सदियॉ जहॉ रोमांचक अनुभवों का इतिहास लिखती हैं , इतिहास , घटनाओं का एक अन्तहींन सिलसिला । उठते हुए साम्राज्य और ध्वस्त खण्डहर की एक स्मृति यात्रा । संस्कृति , धर्म, कला, साहित्य और इन सब के बीच से उभर कर झॉकता हुआ मनुष्य का अद्भुत जीवन । जीवन , जहॉ अनुभवों की दीवारें उठती चली जाती हैं। काल जिसके अँधेरे आयामों में प्रिय से प्रिय वस्तुयें खोती चली जाती हैं । उपलब्धि और असफलता के बीच , व्यक्ति तो आखिर काल के अँधेरे गर्भ में समा ही जाता है । जीवन , अनुत्तरित सवालों का एक अन्तहींन सिलसिला बन कर बहता हुआ झरना । इस भयावह काल - यात्रा , अनुत्तरित सवालों , जटिल संघर्षों और मिटते मनुष्य के जीवन का सार क्या है ? प्रत्येक चिन्तनशील मानव ने , इन प्रश्नों के समाधान हेतु अपना जीवन खपाया और इस विकट संघर्ष और शोध से जो प्रज्ञा उनके भीतर उद्भासित हुई , उसकी अनुभूति , आज युग की लम्बाइयों में गगनचुम्बी मीनारें बन कर खडी हैं । उसी आनन्द के उद्भास का एक अप्रतिम चितेरा हुआ "तुलसी" सोलहवीं शताब्दी का एक अद्वितीय मानव ।
तुलसी का नाम , हिन्दी साहित्य में स्वर्णाक्षरों में अंकित है । हिन्दी साहित्य उसकी गरिमा से गौरवान्वित हुआ है । रामचरितमानस , विनयपत्रिका , कवितावली , गीतावली आदि तुलसी के विश्व - प्रसिध्द ग्रन्थ हैं । अब प्रश्न यह उठता है कि तुलसी के जीवन और उसके साहित्य से हमारा क्या लेना - देना ? वस्तुतः तुलसी एक व्यक्ति नहीं है , वह जीवन की विराट लम्बाइयों और अतल गहराइयों का एक अप्रतिम चितेरा है । एक व्यक्ति के रूप में वह आज भी उतनी ही नवीनता और जगमग - ज्योति के साथ जीवित है । तुलसी ने जीवन के मर्म को समझा और उसकी सार्थकता को खोज लिया । हम जिस खाने - पीने और इन्द्रिय - सुखों से युक्त, जीवन को जीते हैं , उसे उन्होंने पशु - जीवन कहा है - " तिन्ह ते खर सूकर श्वान भले जडता बस ते न कहै कछु वै । जरि जाउ सो जीवन जानकिनाथ जिए जग में तुम्हरे बिनु व्है ।" तुलसी के आदर्श , उनके प्राणप्रिय , उनके लक्ष्य, राम थे, पर यह उनका संकेत था जीवन के चरम लक्ष्य की ओर । अपने राम के विषय में उन्होंने कहा - " प्राण प्राण के जीवन जी के ।"
जो प्राणों का भी प्राण हो, जीवन का भी जीवन हो, वही तो राम है । राम अर्थात् परम सत्य की खोज, यही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा । तुलसी का जीवन आज भी हमारे भीतर अबाध गहराइयों में बह रहा है और इसीलिए जीवन की उस अनादि प्रवाह के अर्थ को समझने के लिए हम कटिबध्द हैं । हमारी आयु का प्रत्येक क्षण, हमारी सम्पूर्ण चेष्टा, क्रिया, भावना उसी अनादि जीवन - सत्य की प्यास में, जाने - अनजाने हुआ करती है । जिसे हम सुख कहते हैं वह उसी अनादि जीवन - सत्य की छाया - मात्र है । छाया का अनुभव हमें होता है । सुख का अनुभव हम प्रतिक्षण करते हैं और इस छाया को पकड - कर उस मूल सत्य तक जाना चाहते हैं । इन प्रतिक्षण मरते और नष्ट होते विश्व के बीच किसी अमर - अनादि सत्ता को पाना चाहते हैं, जहॉ जरा - मरण का भय न हो । सत् चित् आनन्द का अबाध विस्तार हो । इस अबाध अस्तित्व का आनन्द ही "राम" है । तुलसी इसी आनन्द के साथ आजीवन मुग्ध रहे । उनका जीवन इस विराट अस्तित्व के अनुभव के आनन्द की व्याख्या है ।
तुलसी बाबा आज हमारे बीच दो आयामों पर जीवित हैं, एक अनुभूति के, दूसरे अभिव्यक्ति के । रामचरितमानस में, राम, लक्ष्मण, सीता आदि अनेक पात्रों के माध्यम से जीवन के मूलभूत जटिल प्रश्नों का जैसा सम्यक् एवम् सटीक, अनुभूत उत्तर तुलसी ने दिया है, वह साहित्य के संसार का स्वर्ण - कलश है - जगमगाता , उज्ज्वल , चिर- नवीन । काल का प्रवाह उसकी नवीनता को आज भी सँजो - कर रखा है । जब तक मनुष्य का जीवन रहेगा , तुलसी की यह अभिव्यक्ति मुखरित होती रहेगी ।
तुलसी का नाम , हिन्दी साहित्य में स्वर्णाक्षरों में अंकित है । हिन्दी साहित्य उसकी गरिमा से गौरवान्वित हुआ है । रामचरितमानस , विनयपत्रिका , कवितावली , गीतावली आदि तुलसी के विश्व - प्रसिध्द ग्रन्थ हैं । अब प्रश्न यह उठता है कि तुलसी के जीवन और उसके साहित्य से हमारा क्या लेना - देना ? वस्तुतः तुलसी एक व्यक्ति नहीं है , वह जीवन की विराट लम्बाइयों और अतल गहराइयों का एक अप्रतिम चितेरा है । एक व्यक्ति के रूप में वह आज भी उतनी ही नवीनता और जगमग - ज्योति के साथ जीवित है । तुलसी ने जीवन के मर्म को समझा और उसकी सार्थकता को खोज लिया । हम जिस खाने - पीने और इन्द्रिय - सुखों से युक्त, जीवन को जीते हैं , उसे उन्होंने पशु - जीवन कहा है - " तिन्ह ते खर सूकर श्वान भले जडता बस ते न कहै कछु वै । जरि जाउ सो जीवन जानकिनाथ जिए जग में तुम्हरे बिनु व्है ।" तुलसी के आदर्श , उनके प्राणप्रिय , उनके लक्ष्य, राम थे, पर यह उनका संकेत था जीवन के चरम लक्ष्य की ओर । अपने राम के विषय में उन्होंने कहा - " प्राण प्राण के जीवन जी के ।"
जो प्राणों का भी प्राण हो, जीवन का भी जीवन हो, वही तो राम है । राम अर्थात् परम सत्य की खोज, यही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा । तुलसी का जीवन आज भी हमारे भीतर अबाध गहराइयों में बह रहा है और इसीलिए जीवन की उस अनादि प्रवाह के अर्थ को समझने के लिए हम कटिबध्द हैं । हमारी आयु का प्रत्येक क्षण, हमारी सम्पूर्ण चेष्टा, क्रिया, भावना उसी अनादि जीवन - सत्य की प्यास में, जाने - अनजाने हुआ करती है । जिसे हम सुख कहते हैं वह उसी अनादि जीवन - सत्य की छाया - मात्र है । छाया का अनुभव हमें होता है । सुख का अनुभव हम प्रतिक्षण करते हैं और इस छाया को पकड - कर उस मूल सत्य तक जाना चाहते हैं । इन प्रतिक्षण मरते और नष्ट होते विश्व के बीच किसी अमर - अनादि सत्ता को पाना चाहते हैं, जहॉ जरा - मरण का भय न हो । सत् चित् आनन्द का अबाध विस्तार हो । इस अबाध अस्तित्व का आनन्द ही "राम" है । तुलसी इसी आनन्द के साथ आजीवन मुग्ध रहे । उनका जीवन इस विराट अस्तित्व के अनुभव के आनन्द की व्याख्या है ।
तुलसी बाबा आज हमारे बीच दो आयामों पर जीवित हैं, एक अनुभूति के, दूसरे अभिव्यक्ति के । रामचरितमानस में, राम, लक्ष्मण, सीता आदि अनेक पात्रों के माध्यम से जीवन के मूलभूत जटिल प्रश्नों का जैसा सम्यक् एवम् सटीक, अनुभूत उत्तर तुलसी ने दिया है, वह साहित्य के संसार का स्वर्ण - कलश है - जगमगाता , उज्ज्वल , चिर- नवीन । काल का प्रवाह उसकी नवीनता को आज भी सँजो - कर रखा है । जब तक मनुष्य का जीवन रहेगा , तुलसी की यह अभिव्यक्ति मुखरित होती रहेगी ।
उसी आनन्द के उद्भास का एक अप्रतिम चितेरा हुआ "तुलसी" सोलहवीं शताब्दी का एक अद्वितीय मानव
ReplyDeleteबेहतरीन सुखदायक लेख तुलसी बाबा पर , आभार आपका !
इस अबाध अस्तित्व का आनन्द ही "राम" है । तुलसी इसी आनन्द के साथ आजीवन मुग्ध रहे । उनका जीवन इस विराट अस्तित्व के अनुभव के आनन्द की व्याख्या है ।
ReplyDeleteशकुंतला जी, तुलसी और राम की सटीक व्याख्या करती सुंदर रचना के लिए बधाई..
तुलसी का क्षणिक संदर्भ भी मन आह्लाद से भर देता है! आभार!
ReplyDeleteनिसंदेह तुलसी एक विलक्षण व्यक्तित्व थे...उनकी रचनाओ में जीवन का सार छिपा है...
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