [ स्टील अथॉरिटी ऑफ इन्डिया लिमिटेड ] ।
2 - गीत - विधा के लिए -  कुँवर वीरेन्द्र सिंह सम्मान ।
3 - ताज़ - मुगलिनी सम्मान ।
4 - भारती - रत्न अलंकरण । 
5 - पं. माधव राव सप्रे साहित्य - सम्मान ।
6 - दीपाक्षर - सम्मान । 
7 - रोटरी क्लब द्वारा शिक्षक - सम्मान ।
8 - द्विज - कुल गौरव अलंकरण । 
9 - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय - सम्मान ।
10- अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन में छत्तीसगढी हेतु विशिष्ठ - सम्मान ।
11- प्रशस्ति - पत्र [ छत्तीसगढ राजभाषा आयोग ] ।
12- त्रिवेणी साहित्य - सम्मान । 
13- प्रशस्ति - पत्र , न्यूज़ - पेपर्स एन्ड मैंगज़ीन्स फेडरेशन ऑफ इन्डिया ।
14 - श्री लंका में  ' Sanghmitra Of  The Age ' अलंकरण ।
15- थाईलैंड में  ' The Blessed Juno '  अलंकरण ।
16- मलेशिया में  ' Lady Of  The Age '  से सम्मानित ।
17- सेंट पीटर्सबर्ग में ' Minerva Of The East ' अलंकरण ।   

सम्प्रति

1- संपादक ' सरयू - द्विज ' छत्तीसगढ ।
2- देश - विदेश में काव्य - पाठ द्वारा जन - जागरण ।
3- विकलॉग - चेतना हेतु साहित्य - सृजन । राष्ट्रीय एवम् अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भागीदारी ।
4- 1984 में टेबल - टैनिस की छत्तीसगढ महिला एकल विजेता ।
5- 1984 में टेबल - टैनिस की छत्तीसगढ महिला युगल विजेता - शकुन्तला शर्मा - कोकिला वर्मा । 

सम्पर्क 

288 / 7 मैत्रीकुँज , भिलाई , दुर्ग [ छ. ग. ]

मो. 93028 30030
ई- मेल - mailtoshakun@gmail.com
ब्लॉग - shaakuntalam.blogspot.in
          gurmatiya.blogspot.in 
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]     
 
 
 

Saturday 21 March 2015

केरल कितना हरा - भरा है

केरल कितना हरा - भरा है खाने को मिलता काजू -केला
ओणम  में  केरल आ जाओ घर - ऑगन में लगता मेला ।

केरल में रहती है कविता पर उसके दोनों - हाथ  नहीं  हैं
पॉव - हाथ  बन  गए  हैं उसके हो जाता हर काम सही है ।

कविता खुश है आज है ओणम नवा धान पाने का अवसर
ऑगन में अल्पना सजेगी चौक  फूल  से  बनती अक्सर ।

कविता  ने  अपने ऑगन  में  फूलों  से अल्पना - बनाई
फिर  पत्तों  को ऑचल  जैसे  वह अपनी अल्पना सजाई ।

इतनी सुंदर बनी अल्पना अद्भुत अद्वितीय और अनुपम
उसकी कला के कायल सब है  बनी अल्पना  सुन्दरतम ।

दुनियॉ भर में अब है चर्चित कविता की वह सुंदर रचना
कविता ने सोचा भी न था कभी भी ऐसा सुन्दर - सपना ।

हर  कोई  यह  जान  गया  है नहीं  हैं उस के दोनों - हाथ
फिर  भी लडकों में होड मची है सभी चाहते उसका साथ ।

कविता बोझ बनी थी घर पर आज सभी को है अभिमान
पॉच - लाख देकर केरल ने किया है कविता का सम्मान ।

वैभव - लक्ष्मी घर में आई घर का  बदल  गया  व्यवहार
कल  तक  भोजन  के  लाले  थे अब  मिलता है फलाहार ।

शब्द - सयाना  सा  लडका है वह कविता से करता प्यार
दो -  बीघा  ज़मीन  है  उसकी  कर  बैठा  है  वह  इज़हार ।

दोनों  का  घर आसपास  है  एक - दूजे  से  वे परिचित हैं
शब्द  भा  गया  है  कविता को आगे दोनों की किस्मत है ।

घर  भी  खुश  है  इस  रिश्ते  से  बहुत  पुरानी  है पहचान
गुण - दोषों  पर  भारी पडता गुण की परख भी है आसान ।

फिर अल्पना बनेगी सुन्दर कविता का है आज निश्चयम
दूल्हा - सजा - धजा  बैठा  है  बाराती  हैं  आप  और  हम ।  

Wednesday 18 March 2015

उपहार

कोलकाता में एक लडकी है उस बच्ची का प्रिया नाम है
प्रिया  के  दोनों  हाथ  नहीं हैं उस पर टूटा - आसमान है ।

प्रिया बोझ है पिता के लिए मॉ भगवान को हो गई प्यारी
प्रिया  बहुत  ही  समझदार  है  ईश्वर  की लीला है न्यारी ।

उसके पॉव ही हाथ बन गए पेपर - पेन्सिल से लिखती है
अनजाने  में  कुछ चित्र बन गए प्रिया उसी से बोलती है ।

अभ्यास ही सबसे बडा गुरु है उसका तो बस वही है खेल
घर  में अकेली  ही  रहती  है  है  पेपर - पेन्सिल  से मेल ।

कुत्ता - बिल्ली बहुत बनाई और  बनाई सुन्दर - चिडिया
पॉव  में आती  गई  सफाई  चित्र बने हैं बढिया - बढिया ।

एक  दिन  मॉ  का  चित्र  बनाई  रोना आया उसे देखकर
पिता को उसने दिखलाया है सुंदर कहा पिता ने हँस कर ।

पंख  लग  गए तभी प्रिया के उसे मिल गई है सञ्जीवनी
उसने  पिता का चित्र बनाया कला में होती ऊर्जा कितनी ?

बहुत खुश हुए पापा उसके ड्राइंग का दिया सभी - सामान
अब तो प्रिया की बन आई है अब चित्र बनाना है आसान ।

उसने  मोदी  का चित्र बनाया वह चित्र बहुत ही सुन्दर है
फिर पिता ने नेट में डाल दिया यह एक अद्भुत अवसर है ।

नरेन्द्र - भाई ने इसको देखा 'अद्भुत है यह कौन बनाया '
जब  मोदी  जी ने पता किया तब पूरा सच सामने आया ।

कोलकाता आ  गए  हैं  मोदी  प्रिया से उनको मिलना है
प्रिया के घर पर भीड लगी है प्रिया को भी कुछ कहना है ।

' कलाकार  है  प्रिया  हमारी मैं लेकर आया हूँ  पुरस्कार
आज  से  यह  मेरी  बेटी  है' मिला कला को यह उपहार ।

'कला में यह बच्ची प्रवीण है बच्ची का हो सदा उन्नयन
हर  सुविधा  उपलब्ध  इसे  हो हँसता हुआ मिले ऑगन ।'

बच्ची  हँसती  है जोर - जोर  से और ठुमकने  लगती  है
किंतु ऑख सबकी भर आई भरी ऑख भी कुछ कहती है । 

Sunday 15 March 2015

कल्हण का काश्मीर

कल्हण के कश्मीर का केशर कितना सुंदर कितना सुखकर
' राजतरंगिणी ' की तरंग भी सब कुछ कहती है चुप रह कर ।

' मैं  तो  कालजयी - रचना  हूँ  कोई  मुझे  भूल नहीं सकता
अद्भुत - निधि  हूँ  मैं  पूर्वज की हर कोई अभिनन्दन करता ।

पहल - गॉव  की  बात  बताऊँ आओ  अब  वहॉ  घुमा लाऊँ
जाफरीन  नामक  लडकी  है  उस  बच्ची  की  बात - बताऊँ ।

देख  नहीं  सकती  है  बच्ची  पर  करती  है  मन्त्र -उच्चार
वैदिक - मंत्र  याद  हैं  उसको  वेद -  ऋचा  से  करती  प्यार ।

ऑखें  सुन्दर  हैं  दृष्टि  नहीं  है  पर  बडे  ध्यान से सुनती है
जो  भी  एक - बार  सुनती  है उसको  फिर मन में गुनती है ।

फिर  हू - ब - हू उसे  दोहराती अचरज  करते  हैं  सब  लोग
जाफरीन  है  गार्गी  जैसी  जीवन का  करती सत - उपयोग ।

सत्य - नारायण  की  पूजा  हो  या  हो  वैभव - लक्ष्मी पूजा
यज्ञ - होम  हो जन्म - दिवस  हो  ज़ाफरीन  करवाती  पूजा ।

ज़ाफरीन  है  श्रेष्ठ  - पुरोहित  वह  सुन्दर  पूजा - करवाती
दान - दक्षिणा  जो  मिलती  है अम्मी  के हाथों में पकडाती ।

घर  का  खर्च  निकल  जाता  है  पर अम्मी करती  है फिक्र
कैसे  हो  निकाह  बच्ची  का  जब  ज़ाफरीन का होता ज़िक्र ।

काल - चक्र  चलता  रहता  है  करता  नहीं  कभी - विश्राम
दिन  के  बाद  रात आती  है  समय - चक्र  चलता अविराम ।

ज़ाफरीन अब बडी  हो गई पर अम्मी अब  हो  गई  हैं पस्त
जस -  पडोस  में  ही  रहता  है  ज़ाफरीन  का  वह  है  दोस्त ।

दोनों  का  व्यवहार  देख  कर  लगता  है  वे  सहज  नहीं  हैं
पता  नहीं  क्या  हुआ  है  इन्हें  कुछ  शुभ है जो हुआ सही है ।

पर अम्मी  सब  समझ  गई हैं वे  पहुँची  हैं  जस के घर पर
उसकी  मॉ  से  बात  हुई है शुभ शुभ हुआ  है जस के घर पर ।

धूम - धाम  से  ब्याह  हो  गया  सब ने आशीर्वाद  दिया  है
' एक  दूजे  के  लिए  बने  हो ' सब  ने  उन से  यही  कहा  है ।

Thursday 12 March 2015

नीली

सोन में एक लंगडी लडकी है और नीली है उसका नाम
मिमीकरी करती है नीली हँसना - हँसाना उसका काम ।

चौथी - कक्षा  में  पढती है उसको कोई भी नहीं चिढाता
नीली  में  कुछ  बात है ऐसी हइ कोई उसका बन जाता ।

छोटा - बडा हर कोई उसकी हाजिर जवाब का कायल है
सबकी हूबहू नकल करती  सबके नयनों की काजल है ।

गुरुजी हों या हो चपरासी उसकी नकल से बचा नहीं है
अनुष्का  हो  या  करीना  हो उसका  सानी कहीं नहीं है ।

हँसा - हँसा  के लोट - पोट  कर  देना  उसकी आदत  है
हँसना  कौन  नहीं  चाहेगा  यह  भी  तो एक इबादत है ।

राखी  हो  या  हो  ऐश्वर्या  उससे  कोई  बच  नहीं  पाया
आमिर  हो या हो वह माला उसने सबको बहुत हँसाया ।

नेता - गण  भी  बचे  नहीं  हैं  नीली  ने सबको धोया है
पेट - पकड कर हँसते हैं सब हँसी - बीज उसने बोया है ।

आस - पास  के  गॉवों में भी उसकी चर्चा होती अक्सर
नीली  कहते  ही  सब  हँसते हँसने का ही होता अवसर ।

पूरे - गॉव  की  बेटी  है  वह  हर  घर  है उसका  परिवार
मुखिया ने कह दिया है सबसे गॉव ही है उसका आधार ।

बडे  - गुरुजी  पिता  सदृश  हैं आज  तिपहिया  लाए  हैं
जन्म - दिवस  के अवसर  पर  नीली  को  देने आए  हैं ।

नीली सबकी सञ्जीवनी  है उसको प्यार सभी  करते हैं
पर जो औरों को अपना ले उसे  दण्डवत  हम  करते  हैं ।

Tuesday 10 March 2015

जय जय जय हो हिन्दुस्तान

बेटी बचाओ ऑदोलन से जन - सामान्य बेखबर है
बहू नहीं मिलती बेटे को ऑदोलन यहॉ बेअसर है ।

बेटी ऑगन की फुलवारी  पुलकित परम्परा  है पावन
उससे  ही  घर में रौनक  है वह ही लेकर आती सावन ।

मोहित के घर बेटी आई पर वह देख नहीं सकती है
कितनी  सुंदर ऑखें  हैं  पर उन ऑखों में दृष्टि नहीं है ।

मोहित है एक वंशी - वादक रोज बजाता राग विहाग
खुद भी रसास्वादन करता राग से है उसको अनुराग ।

काल - चक्र चलता रहता है कभी नहीं करता विश्राम
दिन के बाद रात आती है रात के बाद भोर- अभिराम ।

बारह - बरस  की  हो गई बेटी पर स्कूल नहीं जाती है
पूरे - दिन  बॉसुरी  बजाती और  कभी  गाना गाती  है ।

पिता  की  तरह  वह  गाती  है वैसी ही बॉसुरी बजाती
पूरे  गॉव में पता  है सबको लता लता जैसी  ही गाती ।

सॉसद जमुना को भी उसके मीठे सुर की भनक मिली
मोहित के घर आई जमुना लता की मन-कली खिली ।

उसके स्वर की सीडी.लेकर जमुना दुनियॉ में पहुँचाई
लता खास बन गई स्वयं ही आज लता की बारी आई ।

अखबारों में टीवी में भी उसका इन्टर - व्यू छपता है
गॉव गॉव घर घर में भी अब उसके गीतों से सजता है ।

अब  तो  पैसा  लगा  बरसने  मोहित के घर आई कार
बेटी  ने  शोहरत  दिलवाई  वायु - यान में हुआ सवार ।

लता  बहुत  सुन्दर  गाती  है  लेती  है मुरकियॉ मधुर
दिया विधाता ने है उसको बहुत मधुर और अद्भुत सुर ।

दुनियॉ - भर  के  नाम  चीन मञ्चों में होता है प्रोग्राम
विविध राग रागिनियों का आया है यह दिन अभिराम ।

देश की पावन परम्परा का विश्व - पटल पर होता गान
आरंभ होता देस राग से जय जय जय हो हिन्दुस्तान ।

शहनाई

सभी  कोसते  हैं  बच्ची  को  बोल  नहीं  पाती है 'पाई '
पर  सुनती  है  बहुत ध्यान से और बजाती है शहनाई ।

पिता बजाते जब शहनाई तब बडे ध्यान से सुनती है
वह चुपके से रियाज़ करती रागों की कडियॉ बुनती है ।

उसका मन भी करता है कि वह प्रति - दिन जाए स्कूल
सब  बच्चों  के  संग  पढे वह कभी भी कोई हो न भूल ।

'पाई' शहनाई बजा रही थी तो मास्टर जी ने देख लिया
बडे गुरु जी के संग आए 'पाई ' के पिता से बात किया ।

'पाई' का फिर हुआ दाखिला बेहद खुश है ' पाई ' आज
ठुमक ठुमक कर नाच रही है मिला हो जैसे कोई ताज़ ।

पढने  में  है  तेज बहुत वह बहुत ध्यान  से  सुनती  है
उससे  जब  पूछा  जाता  है  तब  उत्तर  में  लिखती है ।

वक्त भागता अपनी गति से पर है समय बडा- बलवान
रुकता  नहीं  कभी  भी  लेक़िन चलने में है पहलवान ।

'पाई' अब कॉलेज में आई उसका परिचय भी आया है
कइयों  ने उपहास  किया  है  तो बहुतों ने अपनाया है ।

तुलसी - जयन्ती मना रहे हैं 'पाई' के कॉलेज में आज
मानस पर शहनाई वादन पर खुल सकता है यह राज़ ।

'पाई'  की शहनाई सुन कर पूरा कॉलेज आनन्दित  है
बहुत दिनों के बाद मिला यह कलाकार अभिनंदित है ।

'पाई' सबकी मीत बन गई 'पाई' बनी आज सिरमौर
अपने घर में मिली प्रतिष्ठा 'पाई' पर सबने किया गौर ।

सब अखबारों पर छाई है 'पाई'  की सुमधुर  शहनाई
शहनाई  है 'पाई'  या  फिर 'पाई' ही  बन गई शहनाई ।

'पाई' के घर के आगे है मिलने वालों की भारी भीड
हाथ जोड अभिवादन करती गदगद है 'पाई' का नीड ।

एक बडा अधिकारी तब ही  'पाई' से मिलने आया है
उसने कहा  दूर - दर्शन में सर्विस का ऑफर लाया है ।

'पाई' करने लगी नौकरी फिर घर की हालत ठीक़ हुई
गाडी  पटरी  पर आई  है  घर  की काया निखर - गई ।

पावस नामक लडके से फिर 'पाई' का मनमेल हो गया 
जल तरंग वादक है पावस पनप रहा  है  दया -  मया ।

संग - संग अक्सर दिखते हैं वे दोनों पावस और पाई
इस  दुनियॉ  की जीभ बताती बजने वाली है शहनाई ।
 

Monday 9 March 2015

दिए तुम्हारे सुन्दर हैं

एक  किशोरी  है  सुन्दर  सी  वह  दिया  बेचने आई  है
' दिए  तुम्हारे  सुन्दर  हैं'  यह सुन  कर वह शर्मायी है ।

मैंने  सौ  दिए  खरीद  लिए  मैंने  सोचा  दाम  सही  है
नज़र पडी उसके हाथों पर उसके तो दोनों हाथ नहीं हैं ।

मेरी ऑखें भर आईं  थीं 'साथ  तुम्हारे अभी  कौन  है ?'
' अकेली  हूँ  मॉ  घर  पर  है 'आधा उत्तर अभी मौन है ।

'मॉ ने  दिया बनाया होगा यहॉ से कितनी दूर है घर ?'
बच्ची  मुस्काई  फिर  बोली 'चलिए यहीं पास  है घर ।'

मैंने जल्दी से फिर उसका मोल ले लिया सब सामान
उसको अपने साथ बिठाई यही लगा मुझको आसान ।

उसके घर पहुँचे थे जब हम उसकी मॉ बिस्तर पर थी
उसकी  तबियत ठीक नहीं थी वह बुखार से बेदम थी ।

बिन पूछे ही मुझे बताया 'मॉ की तबियत ठीक नहीं है
मेरी मॉ देख नहीं सकती घर में कुछ  भी ठीक नहीं है ।

हम  दोनों  घर  पर  रहते  हैं और  हमारा  नहीं है कोई '
इन शब्दों को कहते  कहते लडकी फूट - फूट कर रोई ।

मैंने  वैद्य  तुरन्त  बुलाया उसने आ कर  मुझे  बताया
' प्राण नहीं है शेष देह में ' तब मुझको भी रोना आया ।

भगवान भास्कर के जाने में समय शेष था उसी समय
कुछ लोग आए देह ले गए माटी - माटी में हुई विलय ।

गॉव के मुखिया को समझाई लडकी को मैं घर ले आई
बच्ची आने को उत्सुक  थी उसकी यह बात मुझे भाई ।

अपने छोटे - छोटे पॉवों से दिया बनाती थी खुद बच्ची
बडे गर्व से मुझे बताया बात है उसकी बिल्कुल सच्ची ।

'शिल्पी' नाम दिया है मैंने अब वह मेरी ही बिटिया  है
मेरा घर अब तक सूना था उसने सूनापन दूर किया है ।

आज मेरे घर दीवाली  है लक्ष्मी खुद चल कर आई  है
मेरे घने - अँधेरे घर में  शिल्पी  ही उजियारा  लाई  है ।
   
 

Sunday 8 March 2015

चौदह अगस्त की सन्ध्या थी

चौदह अगस्त की संध्या थी वह देस  राग की ही बहार थी
विचित्र - वीणा  का वादन  था विभावरी वह कलाकार थी ।

हम  पहुँचें  इसके  पहले ही विभा वहॉ पर विराजमान थी
वीणा उसके  हाथों  में  थी  सरस्वती - सम  विद्यमान थी ।

प्रोग्राम  बहुत  ही  दिलकश  था नाम था उसका 'देस राग'
शीर्षक सबको  खूब  जँचा था जैसे पंखुडियों - बीच पराग ।

परिचय  की  मोहताज़  नहीं  थी  विभावरी  ने छेडी - तार
जब  वीणा  के  छिडे  तार  तो  अद्भुत  थी  उसकी  झंकार ।

आसा  ने आलाप  लिया  था  'चिट्ठी आई है'  वाला गीत
जनता  खोई  थी उस  धुन  में तभी  हो गया गीत अतीत ।

करतल ध्वनि से हॉल भर गया यद्यपि ऑखें भर आई थीं
वीणा  चुप  हो  गई किन्तु अब दर्शक  -  दीर्घा हर्षायी थी ।

तभी  विभा  का  परिचय  देने  आसा  वरी  वहॉ  आई  है
उसने  कहा  " विभा  अँधी  है "  वह  मेरी  ही  सहोदरा है ।

" मैं  भी  देख  नहीं  सकती  हूँ  पर  मैं  भी  गाती  हूँ गीत
विभावरी -  वीणा  पर  होती  मन  -  बहलाता  है  संगीत ।"

सन्नाटा  छा  गया  हॉल  में  पसरा  था  बस  केवल मौन
यह  क्या  हुआ  क्यों  हुआ  ऐसा ऐसी सज़ा दिया है कौन ?

आसा - विभावरी  बहनों  में  ऐसी  विचित्र  सी  थी झंकार
शब्द - तार  मिल  गए  परस्पर अद्भुत था  यह चमत्कार ।

बिन ऑखों  की  दो - बहनों  ने नयनों में भर दिया है जल
पर अद्भुत वरदान मिल गया अब उज्ज्वल है उनका कल ।

जया की जीत

जया  नाम  है  उस  लडकी  का  जेसलमेर में रहती है
बचपन  से  ही  वह  लंगडी  है उसकी अम्मॉ कहती है ।

पॉच  ऊँट  हैं उसके  घर  पर  ऊँट - सवारी  करती  है
सैलानी  को  वह खूब घुमाती  मॉड सुनाया  करती  है ।

जया खुश मिज़ाज़ है लेक़िन सबको वह खुश रखती है
दसवीं  कक्षा  में  पढती  है  खेल  में  भी आगे रहती है ।

काल - चक्र  चलता  रहता  है कभी नहीं करता विश्राम
दिन के बाद रात आती है पल- पल चलता है अविराम ।

बी. ए. पास  हो  गई  बिटिया पर ऊँट - सवारी करती है
यह उसकी रोज़ी - रोटी  है घर का ध्यान वही रखती है ।

घर में मॉ - बेटी रहती हैं पर  घर की हालत  पतली  है
मॉ  पडोस  में  बर्तन - धोती गाडी ले - दे कर चलती है ।

जया के ऊँट बहुत अच्छे हैं स्वामि - भक्त हैं वे सब ऊँट
जया  उन्हें  भाई  कहती  है  कभी  नहीं  कहती  है  ऊँट ।

जया ने मन में कुछ सोचा है अपने काम में देगी ध्यान
जब तक सर्विस नहीं मिली है चलेगा ऐसा ही अभियान ।

सैलानी आते ही रहते हैं  वह  ऊँट - सवारी भी करते हैं
पैसे  भी  मिल  ही  जाते  हैं पर जया से लडके जलते हैं ।

'लडकी हो एहसास करो तुम जया छोड दो अब यह काम
ऊँट  -  तुम्हारे  हम  देखेंगे  देते  रहेंगे  वाज़िब  -  दाम ।'

जया को यह मंज़ूर नहीं है  'मैं अपना  काम समझती हूँ
मुझ पर क्यों एहसान करोगे मैं अच्छे से जी  सकती  हूँ ।'

जया को अब मिल गई नौक़री वह लोकगीत में माहिर है
दूर - दर्शन में मिली नौक़री यह भी अब जग - जाहिर है ।

टी. वी.ऑफिस का एक सैलानी ऊँट - सवारी करने आया
जया का ऊँट ही उसको भाया उसने उसको मॉड सुनाया ।

उसके भीतर के गायक को जीवन ने भी भॉप लिया था
घर की माली- हालत को वह अच्छे से पहचान गया था ।

अच्छी - खासी मिली नौक़री अब उनका घर हँसता  है
अब  भी  है  संघर्ष  किन्तु  वह  थोडा  हल्का  लगता है ।

जया बहुत सुन्दर दिखती है उसे चाहने लगा है जीवन
मुँह से कभी नहीं बोला पर मन में ही है भारी- उलझन ।

जया के मुँह पर तो ताला है पर जीवन ने चुप्पी- तोडी
'बहुत प्यार करता हूँ तुमसे '  नेह  कडी उसने ही जोडी ।

जया का मुख हो गया गुलाबी तब जीवन ने थामा हाथ
जया के घर की ओर गए हैं वे दोनों हैं अब साथ - साथ ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग . ]

 

देस - राग

सबसे सुन्दर देश हमारा
    सुन्दरतम है पर काश्मीर ।
माला एक लंगडी लडकी है
        रहती है सरहद के तीर ।

गोला - बारी होती रहती
      आए दिन सरहद के पास ।
बचपन से वह देख रही है
        नहीं सुधरने की है आस ।

माला सैनिक की बेटी है
      सुनती है वह भी ललकार ।
मन में वह सोचा करती है
    सौ - सौ बार तुझे धिक्कार ।

तभी धुँधलके में माला ने
       काले साए को देख लिया ।
बंदूक तानकर फिर माला ने
         उस साए को मार दिया ।

घर में घुसी तुरंत और वह
      लेट गई बिल्कुल चुपचाप ।
जब कोलाहल हुआ तभी वह
        उठ कर आई अपने आप ।

पिता ने जब पूछा ऑखों से
     माला ने स्वीकार किया था ।
हाथ पीठ पर रखा पिता ने
      साहस का ईनाम दिया था ।

सरहद समीप रहने वाले भी
    सैनिक सम कर्तव्य निभाते ।
ईनाम भले ही मिले न मिले
       मातृभूमि के वे काम आते ।

माला भीड से घिरी हुई है
         कोई भी नहीं देखता पॉव ।
उसकी बहादुरी दिखती है
           भौचक है अब पूरा गॉव ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई

Saturday 7 March 2015

छत्तीसगढ में एक गॉव है

छत्तीसगढ  में  एक  गॉव  है  जिसका  नाम  कोसला  है
कौशल्या  का  पीहर  है  वह  सरोवरों  के  बीच  पला  है ।

उसी  गॉव  में  लूली -  लँगडी  एक  लडकी  है  सुकवारा
सब  उसको अपमानित  करते  कहते  हैं  फोकट - पारा ।

किसी  तरह  पॉचवीं पास की अब घर - वाले हार गए हैं
नहीं  पढा  सकते अब आगे कह - कर उसे पछाड गए हैं ।

सुकवारा  में  हुनर  बहुत  है  सबका करती सहज नकल
तोता  कोयल  चिडिया  बन्दर  सुकवारा  है सदा सफल ।

कुत्ता - बिल्ली या उल्लू हो मुश्किल है फर्क समझ पाना
बडी  सहजता  से  करती  है  नकल हमेशा सोलह आना ।

केजरीवाल हो या मोदी हो सोनिया हो या फिर अमिताभ
सुकवारा  सब  में पारंगत है इसी हुनर का मिलता लाभ ।

सुकवारा  के  संग  कला  भी  प्रतिदिन  रूप  बदलती  है
सुकवारा की कला दिन ब दिन और भी खूब निखरती है ।

बडे - बडे  शहरों  में उसका  होता  रहता हरदम  प्रोग्राम
मिमिक़री  है  बहुत  लोकप्रिय  इसका मिलता है ईनाम ।

उससे  मिलने  वालों  की अब  लम्बी  लाइन  लगती  है
विकलॉगता  नज़र  नहीं आती  हुनर की तूती बोलती है ।

वाणी का  वैभव अतुलित  है  इसमें  है  अद्भुत - सम्मान
उद्यम से सब कुछ संभव  है जीवन बन जाता  है वरदान ।

Tuesday 3 March 2015

सबसे सुन्दर मेरा भारत

सबसे  सुन्दर  मेरा  भारत  सुन्दर - तम  है  पर कश्मीर
माला  एक  लंगडी  लडकी  है  रहती  है  सरहद  के तीर ।

गोला -  बारी  होती  रहती  आए  दिन  सरहद  के  पास
बचपन  से  वह  देख  रही  है  नहीं  सुधरने  की  है आस ।

माला  सैनिक  की  बेटी  है  वह  भी  सुनती  है  ललकार
मन  में  वह  सोचा  करती है सौ - सौ बार तुझे धिक्कार ।

तभी  धुँधलके  में  माया  ने  काले - साये को देख लिया
बंदूक - तान  कर  उस लडकी ने उस साये को मार दिया ।

घर में घुसी तुरन्त और वह लेट गई बिल्कुल चुप - चाप
जब  कोलाहल  हुआ तभी वह उठ कर आई अपने- आप ।

पिता  ने  जब पूछा ऑखों से माला ने स्वीकार किया था
हाथ  पीठ  पर  रखा  पिता ने साहस का ईनाम दिया था ।

सरहद -समीप रहने वाले भी सैनिक सम कर्तव्य निभाते
ईनाम भले ही मिले न मिले जन्मभूमि के वे काम आते ।

माला  भीड  से  घिरी  हुई  है  कोई  भी  नहीं  देखता पॉव
उसकी  बहादुरी  दिखती  है  भौचक  है  अब  पूरा - गॉव ।