Wednesday, 25 January 2012

नेता जी सुभाष चंद्र

नेता जी सुभाष चंद्र को नहीं जानता जग में कौन
तउम्र भटकते रहे अकेले मातृभूमि के रक्षक मौन ।
जीत गए तुम अपनी बाजी राच्च्ट्र्‌ यज्ञ में आहुति दी
सुखदा आजादी मिली किंतु बाट जोहती रही सदी।
भान मुझे होता है अब भी तुम सबसे खून मांॅगते हो
द्राडानन सम सेनापति बनकर गारों का वध करते हो।
चंद्र समान तुम्हारा आनन देद्गा के हित में आया काम
द्रव सा मन था जनजन में प्रिय जनमन में अंकित है नाम।
बोए थे जो तुम बीज उसी की आज फसल उग आई है
सब देख रहे हैं राह तुम्हारी अब आने लगी रुलाई है ।