Friday, 16 December 2016

मजदूर [ कहानी ]

चैत का महीना है आज अष्टमी तिथि है. आज रामभरोसे और अंजोरा ने उपवास रखा है. माता रानी से मनौती भी मॉगी है कि ' हे देवी ! हमें एक बेटा दे दो, हम पर कृपा करो. हमारा वंशवृक्ष जीवित रहे.' ' बापू ! मुझे भी एक गुडिया चाहिए, रानी के पास है,मुझे भी दिला दो न बापू .' तीन बरस की धनिया ने अपने बापू रामभरोसे से कहा.' हॉ बिटिया, ले दूँगा पर मुझे थोडी सी मोहलत तो दे.' ' मोहलत नहीं दूँगी अभी लाकर दो.' रामभरोसे ने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड दियाऔर कहा- 'ले'.बच्ची तमाचा खाकर ज़मीन पर गिर पडी ऑखों से ऑसूँ बह रहे थे पर बच्ची चुपचाप उठी और घर से बाहर निकल गई.लगभग आधा घंटे बाद धनिया की मॉ अंजोरा ने आवाज़ लगाई-'धनिया ! तू कहॉ है बेटा? आ जा भात खा ले.' जब बार-बार पुकारने पर भी धनिया नहीं आई तो अंजोरा बाहर निकली तो उसने देखा कि रामभरोसे आराम से सो रहा है. उसने रामभरोसे को जगाया और पूछा कि ' धनिया कहॉ है ? यहीं कहीं खेल रही होगी, छोटी सी बच्ची और जाएगी कहॉ ?' दोनों घबरा कर बस्ती के आस-पास धनिया को खोजने लगे पर धनियॉ कहीं नहीं मिली.

छोटी सी बच्ची धनियॉ चलते- चलते एक मंदिर में पहुँची. वह धीरे-धीरे बैठ-बैठ कर मंदिर की सीढी में चढ ही रही थी कि वह लुढक कर गिर गई और बेहोश हो गई. एक पति- पत्नी ने देखा, और ममता से भरकर उन्होंने उस बच्ची को उठा लिया. वे भी माता के मंदिर में संतान की आस लेकर आए थे. बच्ची बेहोश थी उसे तुरंत अस्पताल ले गए. जब बच्ची होश में आई तो उन्होंने बच्ची से पूछा-' तुम्हारा नाम क्या है?' ' मेरा नाम धनिया है.' 'तुम यहॉ पर किसके साथ आई हो?' पर बच्ची ने यही कहा कि ' मैं यहॉ अकेली ही आई हूँ.' ' तुम्हारा घर कहॉ है?' ' वो उधर.'

अजनबी दम्पत्ति, उसे अपनी गाडी में बिठाकर, बहुत देर तक आस-पास की बस्ती में घुमाते रहे पर धनिया का घर नहीं मिला. हार कर वे उस बच्ची को अपने साथ ले गए. जाने के पहले पुलिस चौकी में एफ.आई.आर.दर्ज करवा दिए और इंसपेक्टर से कह दिए कि' जैसे ही इस बच्ची के माता-पिता का पता चले हमें बताइए,हम उनकी बच्ची को उसके मॉ-बाप को सौंप देंगे.' पुलिस इंसपेक्टर ने भी बच्ची को अपनी कस्टडी में लेने की ज़िद नहीं की क्योंकि वे जानते थे कि यह सज्जन कोई और नहीं यहॉ के कलेक्टर तिवारी जी हैं. बच्ची भूखी थी. पति-पत्नी ने बच्ची को बडे प्यार से खिलाया, उसकी पसन्द की चीज़ें उसे दीं और ढेर सारे खिलौने देकर कहा- 'जाओ,अपने खिलौने के साथ खेलो. बच्ची ने पूछा-' यह सब मेरा है क्या ?' पति-पत्नी ने एक साथ मुस्कुरा कर कहा-' जी हॉ, यह सब आपका ही है.' बच्ची खुश होकर खेलने लगी. धनिया के लिए तरह-तरह के कपडे, जूते और उसकी पसन्द की हर चीज़ आ गई. धनिया की खुशी का ठिकाना नहीं था. घर में टीचर आ गई.बच्ची पढ्ने लगी.डी.पी.एस.में उसका एडमीशन हो गया. धनिया यहॉ के रंग में रंग गई, उसे जीने में मज़ा आने लगा.

हम सभी काम करते-करते थक जाते हैं और थक कर सो जाते हैं पर काल-चक्र कभी नहीं थमता, वह निरंतर चलता रहता है. धनिया बारहवीं पास होने के बाद आई.आई.टी. मुँबई से बी.टेक. कर ली है. वह आई.ए.एस. फाइट कर रही है. वह अपने भविष्य के प्रति बहुत सावधान है और बहुत मेहनत कर रही है. उसके माता-पिता तिवारी दम्पत्ति अपनी बेटी की सफलता पर फूले नहीं समाते. उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है.

आज एक मई है-मज़दूर दिवस. रामभरोसे और अंजोरा आज धनिया का जन्मदिन मना रहे हैं.मन ही मन सोच रहे हैं. 'आज धनिया तेइस बरस की हो गई होगी, न जाने कहॉ होगी ? किस हाल में होगी ? कोई अनहोनी न हो गई हो' यही सोचते-सोचते माता-पिता दोनों के ऑसू थमते नहीं. अभी उनका एक बेटा है जिसका नाम रामू है. उसने बारहवीं पास कर ली है और अभी वह बीस बरस का हो चुका है. वह रामभरोसे के साथ मज़दूरी करने जाता है. अंजोरा अपनी बस्ती के आसपास दो -तीन घरों में चौका-बर्तन करती है.किसी तरह जीवन की गाडी चल रही है. आधार कार्ड से चॉवल,गेहूँ और चना मिल जाता है,इस प्रकार तीनों अच्छे से जी रहे हैं.

तिवारी जी आज अपने पद से रिटायर्ड हो रहे हैं,आज उनका विदाई समारोह है. उनकी पत्नी और बच्ची धनिया भी इस कार्यक्रम में आई हैं. प्रथम पंक्ति में बैठी हुई हैं, इन्हें भी समारोह में बोलने का अवसर मिला.उनकी बेटी ने कहा- कि ' मेरे पापा खास हैं वे दुनियॉ के सबसे अच्छे पापा हैं.' सबने जोरदार तालियॉ बजाईं और धनियॉ को बहुत मज़ा आया.

आज आई.ए.एस. का परिणाम आने वाला है,जैसे ही न्यूज़ पेपर आया तो धनिया दौड कर गई और अपना रीज़ल्ट देखने लगी. वह थोडी देर में रोते-रोते अपने पापा के पास पहुँची और बोली-' पापा ! मेरा नाम कहीं नहीं है', वह फूट- फूट कर रोने लगी. पापा हँसने लगे- " मेरी बिटिया का नाम नहीं है क्या ? और यह क्या है?' धनिया ने देखा- वह तो आई.ए.एस.में टॉप की है,अव्वल आई है. वह खुशी के मारे रोने लगी. बधाई देने वालों का तॉता लग गया. रामू अपने साहब को रोज पेपर देने जाता है, उसके बाद अपना काम करता है. आज उसने पेपर में बडे-बडे अक्षरों में धनिया का नाम देखा तो उसे भी अपनी बहन की याद आ गई. उसने घर जाकर अपने माता-पिता को यह बात बताई. रामभरोसे और अंजोरा ने सोचा- ' चलो! एक बार उससे मिल लेते है . वे तीनो कलेक्टर के बंगले तक पहुँच गए. बहुत देर तक बाहर में खडे रहे. वहॉ बहुत लोग पहले से ही खडे हुए थे. धनिया सबसे मिल रही थी. जब वह रामभरोसे से मिली तो उसने धीरे से कहा- ' मुझे माफ कर दे धनिया मैं उस समय तुझे गुडिया नहीं दे सका लेकिन आज मैं तेरे लिए गुडिया लेकर आया हूँ, ए ले.' धनिया ने रामभरोसे के हाथ से गुडिया को लिया और बापू कह कर अपने पिता से लिपट गई फिर मॉ से मिली. रामू ने अपनी दीदी को प्रणाम किया. वह अपने परिवार से मिलकर बहुत खुश हुई. वह इस खुश्खबरी को बॉटने के लिए जैसे ही वह पीछे मुडी, तिवारी दम्पत्ति ने उसे कुछ भी कहने से मना कर दिया. तिवारी जी ने रामभरोसे का उनकी पत्नी ने अंजोरा का आलिंगन किया और अपने साथ अपने घर में ले गए. धनिया औ रामू एक-दूसरे का हाथ पकड कर इस तरह घर में घुस रहे थे जैसे वे बरसों से इसी घर में रहते हों. सबकी ऑखों में खुशी के ऑसूँ थे. मातारानी ने सभी की फरियाद सुन ली थी.
शकुन्तला शर्मा,भिलाई,छ्त्तीसगढ, मो- 09302830030
  

1 comment:

  1. Aapane yah nahi bataya ki Dhaniya par bhi likha hai. Thik hai kahani.

    ReplyDelete