देश का दिल भोपाल हमारा
कितना सुन्दर कितना प्यारा ।
एक बार तुम आकर देखो
तुम फिर आओगे दोबारा ।
हबीबगँज में एक मोहल्ला
पारस - सिटी है जिसका नाम ।
भाई - चारे का मिसाल हैं
बसते हैं जो यहॉ - तमाम ।
इस बस्ती की बात-बताऊँ
एक लडकी की कहूँ कहानी ।
एक लँगडी लडकी है पारो
पर पारो है बडी - सयानी ।
करुण-कथा है पारो का पति
किसी और के साथ गया है ।
कारण इसकी दो बेटियॉ हैं
"मुझको बेटा नहीं मिला है ।"
उस मूरख को कौन बताए
इसमें पारो का नहीं है दोष ।
बिना दोष की सज़ा भुगतती
धरती है मन में संतोष ।
वह झाडू- पोछा करती है
दोनों बच्चों को पोंस रही है ।
कथा बताते समय स्वयं ही
अपने - आपको कोस रही है ।
पच्चीस बरस की है बेचारी
अपमानित होकर जीती है ।
डटकर काम किया करती है
तिरस्कार को वह पीती है ।
एक दिन मैंने उसे बुलाया
अच्छे से उसको समझाया ।
" लञ्च बनाकर बेचो पारो"
विधि-विधान भी उसे बताया ।
पारो को बात समझ में आई
घर में शुरू हुआ यह काम ।
चार-रोटियॉ साग-अचार
औरों से कुछ कम हैं दाम ।
ग्राहक बढते रहे निरन्तर
उसका बढा आत्म-विश्वास ।
बच्चे पढने जाते बस में
वह स्कूल भी है कुछ खास ।
अब पारो भी मुस्काती है
पारो ने पाया परि -तोष ।
खुश-खुश रहते हैं बच्चे भी
सबके मन में है सन्तोष ।
रात के पीछे दिन आता है
दिन के पीछे आती रात ।
एक - एक दिन करते करते
बीत गई कितनी बरसात ।
बेटी डाक्टर बन कर आई
भोपाल में प्रैक्टिस करती है ।
आईआईटी मुँबई में छोटी
आठ सेमेस्टर में पढती है ।
रोटी- सब्ज़ी नाम से चलता
पारो का यह पहुना - घर ।
अपनापन है इस होटल में
जैसे हो यह अपना - घर ।
उद्यम से पारो ने पाया
जीवन में एक नया मुकाम ।
कर्म-योग की महिमा अद्भुत
बन सकता है मनुज - महान ।
कितना सुन्दर कितना प्यारा ।
एक बार तुम आकर देखो
तुम फिर आओगे दोबारा ।
हबीबगँज में एक मोहल्ला
पारस - सिटी है जिसका नाम ।
भाई - चारे का मिसाल हैं
बसते हैं जो यहॉ - तमाम ।
इस बस्ती की बात-बताऊँ
एक लडकी की कहूँ कहानी ।
एक लँगडी लडकी है पारो
पर पारो है बडी - सयानी ।
करुण-कथा है पारो का पति
किसी और के साथ गया है ।
कारण इसकी दो बेटियॉ हैं
"मुझको बेटा नहीं मिला है ।"
उस मूरख को कौन बताए
इसमें पारो का नहीं है दोष ।
बिना दोष की सज़ा भुगतती
धरती है मन में संतोष ।
वह झाडू- पोछा करती है
दोनों बच्चों को पोंस रही है ।
कथा बताते समय स्वयं ही
अपने - आपको कोस रही है ।
पच्चीस बरस की है बेचारी
अपमानित होकर जीती है ।
डटकर काम किया करती है
तिरस्कार को वह पीती है ।
एक दिन मैंने उसे बुलाया
अच्छे से उसको समझाया ।
" लञ्च बनाकर बेचो पारो"
विधि-विधान भी उसे बताया ।
पारो को बात समझ में आई
घर में शुरू हुआ यह काम ।
चार-रोटियॉ साग-अचार
औरों से कुछ कम हैं दाम ।
ग्राहक बढते रहे निरन्तर
उसका बढा आत्म-विश्वास ।
बच्चे पढने जाते बस में
वह स्कूल भी है कुछ खास ।
अब पारो भी मुस्काती है
पारो ने पाया परि -तोष ।
खुश-खुश रहते हैं बच्चे भी
सबके मन में है सन्तोष ।
रात के पीछे दिन आता है
दिन के पीछे आती रात ।
एक - एक दिन करते करते
बीत गई कितनी बरसात ।
बेटी डाक्टर बन कर आई
भोपाल में प्रैक्टिस करती है ।
आईआईटी मुँबई में छोटी
आठ सेमेस्टर में पढती है ।
रोटी- सब्ज़ी नाम से चलता
पारो का यह पहुना - घर ।
अपनापन है इस होटल में
जैसे हो यह अपना - घर ।
उद्यम से पारो ने पाया
जीवन में एक नया मुकाम ।
कर्म-योग की महिमा अद्भुत
बन सकता है मनुज - महान ।