Saturday, 22 April 2017

धरा दिवस है आज

                            कुण्डलियाँ

 धारण करती है धरा, नमन करो तुम आज
कृतज्ञता मन में धरो, समझे सकल समाज ।
समझे-सकल समाज, रो रही धरती - माता
धरा - दिवस में आज, पुत्र मन को तरसाता ।
हरियाली है - ढाल, धरा - बरबस - कहती है
समझो - मेरा - हाल, धरा - धारण करती है ।

पुन: बचाओ यह धरा, अनगिन - अत्याचार
जय - चन्दों की फौज है, बेबस हर - सरकार ।
बेबस हर सरकार, समझ फिर आया - गोरी
पृथ्वी - की फिर - हार, चाँद से कहे - चकोरी ।
कहाँ - गए कवि  राज, चन्द बरदायी आओ
धरा  दिवस पर आज, धरा को पुन: बचाओ ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ





Sunday, 9 April 2017

सार छंद

               महावीर

महावीर जो बन जाता है, सदा - सजग रहता है
धरा गगन सब अपनाता है, दया- मया धरता है ।

अपना प्राण सभी को प्यारा, जीव - जीव हैं भाई
सबकी रक्षा धर्म - हमारा, सबकी करो - भलाई ।

दुख में जैसे हम सब - रोते , सभी - जीव रोते हैं
सुख में जैसे हम - हँसते हैं, वह भी खुश होते हैं ।

कभी किसी को दुख ना देना, खुद भी दुख पाओगे
सभी जीव को अपना लेना, भव से तर जाओगे ।

भाव- भावना निर्मल रखकर, जीवन जीते जाओ
जीवों को परिवार मानकर, अपनापन अपनाओ।

देह - छोडना ही पडता है, मन को याद - दिलाना
कर्म- भोग सबको मिलता है, कहीं भूल ना जाना।

नर जीवन सुन्दर अवसर है, यह सार्थक हो जाए
समझाता मन का हरिहर है, बात समझ में आए ।

जीव - जन्तु से प्रेम करें हम, है दायित्व - हमारा
जीते हैं हम पशु - पक्षी सम, देख - सोच दो-बारा ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ