Wednesday, 1 May 2013

माटी की महिमा

जल से जीवन है |
धरती पर लगभग तीन भाग जल है , एक भाग थल है |
मानव देह में भी जल का अनुपात अधिक है
याद कीजिए ,
जेठ के महीने में , ठंडे पानी के लिए
आप किस तरह व्याकुल हो उठते हैं और
फ्रिज के पानी से आपकी प्यास नहीं बुझती
क्योंकि फ्रिज के पानी में वह मिठास कहाँ ,
जो मिट्टी की गागर में है |

माटी की सोंधी - सोंधी महक लिए
गागर के जल की मिठास के क्या कहने !
आप मन ही मन प्रतीक्षा करते रहते हैं
उस गागर वाली के आगमन की |

तेज धूप के थपेड़ों को चीरती हुई
आठ - दस गागर को धागे में गूंथकर
टोकनी में सहेजकर , सिर पर रखकर
जब वह - "घड़ा ले ल ओंSSSS " कहती हुई
आपकी गली में जैसे ही आती है
आप लपककर उसके पास जाते हैं ,
उससे पूछते हैं -
 "एक ठन घड़ा कतका के ए ओं ? "
 "एक कोरी के तो ए साहेब | "
"दस रुपिया लगा , दू ठन लेहौं | "
"नई परय साहेब | "
"चल चार ठन लेहव , दस रुपिया लगा ले | "
"नई पोसावय साहेब | "
कहती हुई वह चली जाती है |

आप सोचते क्यों नहीं ?
इस तपती गर्मी और धूप में ,
सिर पर इतना बोझा बोहकर , वह खड़ी है
उसे भी बहुत प्यास लगी है
पर उसकी हालत
"धुबिया जल बिच मरत पियासा "
जैसी है
और आप हैं कि मोल - भाव किए जा रहे हैं

कहाँ उसकी मेहनत की गागर
स्वत: में सागर समेटे हुए ,
उसकी श्रम की साधना और माटी का मोल
दस रुपिया लगाते हुए
क्या आपको अपराध - बोध नहीं होता ?

               शकुन्तला  शर्मा , भिलाई [छ ग ]
      

6 comments:

  1. पानी बिना न उबरे मोती,मानस,चून

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  2. श्रम का सम्‍मान.
    ''मानव देह में भी जल का अनुपात अधिक है'', क्‍या सचमुच, लेकिन किस तरह.
    ''फ्रिज के पानी से आपकी प्यास नहीं बुझती'', लेकिन बहुतेरे ऐसे हैं जिनकी प्‍यास बिना फ्रिज के पानी के नहीं बुझती.

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  3. आदरणीय राहुल जी,
    जल से मेरा आशय ,द्रव से है ।मुझे ऐसा लगता है कि फ्रिज़ का पानी प्यास
    को बढाता है जबकी करसी का पानी ,प्यास को बुझाता है,संतुष्ट करता है।
    मिट्टी के गागर की एक विशेषता यह भी होती है कि उसमें मिट्टी की सोंधी-
    सोंधी खुशबू भी होती है ।मैंने स्वमति अनुसार आपकी जिज्ञासा के समाधान की चेष्टा मात्र की है ,मैं जानती हूँ कि आप विचारशील विद्वान हैं ।

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  4. बहुत सुन्दर भाव संयोजन

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