Thursday 19 October 2017

गो - वर्धन

           कुण्डली - छंद

गो - वर्धन को समझ लो, बढे गाय - परिवार
गौ - माता समझा - हमें, जीवन का आधार।
जीवन का - आधार, बनो तुम ही गउ - माता
गो - रस में है स्वाद, सभी को पुष्ट - बनाता।
गौ माता का त्याग, जानले कर अभिनन्दन
बढे गाय - परिवार, समझ लो जी गो वर्धन।

महिमा गौ - की मान ले, वह है पालन - हार
गाय - पालती  है हमें, सचमुच - अपरम्पार।
सचमुच - अपरम्पार, गाय  गो - रस देती है
निज - छौने को छोड,  हम सभी को सेती है।
जीवन यह उपहार, खाद गो - वर की गरिमा
गउ है पालन - हार, मान ले गउ की महिमा।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ       
  

Wednesday 18 October 2017

यम चतुर्दशी

             कुण्डली


यम चलता है नियम से, वह करता है न्याय
सूर्य - पुत्र है इसलिए, वह अग्रज - कहलाय।
वह - अग्रज कहलाय, राह - वह दिखलाता है
गुरु लाघव समझाय, समझ में आ जाता है।
विधि निषेध के साथ, प्राण प्रण से पलता है
करता है वह न्याय, नियम से यम चलता है।

Tuesday 17 October 2017

धनतेरस


ललित - सार छंद - 16/12

धन - तेरस हमसे कहता है, बाँट - बाँट कर खाओ
धरती है परिवार - हमारा, सब को यह समझाओ।

भाव भूमि से कर्म - भूमि में, जाकर भाग्य बनाओ
जो बोयेंगे वही - मिलेगा, आम - नीम समझाओ ।

लक्ष्मी जी को नहीं - चाहिए, पूजा हवन - दिखावा
श्रद्धा से बस फूल - चढाओ, छोडो क्षणिक छलावा ।

भूखे को भोजन - करवा दो, सहज  धर्म - अपनाओ
राज - मार्ग पर चलो हमेशा, बच्चों को सिखलाओ।

जहाँ कहीं भी दिखे - अँधेरा, उस घर को उजियारो
उन लोगों का बनो - सहारा, जगमग दीपक बारो ।

हर पौधे में सञ्जीवन है, इनकी सुन लो  महिमा
इनकी गरिमा जानो भाई, मिल सकती है अणिमा।

प्रतिदिन प्राणायाम करें हम, हम भी शतक लगायें
औषधियों का सेवन करके, जीवन सफल बनायें ।

आओ अपना धर्म जान लें, जीवन - सफल बनायें
रोते - रोते हम - सब - आए,  हँसते - हँसते जायें ।

Thursday 5 October 2017

शरद पूर्णिमा ने कहा

    दोहे - 13/11

शरद - पूर्णिमा ने कहा. प्यारे - भारत - वर्ष
तन मन में शुचिता रखो, तब होगा उत्कर्ष।

सावधान होकर सुनो, साफ - स्वच्छ हो देश
महके - तालों में कमल, पावन हो परि वेश।

पडोसियों की चाल को, करो - सदा नाकाम
मधुर भाव सबसे रखो, कहो सिया- वर राम।

देश - देव सबसे - बडा, कहो शकुन भगवान
उसकी गरिमा जान लो, करो उसी का गान।

आपस में तुम मत लडो, करो परस्पर प्यार
प्रगति - पंथ पर देश को, पहुँचाओ हर बार।

तोड - फोड जो देश में, करे अगर  दो - दण्ड
अपराधों की - श्र्रँखला, तोडो शीघ्र - प्रचण्ड ।

देश - धर्म की जीत हो, जपो यही शुभ - मंत्र
सुनो सदा सुख से रहो, अमर रहे गण - तंत्र।

अमृत - कलश थमा दिया, धर लो हिंदुस्तान
पुन: विश्व- गुरु तुम बनो, देती हूँ वर - दान ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ