पावस अपने रुदन में भी तुम जग का कितना हित करती हो
अपनी व्यथा नीर के द्वारा धरती को सम्प्रेषित करती हो ।
कृषक तुम्हारी बाट जोहता आतुर - अँखियॉ पथ पर होती
देर हुई यदि आने में तो उसकी अँखियॉ नींद न सोती ।
बचपन तेरी करे प्रतीक्षा आओ पावस करो शीघ्रता
यदि तुम आए नहीं तो मेरा रह जाएगा गागर रीता ।
कहॉ चलाऊँगा मैं अपनी छोटी सी क़ागज़ की नाव
गलियों में छप्पक- छप करते किस विधि पार करूँगा गॉव ।
सावन में आयेंगे साजन यही सोचती हैं ललनायें
घटा न छाई मेघ न बरसे गीत मिलन के कैसे गायें ?
मोर देखते राह तुम्हारी मेघ - थिरकते मोर नाचता
उसके नर्तन की पोथी को व्याकुल - प्रेमी सदा बॉचता ।
दादुर टर्र - टर्र की बोली में क्या कुछ मन को नहीं बताते
पावस तुमसे प्रेमी - जन जीते विरह - व्यथा भी वे सह जाते ।
निश्चित ही नीर रुदन है तेरा तेरी पीडा फूट पडी है
जो जग को अजस्त्र - वर देता विपदा उसकी बहुत बडी है ।
पावस पल -पल पर - सेवा पर कर दे अर्पित सब कुछ अपना
अपना आपा त्याग करे वह प्राणि - मात्र की सुख - संरचना ।
मनुज कदाचित् सीख ले किंचित् पावस चिंतन पावस गरिमा
रहे शाश्वत सुयश उसी का इतिहास कहे उसकी ही महिमा ।
अपनी व्यथा नीर के द्वारा धरती को सम्प्रेषित करती हो ।
कृषक तुम्हारी बाट जोहता आतुर - अँखियॉ पथ पर होती
देर हुई यदि आने में तो उसकी अँखियॉ नींद न सोती ।
बचपन तेरी करे प्रतीक्षा आओ पावस करो शीघ्रता
यदि तुम आए नहीं तो मेरा रह जाएगा गागर रीता ।
कहॉ चलाऊँगा मैं अपनी छोटी सी क़ागज़ की नाव
गलियों में छप्पक- छप करते किस विधि पार करूँगा गॉव ।
सावन में आयेंगे साजन यही सोचती हैं ललनायें
घटा न छाई मेघ न बरसे गीत मिलन के कैसे गायें ?
मोर देखते राह तुम्हारी मेघ - थिरकते मोर नाचता
उसके नर्तन की पोथी को व्याकुल - प्रेमी सदा बॉचता ।
दादुर टर्र - टर्र की बोली में क्या कुछ मन को नहीं बताते
पावस तुमसे प्रेमी - जन जीते विरह - व्यथा भी वे सह जाते ।
निश्चित ही नीर रुदन है तेरा तेरी पीडा फूट पडी है
जो जग को अजस्त्र - वर देता विपदा उसकी बहुत बडी है ।
पावस पल -पल पर - सेवा पर कर दे अर्पित सब कुछ अपना
अपना आपा त्याग करे वह प्राणि - मात्र की सुख - संरचना ।
मनुज कदाचित् सीख ले किंचित् पावस चिंतन पावस गरिमा
रहे शाश्वत सुयश उसी का इतिहास कहे उसकी ही महिमा ।
जीवन देता पावस -अच्छी कविता
ReplyDeleteपावस का अति सुंदर चित्रण...
ReplyDeleteजीवन को जीवन देती है यह पावस की रुत !
ReplyDeleteसुन्दर काव्य !
बाहर भीतर पानी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता.....................
ReplyDelete