Monday, 23 January 2017

कुण्डली

छन्द की बात अलग है, लिखती - हूँ  मै छन्द     
मिलन की रात विलग है ,मुझे मिला मकरंद।
मुझे- मिला - मकरन्द ,छन्द  में आकर्षण  है
अद्भुत  है आनन्द, छन्द  में  सम - अर्पण है ।
सुरति निरति का कंद,अजब आभास अमल है
लिखती हूँ  मैं छन्द ,छन्द की बात अलग  है ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ

नमामि गंगे

किसने  मैली  की  है गंगा इसको अब स्वच्छ करेगा कौन
हमने  ही  मैली  की  है  गंगा  मान लो अब तोडो यह मौन ।

मुँह  में  राम  बगल  में छूरी कथनी - करनी का अन्तर है
ले - डूबा  सम्पूर्ण  देश  को अब अनुभव  होता अक्सर  है ।

गंगा  पर  शव - दाह  मत  करो इससे मोक्ष नहीं मिलता है
मनुज कर्म से पुण्य कमाता मानस कमल तभी खिलता है ।

अस्थि - विसर्जन  से अब  कैसे  बचे  बेचारी  गंगा - माई
खुद मैली हो गई है देखो रोई फिर हमें गुहार गुहार लगाई ।

ऑचल - उज्ज्वल  हो  गंगा  का  ऐसी  कोई युक्ति बताओ
मन में गंगा - पूजन  हो बस यही  बात सबको समझाओ ।

गंगा सम यदि मन हो पावन कठौती में आ जाती है गंगा
यही  प्रयास  करें  हम  हरदम  सदा  हमारा  मन हो चंगा ।

भारत की हर नदिया गंगा है रखना है  इसका  भी  ध्यान
हर नदिया हो स्वच्छ हमारी चलता रहे सतत अभियान ।

फूट - फूट कर यह रोती है थक- कर हुई स्वतः अब मौन 
किसने मैली की है गंगा अब इसको स्वच्छ करेगा कौन ?