'ऑल इन्डिया पोएटेस कान्फ्रेंस' एक ऐसी संस्था है जो बहनों के सर्वांगीण विकास के लिए कटिबद्ध है. इस संस्था के माध्यम से हमारी प्रतिभा को अनन्त आकाश मिलता है और हमें प्रेरित प्रोत्साहित करने के लिए हमारी अध्यक्षा डॉ रोशन आरा हमेशा हमारे साथ होती हैं. विविध प्रदेशों से पहुँचने वाली विभिन्न बहनें, विविध नदियों की तरह ए. आई. पी. सी. के सागर में समा जाती हैं और स्वयं समुद्र बन जाती है, ए. आई. पी. सी. में रच-बस जाती है.
25 / 09 / 2015
2015 में हम रूस की यात्रा पर निकल रहे हैं. हमें इन्दिरा गॉधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली में 10 बजे रात तक पहुँचना है और 11. 30 को चेक इन करना है. इस बार छत्तीसगढ से हम चार बहनें रूस घूमने जा रही हैं- आशा लता नायडू, चन्द्रावती नागेश्वर, मधूलिका अग्रवाल और मैं पर आशा दीदी आज कल मुँबई में रहती हैं तो वे हमें दिल्ली एअरपोर्ट पर मिलेंगी. अब मैं चन्द्रा और मधु, गोंडवाना से ए सी 3 में बैठ कर दिल्ली जारहे हैं. हमारे सामने के बर्थ पर हमारे जगदलपुर के भदौरिया दम्पत्ति विराजमान हैं और उनसे हमारी दोस्ती भी हो गई है. हँसते-गाते, खाते-पीते कब भोपाल आ गया हमें पता ही नहीं चला. भोपाल में मेरी बेटी आस्था मुझसे मिलने आई है वस्तुतः मिलने के बहाने वह मेरे पसन्द की खाने-पीने की चीज़ें लेकर आई है. हम तीनों के लिए कॉफी लाई है, पर हम सभी ने कॉफी बॉट कर पी, मूँगफली खाई और हँसते-गाते हमने अपना सफर तय किया. निजामुद्दीन में हम उतर गए
.
26 / 09 / 2015
हम तीनों छत्तीसगढ सदन की ओर जा रहे हैं. यहॉ हमने दिन भर के लिए एक कमरा ले लिया है. हम आराम से नहाए धोए फिर मधु और चन्द्रा ने कैंटीन से खाना मँगवा लिया पर मैं घर से जो पराठा और करेले की सब्ज़ी ले गई थी उसी को खाई. दोपहर को हम शॉपिंग के लिए निकल गए, नागेश्वर को मफलर चाहिए था पर मफलर कहीं नहीं मिला. हम लोग घूम- घाम कर आ गए. थोडी देर आराम किए फिर उन दोनों ने डिनर मँगाया और मैंने वही घर का खाना खाया. काउन्टर में फोन करके हमने टैक्सी मँगाई और रात को आठ बजे एरोड्रम की ओर निकल गए, वहॉ हमें टर्मिनल-5 में एकत्र होना है. हम वहॉ पहुँचकर इतमिनान से बैठ गए. बहनें आती रहीं गप-शप चलता रहा और फिर आशा दीदी का फोन आया-'शकुन! तू कहॉ है ? मैं टर्मिनल 4 के पास खडी हूँ.' मैं आशा दीदी को लेने गई तो दंग रह गई. दीदी इतना सामान लेकर आई हैं, हे भगवान ! कैसे ढोएंगी ? अभी तो मैं ढो रही हूँ पर...मैंने दीदी से पूछा तो वे बोलीं- ' उठा लूँगी रे ! तू चिन्ता मत कर. आशा दीदी घर कुछ-कुछ बना कर लाई थीं उसे हम सब खाए और जब पूरी टीम इकट्ठी हो गई तो भैया ने कहा- ' चलो ! कतार बना लो, चेक इन करना है' आगे-आगे भैया-भाभी और पीछे-पीछे हम सभी कतार से चलते रहे, औपचारिकतायें पूरी करते रहे फिर अरब-अरेबिया के प्लेन पर बैठ गए.
27/ 09 / 2015
हमारा प्लेन 4 .10 को सुबह उडा और हमें लगभग 4 - 5 घंटे में शारज़ाह पहुँचा दिया. शारज़ाह में हमने हाथ - मुँह धोकर चाय पी, ब्रेकफास्ट किया और फिर अरब अरेबिया से मास्को के लिए रवाना हो गए. जब हम मास्को पहुँचे तो शाम हो रही थी और मास्को के समय के अनुसार मेरी घडी में शाम के 5.30 बजे थे. मास्को में बोर्डिंग के समय बहुत वक़्त लग गया और इसी चक्कर में शाम को सर्कस देखने का हमारा अभियान फेल हो गया जबकि हमारी टिकट हो चुकी थी फिर भी हम वहॉ के नायाब सर्कस को नहीं देख पाए इसका अफसोस है पर यात्रा के दौरान तो इस तरह की घटनायें होती रहती हैं तो ' बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेइ' की राह पर आगे बढते हैं.मास्को में हमारी गाइड श्वेता श्वेतलाना,हमारे लिए गाडी लेकर हमें रिसीव करने आई है. श्वेता गज़ब की सुन्दर है, मुस्कुराता हुआ चेहरा, अपने कार्य के प्रति उसका समर्पण, प्रणम्य है. हम मास्को सिटी की ओर बढ रहे हैं और हमारे भैया हमें बता रहे हैं कि-' देखो ! यह 'मास्कवा' नदी है, इसी के नाम पर इस शहर का नाम ' मास्को' पडा, उन्होंने हमें 'वोल्गा' नदी से रूबरू करवाया और बतलाया कि यह 'गंगा' जैसी महत्वपूर्ण नदी है और यह भी बताया कि क्रेमलिन जैसा सुन्दर राजमहल कहीं नहीं है. हमारे संस्थापक डॉ लारी आज़ाद इतिहास के प्राध्यापक हैं और अपनी विभिन्न गतिविधियों द्वारा सम्पूर्ण विश्व में जाने जाते हैं. वे हमें इतिहास की घटनाओं को बडी दिलचस्पी से लगातार बताते जाते हैं और मैं सभी घटनाओं को लिखना चाहती हूँ पर बीच-बीच में छूट जाता है, मुझे इतिहास और भूगोल की तनिक़ भी जानकारी नहीं है कि मैं घटनाओं को आपस में जोड सकूँ. काश ! मैं भैया के एक-एक शब्द को लिख पाती तो मेरा ब्लॉग कितना भव्य बन जाता.अब हम डिनर के लिए जा रहे हैं. रेस्टोरेंट का नाम है -'तन्दूरी नाइट'. यह एक भारतीय रेस्टोरेंट है. यहॉ हमने भोजन किया और फिर अपने हॉटेल ' मास्को अज़िमत ओलम्पिक' में जाकर आराम किया. यह एक चार सितारा हॉटेल है,बहुत सुन्दर और साफ-सुथरा है. हम बहुत थके हुए थे, ठंड बहुत थी. अधिकतम-16' c और न्यूनतम 3'c.आशा दीदी मेरे साथ हैं,हमें 11वें माले में रूम मिला है, बहुत ही साफ-सुथरा,आराम-दायक बिस्तर है. मन प्रसन्न हो गया, हमें अच्छी नींद आई
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28 / 09 / 2015
हम सुबह उठे तो बारिश हो रही थी. जब हम नहा-धोकर जलपान के लिए पहुँचे तो हमने देखा कि सैकडों तरह की चीज़ें वहॉ विद्यमान हैं, मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या खाऊँ ? मैं सूखे मेवे की ओर गई और अखरोट,बादाम,किसमिस और एक गोल-गोल कुछ था, जिसका स्वाद चिरौंजी जैसा था,उसे लेकर आई, दो केले और एक सेब खाई,मेरा पेट भर गया, खाने में मज़ा भी आया.अब हम घूमने जा रहे हैं जिधर नज़र जाती है वहॉ से उठती नहीं है. साफ-सुथरी सडकें हरे-भरे बागों ने हमारा ऑचल पकड लिया. अभी दोपहर के दो बजे हैं,अब हम लंच के लिए 'स्लोथनिक हॉटेल' में जा रहे हैं.यह एक भारतीय रेस्टोरेंट है, हमने यहॉ भोजन किया खाना अच्छा था पर रोटी मैदे की थी. लंच के बाद हम म्युज़ियम देखने के लिए फिर निकल गए और फिर शाम को हॉटेल 'खजुराहो' में हमारा ए. आई. पी. सी. का कार्यक्रम था. भारतीय दूतावास के संस्कृति-विभाग के डिप्टी-डायरेक्टर श्री सञ्जय जैन हमसे मिलने आए थे और वहॉ की लायब्रेरियन डा. मिताली सरकार भी वहॉ उपस्थित थी. यह एक बहुत ही गरिमामय कार्यक्रम था. भैया ने हम सभी का परिचय श्री सञ्जय जैन जी से करवाया और फिर बहनों ने अपनी-अपनी किताबों का विमोचन करवाया.श्री सञ्जय जैन जी हम सबको भारतीय दूतावास में आमंत्रित करना चाहते थे, किन्तु हमें आज शाम को मास्को के मैट्रो में घूमना था. हम सबने डिनर किया और फिर मैट्रो की ओर चल पडे
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मास्को के मैट्रो तक जब हम पहुँचे तो हम भौचक्के रह गए. मैट्रो की दीवारें इस तरह सजी हुई थीं मानो दीवाली हो. भव्य-दीवारें, अद्भुत-कला-कृतियॉ. मैट्रो तक पहुँचने के लिए हमने आधा-किलोमीटर स्कलेटर का सफर तय किया. हे भगवान ! मेरे भारत को भी ऐसा ही वैभव देना. हर क्षेत्र में मेरा भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे,तुझसे यही प्रार्थना है.
29 / 09 / 2015
आज हमें मास्को से सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचना है. हमने यह तय किया है कि हम ट्रेन से सेंट पीटर्सबर्ग जायेंगे. हमने जलपान किया और फिर अपनी गाडी में बैठ कर मास्को के रेल्वे-स्टेशन पर पहुँच गए. हम वहॉ अपनी गाडी में अपनी सीट पर बैठ गए.ट्रेन में जब मैं वाश-रूम गई तो मैंने देखा वाश-रूम के भीतर एक सुन्दर सी लडकी खडी है मैंने संकोच-वश तुरन्त दरवाजा बन्द कर दिया. थोडी देर बाद जब मैंने फिर दरवाज़ा खोला तो वही सुन्दरी फिर दिखी, इस बार मैंने उस पर दृष्टि डाली तो पता चला कि वह दर्पण है. मैं बाहर आकर जब अपनी सहेलियों को यह बात बताई तो उन्होंने मेरी अच्छी मरम्मत की,कहा-' तू और सुन्दर ? कभी दर्पण में अपनी शकल देखी है ? ' मैंने कहा- ' हॉ, आज देखी हूँ.' और हम सभी हँसती हुई लोट-पोट हो गईं.
गोधूलि-वेला में हम सेंट-पीटर्सबर्ग पहुँचे. वहॉ हमारी दूसरी गाइड एना हमारे लिए कोच लेकर आई थी. हम सब उसी के पीछे कतार-बद्ध होकर चलते गए और अपनी गाडी पर जाकर बैठ गए. एक भारतीय रेस्टोरेंट जिसका नाम 'नमस्ते जी' है हम डिनर के लिए गए फिर अपने हॉटेल ' पार्क इन ' पहुँचकर विश्राम किए. मैं और आशा दीदी साथ-साथ हैं. हमें दसवें माले में रूम मिला है और हमारे रूम का नम्बर है-10012. सेंट पीटर्सबर्ग में हमने 'नेवा' नदी देखी जो आगे जाकर मास्कवा और वोल्गा नदी से मिल गई है और फिर मेरे होठों में यह गीत थिरकने लगा -
' ओहो रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में कोई जाने न ओहो रे ताल मिले
30 / 09 / 2015
सुबह ब्रेकफास्ट के तुरन्त बाद हम साइड-सीन के लिए निकल गए. हल्की-हल्की बारिश हो रही थी. किसी ने
रेनकोट पहना तो किसी ने छाता खोला पर हम पूरे दिन घूमते रहे. राजमहल देखने के बाद हमने यह अनुभव किया कि भैया ठीक कहते हैं- ' क्रेमलिन से ज्यादा सुन्दर राजमहल कहीं नहीं है. इसका सौंन्दर्य अद्भुत है. लुई 16वीं की बीबी 'मैरी ऑनलोवोस्की' का दृष्टान्त है-कि जब भूख से बौखलाई हुई जनता जब अपनी रानी को अपना दुखडा सुना रही थी कि-' हमारे पास खाने के लिए रोटी नहीं है.' तो उनकी रानी ने उनसे कहा-' तुम लोग केक क्यों नहीं खाते ?' अन्ततः भूखी जनता ने अपनी रानी को सरे आम फॉसी पर लटका दिया और फिर 1917 में ' लेनिनग्राद' बन गया,जहॉ से पूरी दुनियॉ में मार्क्सवाद फैला. 1992 में मिखाइल गोर्वाचोव के काल में रूस 50 टुकडों में बँट गया फिर भी सेंट पीटर्सबर्ग, रूस की सॉस्कृतिक राजधानी के रूप में उभरा और उसका जलवा आज भी बरक़रार है
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1/ 10/ 2015
आज हम सब अपने-अपने प्रदेश के पारम्परिक परिधान में सजे-धजे बैठे हैं क्योंकि आज 9-रेड में सॉस्कृतिक मँच पर भारतीय दूतावास से भारत के राजदूत महामहिम अरुण कुमार शर्मा अपनी पत्नी श्रीमती पूनम शर्मा के साथ हमारे कार्यक्रम में शिरक़त करने आ रहे हैं. भैया ने महामहिम के साथ मेरा परिचय करवाया. दीप प्रज्ज्वलन के साथ हमारा कार्यक्रम आरम्भ हुआ. ' कुलगीत' गाने का दायित्व मुझ पर था. कुलगीत गाने में, मैत्रेयी, मधूलिका, आशा दीदी एवम् असम की बहनों का मुझे पूरा सहयोग मिला. 'कुलगीत' के पश्चात हमने कवितायें सुनाई और उन्होंने हमें " Minerva Of The East " सम्मान से अलंकृत किया.उन्हें विदा करते समय मैंने आदरणीया पूनम शर्मा जी से अनुरोध किया कि वे ए.आई.पी.सी. की मेम्बर बन जायें तो उन्होंने हॉ कहा है अब देखते हैं कि कब वे मेम्बर बनती हैं, मैंने उन्हें अपनी किताब " चाणक्य-नीति" भेंट की है जिसे उन्होंने मुस्कुराते हुए स्वीकार किया. उनके व्यवहार में एक अपनापन है जिससे हम सभी प्रभावित हुए
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जैसे ही सॉस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ हम सब भाग कर अपने रूम में गए और चेंज करके ' नमस्ते जी' में लंच करने के बाद नेवा नदी में बोटिंग करने चले गए, इसके लिए हमने 700 रुबेल खर्च किए. हमें बोटिंग में बहुत मज़ा आया, हमने वहॉ बीहू डॉस किया, फोटोग्राफी की और पूरे समय हम मस्ती करते रहे.अविस्मरणीय'''''''''' बोटिंग के बाद हम डिनर के लिए फिर ' नमस्ते जी ' हॉटेल में गए और लौटते समय मैं अचानक सबसे अलग हो गई और रास्ता भटक गई. मैं बहुत आगे निकल गई, जब कोई भी नहीं दिखा तो मैं लौट कर उसी रास्ते पर वापस आई और 'नमस्ते जी' रेस्टोरेंट की ओर दुबारा जा रही थी तब हमारे साथियों ने मुझे देख लिया और पूछा-' कहॉ जा रही हो ?' मेरी जान में जान आई पर भैया को मुझ पर बहुत विश्वास था, उन्होंने कहा- ' कोई और होता तो मैं डरता पर मुझे शकुन्तला दीदी पर पूरा विश्वास है वे टैक्सी लेकर हॉटेल पहुँच जायेंगी', मैंने भैया को देखा तो ऑखों में ऑसूँ आ गए पर मैं 'हॉटेल अज़िमत' को याद करके रखी थी और ' ' पार्क इन ' का नाम याद ही नहीं आ रहा था, अब जाऊँ तो कहॉ जाऊँ ? अक्सर छोटी-छोटी बातों पर मेरी ऑखें भर आती हैं फिर गाहे ब गाहे कोई मुझसे पूछता हैं - ' तुम्हारी ऑखों में कितने सागर भरे हुए हैं ?' मैं कहती हूँ ' यह तो मैं नहीं जानती पर इतना जानती हूँ कि मैं जब आप सबसे विदा लूँगी तो मेरे चेहरे पर मुस्कान होगी और मैं चाहूँगी कि आप सब मुझे हँस कर विदा करें ।
2 / 10 / 2015
आज ' पार्क इन ' हॉटेल को भी विदा करना है. यह बहुत ही सुन्दर तीन सितारा हॉटेल है. अभी 10 बजे हैं. हमने जलपान कर लिया और हॉटेल के अन्दर ही शॉपिंग करने में लग गए हैं. हमें 11.00 बजे यहॉ से निकलना है. हम रूस के रेल - मार्ग से पुनः मास्को जाने के लिए रेल्वे-स्टेशन की ओर चल पडे हैं और अपनी गाइड एना से भी विदा ले रहे हैं' जैसे ही ट्रेन आई हमने अपना टिकट अपने हाथ में लिया और मास्को के लिए रवाना हो गए' मास्को में हमें एलोविना फिर से मिल गई वह हमारे लिए कोच लेकर आई थी, राह के अन्तिम पडाव में बहनों ने अपने-अपने विचार प्रकट किए और फिर भैया ने बताया कि हम 2016 में बाली और जकार्ता जा रहे हैं. हम एरोड्रम पहुँच गए हैं और चेक इन कर रहे हैं. सभी औपचारिकतायें पूरी करके हम अरब अरेबिया में बैठ गए हैं
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3 / 10 / 2015
इस विमान ने रशियन समय के अनुसार 4. 45 को हमें शारजाह पहुँचाया है. यहॉ हम हाथ-मुँह धोकर चाय-पानी पीकर पुनः एअर-अरेबिया के विमान पर सवार हो गए हैं और शाम को भारतीय समयानुसार हम 5.30 बजे इन्दिरा गॉधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँच गए हैं. हमने जल्दी-जल्दी अपना-अपना सामान लिया और सबसे विदा लेते हुए अपने गन्तव्य की तलाश में निकल पडे- " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी." मैं अचानक ' चन्दन कस तोर माटी हे' का यह गीत गुनगुनाने लगी-
' आम लीम बर पीपर पहिरे छत्तीसगढ के सब्बो गॉव ।
नरवा- नदिया तीर म बइठे छत्तीसगढ के सब्बो गॉव ॥'
25 / 09 / 2015
2015 में हम रूस की यात्रा पर निकल रहे हैं. हमें इन्दिरा गॉधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली में 10 बजे रात तक पहुँचना है और 11. 30 को चेक इन करना है. इस बार छत्तीसगढ से हम चार बहनें रूस घूमने जा रही हैं- आशा लता नायडू, चन्द्रावती नागेश्वर, मधूलिका अग्रवाल और मैं पर आशा दीदी आज कल मुँबई में रहती हैं तो वे हमें दिल्ली एअरपोर्ट पर मिलेंगी. अब मैं चन्द्रा और मधु, गोंडवाना से ए सी 3 में बैठ कर दिल्ली जारहे हैं. हमारे सामने के बर्थ पर हमारे जगदलपुर के भदौरिया दम्पत्ति विराजमान हैं और उनसे हमारी दोस्ती भी हो गई है. हँसते-गाते, खाते-पीते कब भोपाल आ गया हमें पता ही नहीं चला. भोपाल में मेरी बेटी आस्था मुझसे मिलने आई है वस्तुतः मिलने के बहाने वह मेरे पसन्द की खाने-पीने की चीज़ें लेकर आई है. हम तीनों के लिए कॉफी लाई है, पर हम सभी ने कॉफी बॉट कर पी, मूँगफली खाई और हँसते-गाते हमने अपना सफर तय किया. निजामुद्दीन में हम उतर गए
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26 / 09 / 2015
हम तीनों छत्तीसगढ सदन की ओर जा रहे हैं. यहॉ हमने दिन भर के लिए एक कमरा ले लिया है. हम आराम से नहाए धोए फिर मधु और चन्द्रा ने कैंटीन से खाना मँगवा लिया पर मैं घर से जो पराठा और करेले की सब्ज़ी ले गई थी उसी को खाई. दोपहर को हम शॉपिंग के लिए निकल गए, नागेश्वर को मफलर चाहिए था पर मफलर कहीं नहीं मिला. हम लोग घूम- घाम कर आ गए. थोडी देर आराम किए फिर उन दोनों ने डिनर मँगाया और मैंने वही घर का खाना खाया. काउन्टर में फोन करके हमने टैक्सी मँगाई और रात को आठ बजे एरोड्रम की ओर निकल गए, वहॉ हमें टर्मिनल-5 में एकत्र होना है. हम वहॉ पहुँचकर इतमिनान से बैठ गए. बहनें आती रहीं गप-शप चलता रहा और फिर आशा दीदी का फोन आया-'शकुन! तू कहॉ है ? मैं टर्मिनल 4 के पास खडी हूँ.' मैं आशा दीदी को लेने गई तो दंग रह गई. दीदी इतना सामान लेकर आई हैं, हे भगवान ! कैसे ढोएंगी ? अभी तो मैं ढो रही हूँ पर...मैंने दीदी से पूछा तो वे बोलीं- ' उठा लूँगी रे ! तू चिन्ता मत कर. आशा दीदी घर कुछ-कुछ बना कर लाई थीं उसे हम सब खाए और जब पूरी टीम इकट्ठी हो गई तो भैया ने कहा- ' चलो ! कतार बना लो, चेक इन करना है' आगे-आगे भैया-भाभी और पीछे-पीछे हम सभी कतार से चलते रहे, औपचारिकतायें पूरी करते रहे फिर अरब-अरेबिया के प्लेन पर बैठ गए.
27/ 09 / 2015
हमारा प्लेन 4 .10 को सुबह उडा और हमें लगभग 4 - 5 घंटे में शारज़ाह पहुँचा दिया. शारज़ाह में हमने हाथ - मुँह धोकर चाय पी, ब्रेकफास्ट किया और फिर अरब अरेबिया से मास्को के लिए रवाना हो गए. जब हम मास्को पहुँचे तो शाम हो रही थी और मास्को के समय के अनुसार मेरी घडी में शाम के 5.30 बजे थे. मास्को में बोर्डिंग के समय बहुत वक़्त लग गया और इसी चक्कर में शाम को सर्कस देखने का हमारा अभियान फेल हो गया जबकि हमारी टिकट हो चुकी थी फिर भी हम वहॉ के नायाब सर्कस को नहीं देख पाए इसका अफसोस है पर यात्रा के दौरान तो इस तरह की घटनायें होती रहती हैं तो ' बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेइ' की राह पर आगे बढते हैं.मास्को में हमारी गाइड श्वेता श्वेतलाना,हमारे लिए गाडी लेकर हमें रिसीव करने आई है. श्वेता गज़ब की सुन्दर है, मुस्कुराता हुआ चेहरा, अपने कार्य के प्रति उसका समर्पण, प्रणम्य है. हम मास्को सिटी की ओर बढ रहे हैं और हमारे भैया हमें बता रहे हैं कि-' देखो ! यह 'मास्कवा' नदी है, इसी के नाम पर इस शहर का नाम ' मास्को' पडा, उन्होंने हमें 'वोल्गा' नदी से रूबरू करवाया और बतलाया कि यह 'गंगा' जैसी महत्वपूर्ण नदी है और यह भी बताया कि क्रेमलिन जैसा सुन्दर राजमहल कहीं नहीं है. हमारे संस्थापक डॉ लारी आज़ाद इतिहास के प्राध्यापक हैं और अपनी विभिन्न गतिविधियों द्वारा सम्पूर्ण विश्व में जाने जाते हैं. वे हमें इतिहास की घटनाओं को बडी दिलचस्पी से लगातार बताते जाते हैं और मैं सभी घटनाओं को लिखना चाहती हूँ पर बीच-बीच में छूट जाता है, मुझे इतिहास और भूगोल की तनिक़ भी जानकारी नहीं है कि मैं घटनाओं को आपस में जोड सकूँ. काश ! मैं भैया के एक-एक शब्द को लिख पाती तो मेरा ब्लॉग कितना भव्य बन जाता.अब हम डिनर के लिए जा रहे हैं. रेस्टोरेंट का नाम है -'तन्दूरी नाइट'. यह एक भारतीय रेस्टोरेंट है. यहॉ हमने भोजन किया और फिर अपने हॉटेल ' मास्को अज़िमत ओलम्पिक' में जाकर आराम किया. यह एक चार सितारा हॉटेल है,बहुत सुन्दर और साफ-सुथरा है. हम बहुत थके हुए थे, ठंड बहुत थी. अधिकतम-16' c और न्यूनतम 3'c.आशा दीदी मेरे साथ हैं,हमें 11वें माले में रूम मिला है, बहुत ही साफ-सुथरा,आराम-दायक बिस्तर है. मन प्रसन्न हो गया, हमें अच्छी नींद आई
28 / 09 / 2015
हम सुबह उठे तो बारिश हो रही थी. जब हम नहा-धोकर जलपान के लिए पहुँचे तो हमने देखा कि सैकडों तरह की चीज़ें वहॉ विद्यमान हैं, मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या खाऊँ ? मैं सूखे मेवे की ओर गई और अखरोट,बादाम,किसमिस और एक गोल-गोल कुछ था, जिसका स्वाद चिरौंजी जैसा था,उसे लेकर आई, दो केले और एक सेब खाई,मेरा पेट भर गया, खाने में मज़ा भी आया.अब हम घूमने जा रहे हैं जिधर नज़र जाती है वहॉ से उठती नहीं है. साफ-सुथरी सडकें हरे-भरे बागों ने हमारा ऑचल पकड लिया. अभी दोपहर के दो बजे हैं,अब हम लंच के लिए 'स्लोथनिक हॉटेल' में जा रहे हैं.यह एक भारतीय रेस्टोरेंट है, हमने यहॉ भोजन किया खाना अच्छा था पर रोटी मैदे की थी. लंच के बाद हम म्युज़ियम देखने के लिए फिर निकल गए और फिर शाम को हॉटेल 'खजुराहो' में हमारा ए. आई. पी. सी. का कार्यक्रम था. भारतीय दूतावास के संस्कृति-विभाग के डिप्टी-डायरेक्टर श्री सञ्जय जैन हमसे मिलने आए थे और वहॉ की लायब्रेरियन डा. मिताली सरकार भी वहॉ उपस्थित थी. यह एक बहुत ही गरिमामय कार्यक्रम था. भैया ने हम सभी का परिचय श्री सञ्जय जैन जी से करवाया और फिर बहनों ने अपनी-अपनी किताबों का विमोचन करवाया.श्री सञ्जय जैन जी हम सबको भारतीय दूतावास में आमंत्रित करना चाहते थे, किन्तु हमें आज शाम को मास्को के मैट्रो में घूमना था. हम सबने डिनर किया और फिर मैट्रो की ओर चल पडे
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मास्को के मैट्रो तक जब हम पहुँचे तो हम भौचक्के रह गए. मैट्रो की दीवारें इस तरह सजी हुई थीं मानो दीवाली हो. भव्य-दीवारें, अद्भुत-कला-कृतियॉ. मैट्रो तक पहुँचने के लिए हमने आधा-किलोमीटर स्कलेटर का सफर तय किया. हे भगवान ! मेरे भारत को भी ऐसा ही वैभव देना. हर क्षेत्र में मेरा भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे,तुझसे यही प्रार्थना है.
29 / 09 / 2015
आज हमें मास्को से सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचना है. हमने यह तय किया है कि हम ट्रेन से सेंट पीटर्सबर्ग जायेंगे. हमने जलपान किया और फिर अपनी गाडी में बैठ कर मास्को के रेल्वे-स्टेशन पर पहुँच गए. हम वहॉ अपनी गाडी में अपनी सीट पर बैठ गए.ट्रेन में जब मैं वाश-रूम गई तो मैंने देखा वाश-रूम के भीतर एक सुन्दर सी लडकी खडी है मैंने संकोच-वश तुरन्त दरवाजा बन्द कर दिया. थोडी देर बाद जब मैंने फिर दरवाज़ा खोला तो वही सुन्दरी फिर दिखी, इस बार मैंने उस पर दृष्टि डाली तो पता चला कि वह दर्पण है. मैं बाहर आकर जब अपनी सहेलियों को यह बात बताई तो उन्होंने मेरी अच्छी मरम्मत की,कहा-' तू और सुन्दर ? कभी दर्पण में अपनी शकल देखी है ? ' मैंने कहा- ' हॉ, आज देखी हूँ.' और हम सभी हँसती हुई लोट-पोट हो गईं.
गोधूलि-वेला में हम सेंट-पीटर्सबर्ग पहुँचे. वहॉ हमारी दूसरी गाइड एना हमारे लिए कोच लेकर आई थी. हम सब उसी के पीछे कतार-बद्ध होकर चलते गए और अपनी गाडी पर जाकर बैठ गए. एक भारतीय रेस्टोरेंट जिसका नाम 'नमस्ते जी' है हम डिनर के लिए गए फिर अपने हॉटेल ' पार्क इन ' पहुँचकर विश्राम किए. मैं और आशा दीदी साथ-साथ हैं. हमें दसवें माले में रूम मिला है और हमारे रूम का नम्बर है-10012. सेंट पीटर्सबर्ग में हमने 'नेवा' नदी देखी जो आगे जाकर मास्कवा और वोल्गा नदी से मिल गई है और फिर मेरे होठों में यह गीत थिरकने लगा -
सागर मिले कौन से जल में कोई जाने न ओहो रे ताल मिले
30 / 09 / 2015
1/ 10/ 2015
आज हम सब अपने-अपने प्रदेश के पारम्परिक परिधान में सजे-धजे बैठे हैं क्योंकि आज 9-रेड में सॉस्कृतिक मँच पर भारतीय दूतावास से भारत के राजदूत महामहिम अरुण कुमार शर्मा अपनी पत्नी श्रीमती पूनम शर्मा के साथ हमारे कार्यक्रम में शिरक़त करने आ रहे हैं. भैया ने महामहिम के साथ मेरा परिचय करवाया. दीप प्रज्ज्वलन के साथ हमारा कार्यक्रम आरम्भ हुआ. ' कुलगीत' गाने का दायित्व मुझ पर था. कुलगीत गाने में, मैत्रेयी, मधूलिका, आशा दीदी एवम् असम की बहनों का मुझे पूरा सहयोग मिला. 'कुलगीत' के पश्चात हमने कवितायें सुनाई और उन्होंने हमें " Minerva Of The East " सम्मान से अलंकृत किया.उन्हें विदा करते समय मैंने आदरणीया पूनम शर्मा जी से अनुरोध किया कि वे ए.आई.पी.सी. की मेम्बर बन जायें तो उन्होंने हॉ कहा है अब देखते हैं कि कब वे मेम्बर बनती हैं, मैंने उन्हें अपनी किताब " चाणक्य-नीति" भेंट की है जिसे उन्होंने मुस्कुराते हुए स्वीकार किया. उनके व्यवहार में एक अपनापन है जिससे हम सभी प्रभावित हुए
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जैसे ही सॉस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ हम सब भाग कर अपने रूम में गए और चेंज करके ' नमस्ते जी' में लंच करने के बाद नेवा नदी में बोटिंग करने चले गए, इसके लिए हमने 700 रुबेल खर्च किए. हमें बोटिंग में बहुत मज़ा आया, हमने वहॉ बीहू डॉस किया, फोटोग्राफी की और पूरे समय हम मस्ती करते रहे.अविस्मरणीय'''''''''' बोटिंग के बाद हम डिनर के लिए फिर ' नमस्ते जी ' हॉटेल में गए और लौटते समय मैं अचानक सबसे अलग हो गई और रास्ता भटक गई. मैं बहुत आगे निकल गई, जब कोई भी नहीं दिखा तो मैं लौट कर उसी रास्ते पर वापस आई और 'नमस्ते जी' रेस्टोरेंट की ओर दुबारा जा रही थी तब हमारे साथियों ने मुझे देख लिया और पूछा-' कहॉ जा रही हो ?' मेरी जान में जान आई पर भैया को मुझ पर बहुत विश्वास था, उन्होंने कहा- ' कोई और होता तो मैं डरता पर मुझे शकुन्तला दीदी पर पूरा विश्वास है वे टैक्सी लेकर हॉटेल पहुँच जायेंगी', मैंने भैया को देखा तो ऑखों में ऑसूँ आ गए पर मैं 'हॉटेल अज़िमत' को याद करके रखी थी और ' ' पार्क इन ' का नाम याद ही नहीं आ रहा था, अब जाऊँ तो कहॉ जाऊँ ? अक्सर छोटी-छोटी बातों पर मेरी ऑखें भर आती हैं फिर गाहे ब गाहे कोई मुझसे पूछता हैं - ' तुम्हारी ऑखों में कितने सागर भरे हुए हैं ?' मैं कहती हूँ ' यह तो मैं नहीं जानती पर इतना जानती हूँ कि मैं जब आप सबसे विदा लूँगी तो मेरे चेहरे पर मुस्कान होगी और मैं चाहूँगी कि आप सब मुझे हँस कर विदा करें ।
2 / 10 / 2015
आज ' पार्क इन ' हॉटेल को भी विदा करना है. यह बहुत ही सुन्दर तीन सितारा हॉटेल है. अभी 10 बजे हैं. हमने जलपान कर लिया और हॉटेल के अन्दर ही शॉपिंग करने में लग गए हैं. हमें 11.00 बजे यहॉ से निकलना है. हम रूस के रेल - मार्ग से पुनः मास्को जाने के लिए रेल्वे-स्टेशन की ओर चल पडे हैं और अपनी गाइड एना से भी विदा ले रहे हैं' जैसे ही ट्रेन आई हमने अपना टिकट अपने हाथ में लिया और मास्को के लिए रवाना हो गए' मास्को में हमें एलोविना फिर से मिल गई वह हमारे लिए कोच लेकर आई थी, राह के अन्तिम पडाव में बहनों ने अपने-अपने विचार प्रकट किए और फिर भैया ने बताया कि हम 2016 में बाली और जकार्ता जा रहे हैं. हम एरोड्रम पहुँच गए हैं और चेक इन कर रहे हैं. सभी औपचारिकतायें पूरी करके हम अरब अरेबिया में बैठ गए हैं
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इस विमान ने रशियन समय के अनुसार 4. 45 को हमें शारजाह पहुँचाया है. यहॉ हम हाथ-मुँह धोकर चाय-पानी पीकर पुनः एअर-अरेबिया के विमान पर सवार हो गए हैं और शाम को भारतीय समयानुसार हम 5.30 बजे इन्दिरा गॉधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँच गए हैं. हमने जल्दी-जल्दी अपना-अपना सामान लिया और सबसे विदा लेते हुए अपने गन्तव्य की तलाश में निकल पडे- " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी." मैं अचानक ' चन्दन कस तोर माटी हे' का यह गीत गुनगुनाने लगी-