Monday, 11 January 2016

भूमिका

      बेटी बचाओ

" बेटी बचाओ "  नारा देश को संयमित - संतुलित करने का संदेश सम्प्रेषित करता है । अजन्मी - बेटी को दुनियॉ देखने के पूर्व मार डालना,जघन्य हत्या तो है ही, सामन्ती सोच की शोषण - वृत्ति और रूढिग्रस्त पारम्परिक प्रवृत्ति का पोषण भी है जो प्रकारांतर में पुरुषवादी समाज के अहं की तुष्टि का कुत्सित स्वरूप दिग्दर्शित करता है । जन्म लेते ही बेटे और बेटी में अंतर निर्दिष्ट करना और जीवन पर्यन्त इस भेद को बनाए - बढाए रखना निम्न - निकृष्ट व सीमित - संकुचित दृष्टि का प्रतिफलन है जो अद्य - पर्यन्त अक्षुण्ण है । शिक्षा - शास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस विषय को वैचारिक वितान विनिर्मित कर विवेचित विश्लेषित करते हैं जबकि एक कवि संवेदना से संपृक्त कर इस तरह प्रस्तुत करता है कि वह सीधा मर्म को स्पर्श करता है । ' बेटी ' वह भी यदि विकलॉग हो तो भावना की छलॉग कविता में, आख्यानकता का आश्रय ढूँढती है और यदि लेखनी कवयित्री की हो तो 'सोने में सुहागा ' का मुहावरा मूर्त्त हो जाता है ।

एक महिला साहित्यकार के रूप में शकुन्तला शर्मा देश - विदेश में छत्तीसगढ का नाम रोशन कर रही हैं । इनकी रचनाओं में इक्कीसवीं सदी के नव्य स्पर्श  "विकलॉग - विमर्श  " का  वृत्त विनिर्मित करने का उद्यम उपस्थित है । छत्तीसगढी की विकलॉग -विमर्ष-विषयक लघु-कथाओं का संग्रह  "करगा" इनकी चर्चित कृति है और अब इसके बाद  "बेटी बचाओ " शीर्षक  से विकलॉग विमर्श के आख्यानक गीतों का संग्रह प्रस्तुत हो जाना महत्वपूर्ण घटना का सूत्रपात ही कहा जाएगा। कवयित्री की घुमक्कड-वृत्ति और अकादमिक, साहित्यिक,सामाजिक  संस्थाओं  के  आमंत्रण पर सहर्ष उपस्थित होने की प्रवृत्ति ने उन्हें अनुभव का जो व्यापक धरातल दिया उससे उनके विषय को भी असीम आकाश मिला । " जिन खोजा तिन पाइयॉ " के अनुरूप रुचि -प्रवृत्ति की नींव " जहॉ चाह वहॉ राह "  के भवन को आकार देती है तदनुरूप शकुन्तला शर्मा जो देखना चाह रही हैं, वह दृश्य उनके समक्ष प्रस्तुत हो जाता है । आसपास से लेकर प्रदेश और देश - विदेश - पर्यन्त   उन्हें जितने भी विकलॉग मिले उन्होंने उनके जीवन को जाँचकर और आदमियत को ऑक कर आख्यानक गीतों का जो ताना - बाना रचा, वह हिन्दी काव्य - जगत के लिए भी नयी भाव - भूमि प्रदान करती है । उन्होंने संग्रहीत इंक्यावन विकलॉगजन्य आख्यानक गीत लिखकर विकलॉगों का जो जीवन -दर्शन प्रस्तुत किया वह अनुपम - अद्भुत है । इन कथा - गीतों में कहीं भी विकलॉग - जन, दया या कृपा के पात्र नहीं हैं । वे सभी आत्मबल के पथ से, आत्मनिर्भरता का गन्तव्य ही प्राप्त नहीं करते अपितु उत्कट - जिजीविषा के जज़्बे को  अक्षुण्ण रखकर उत्कर्ष को स्पर्श कर लेने का माद्दा भी रखते हैं । वे सकलॉगों की तरह न शार्टकट का सहारा लेते हैं न और न ही बेईमानी और भ्रष्टाचार की सीढी से आगे बढने का तिकडम करते हैं । सत्कर्म से सद्गति को सिद्ध करने और प्रतिभा तथा मेधा के आश्रय से, गतिमान होने के लिए वे साधनामय कर्मठ को लक्ष्य बनाते हैं । अंग विशेष की अल्पता या शिथिलता के कारण, प्रकृति ने इन्हें जो अतिरिक्त शक्ति - क्षमता प्रदान की है,उसे सक्रिय करके वे जटिल - जीवन को विरल तथा प्रतिकूल स्थिति को अनुकूल बना लेने में सिद्ध - हस्त होते हैं । ऐसे चरित्रों को खोजकर, प्रसंगों तथा घटनाओं को उकेर कर, आख्यान के रूप में अधिष्ठित कर, संवेदना के सॉचे में ढालकर, काव्य के रूप में, अभिव्यक्त कर देना सरल कार्य नहीं है । यह शकुन्तला शर्मा जैसी सिद्ध कवयित्री से ही सम्भव है ।

विकलॉग को सहानुभूति नहीं,समानुभूति चाहिए जो कवयित्री के मन में भरी हुई है -

' सरगुजा में एक संगवारी है पर उसके नहीं हैं दोनों हाथ ।
वैसे तो हम दूर - दूर हैं पर मन से रहते हैं साथ - साथ ॥ '

निशक्त निर्विवाद रूप से अशक्त नहीं,सशक्त हैं जो अपनी प्रतिभा का लाभ समाज को समर्पित कर देते हैं -

' जिसको क़मज़ोर समझते थे वह धुरी पडी सब पर भारी ।
उससे साक्षात्कार हो गया यह भी है तकदीर हमारी ॥
वह दुनियॉ - भर में जानी जाती औषधि अन्वेषण करती है
नवजीवन जग को देती है सञ्जीवनी रग में भरती है ॥'

विकलॉगों की कर्मठता, ईमानदारी सच्चरित्रता, उदारता, कृतज्ञता आदि नानाविध दिव्य - गुणों को अनावृत्त करके कवयित्री ने उनके साथ जो संलग्नता और अंतरंगता दिखलाई है, यही विकलॉग - विमर्श का गन्तव्य - मन्तव्य है । उल्लेखनीय है कि सामान्य सी चोट या चुभन हमारा धीरज छीन लेती है परिणामतः हम उपचार और आराम करते हैं, जबकि एक अंग की अनुपस्थिति के बाद भी विकलॉग - जन अपने कार्य को कुशलता पूर्वक अर्थात् सहर्ष सम्पादित कर लेते हैं -
' छोटी सी चोट से हम चिल्लाते लेते नहीं धैर्य से काम
कुछ भी काम नहीं कर पाते करते हैं दिन भर आराम ।
पर बिना हाथ की होकर भी वह पैरों से करती है काम
जिजीविषा उसकी प्रणम्य है करती हूँ मैं उसे प्रणाम ॥'

विकलॉगों के मन में परोपकारिता व पर दुख कातरता है, वह सहज रूप से सकलॉगों में सम्भव नहीं है -
' वाणी - वैभव से वञ्चित बुधिया इतना सब कुछ करती है
आओ उससे जाकर पूछें वह मन में क्या गुनती रहती है ।
उसने लिख कर मुझे बताया यह जीवन है पर - उपकार
परोपकार में सच्चा सुख है यह ही है जीवन का आधार ॥'

विकलॉग पुष्पा सी. बी. आई. में अधिकारी है, जिसने डाकुओं से, रेल - यात्रियों को बचा कर स्फूर्ति - साहस और विवेक - युक्ति का जो करतब दिखाया, वह सन्तुलन - कुशलता व प्रबन्धन - पटुता सचमुच प्रणम्य है -'उस दिन पुष्पा ने मुझे बचाया मुझ पर है उसका एहसान
एक - हाथ वाली लडकी पर अब मुझको भी है अभिमान ।
त्वरित सोच से ही दिखलाया अद्भुत अनुपम आस अदम्य
पराक्रमी  है  मेरी  पुष्पा  वह  हस्ताक्षर  है  एक  प्रणम्य । '
विकलॉग किसी के आश्रय का मोहताज़ नहीं होना चाहता । वह अपना रास्ता बनाने और उस पर स्वतः प्रस्थित होने का पक्षपाती है -
' मदद किसी की लिए बिना ही देखो उसके उच्च - विचार
अपना काम स्वयं करती  है नहीं किसी पर  है वह भार ।'
एक ही भाव - भूमि पर रचित कविताओं में पुनरुक्ति का प्रश्रय सहज है लेकिन यह दोष के रूप में नहीं, अपितु विभिन्न - प्रसंगों में उसे पुष्ट करने की दृष्टि से प्रयुक्त है । इसी तरह लोक - कथाओं के  'लोक - अभिप्राय ' की तरह वर्णन - साम्य [ पुनरुक्ति - प्रयोग ]  काव्य को दुर्बल नहीं प्रत्युत सबल - समर्थ बनाने का संयोजन सिद्ध हुआ है -
' रात के पीछे  दिन आता  है दिन  के पीछे आती रात
एक एक दिन करते करते बीत गई कितनी बरसात ।'

भाषा पर कवयित्री का जबर्दस्त अधिकार है । सरल - सहज होते हुए भी इनकी भाषा सरल - सुबोध है । अरबी - फारसी और अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों के समाहार और यथावसर यत्किंचित् ऑचलिकता के व्यवहार से भाषा, भावों - विचारों को सम्प्रेषित कर पाने में सक्षम - समर्थ है । अलंकार भावोत्कर्ष में सहायक और छ्न्द, भावों के विधायक रूप में अलंकृत है । इस अभिनव कृति से यदि पाठकों को नयी दशा व दिशा की ओर मंथन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो यह इस कृति के प्रकाशन की सार्थकता होगी । शुभ कामनाओं सहित -
सी- 62, अज्ञेय नगर ,                                                          डा. विनय कुमार पाठक
बिलासपुर छ्त्तीसगढ                                                     एम. ए., पी. एच. डी., डी. लिट् [ हिन्दी ] 
मो- 092298 79898                                                      पी. एच. डी., डी. लिट् [ भाषा विज्ञान ]
                                                                                         निदेशक प्रयास प्रकाशन

6 comments:

  1. सारगर्भित भूमिका..'बेटी बचाओ' के प्रकाशन पर आपको बहुत बहुत बधाई..शकुंतला जी.

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  2. बहुत रोचक और सारगर्भित समीक्षा...पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

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  3. बहुत रोचक और सारगर्भित समीक्षा...पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

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  4. Its very important topic on which you have written a very nice article ,everyone should take action to save girls. Indian Matrimony

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  5. मौलिक लेखन और उसके प्रकाशन के लिए हार्दिक शुभकामनायें...

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