Sunday, 28 July 2013

देख कबीरा रोया

                                                                                                          
 
बालक हिंदुस्तानी था
पर घर किसी अंग्रेज़ के घर जैसा था ।
अंग्रेजी में पढना, अंग्रेजी में लिखना
अंग्रेजी में बोलना,
यहाँ तक कि खाना-पीना हँसना-रोना
सब अंग्रेज़ी में होता था ।

हिंदुस्तान से पढ़-लिख कर
ऊँची शिक्षा के लिए वह विदेश गया ।
वहाँ उसने विदेशी छात्रों को देखा -
कोई कबीर पर शोध कर रहा है
तो कोई कालिदास पर,
कोई बिहारी पर तो कोई विद्यापति पर
कोई वेद पर तो कोई कठोपनिषद पर ।
सभी विषय भारतीय थे ।

विदेशी छात्र ललक कर इसके पास आए
कि बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ।
जिज्ञासुओं के पूछने पर
भारतीय छात्र ने कहा-
" हू इज़ कठोपनिषद ?
एन्ड आई डोन्ट नो, व्हाट इज़ कालिदास
एण्ड व्हाट इज़ कबीर ?"

शकुन्तला शर्मा, भिलाई  [ छ. ग. ]

2 comments:

  1. न जाने किसने खायी फसल हमारी। अपने ही पराये हो चले। रुदन स्वाभाविक है।

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