नेता जी सुभाष चंद्र को नहीं जानता जग में कौन
तउम्र भटकते रहे अकेले मातृभूमि के रक्षक मौन ।
जीत गए तुम अपनी बाजी राच्च्ट्र् यज्ञ में आहुति दी
सुखदा आजादी मिली किंतु बाट जोहती रही सदी।
भान मुझे होता है अब भी तुम सबसे खून मांॅगते हो
द्राडानन सम सेनापति बनकर गारों का वध करते हो।
चंद्र समान तुम्हारा आनन देद्गा के हित में आया काम
द्रव सा मन था जनजन में प्रिय जनमन में अंकित है नाम।
बोए थे जो तुम बीज उसी की आज फसल उग आई है
सब देख रहे हैं राह तुम्हारी अब आने लगी रुलाई है ।