आल्हा छंद - 16/15 -$।
एक बार फिर तुम आ जाओ
एक बार फिर तुम आ जाओ, समझाओ माटी का मोल
हम - सोए हैं हमें - जगाओ, करो हमारा बिस्तर - गोल ।
राह - झलमला दिखलाता है, बन - जाता है - ज्ञानालोक
फिर भी मंजिल दूर भगाती, बिखर-बिखर जाता है श्लोक।
कैसे - हो साहित्य - साधना, कहाँ हो गयी - हमसे - भूल
हम - ज़मीन से दूर हो गए, भूल - गए हैं निर्मल - मूल ।
सरस्वती के वरद - पुत्र - तुम, दे - कर गए हमें वरदान
जानें माटी की महिमा हम, जाग - उठे यह हिन्दुस्तान ।
छ्त्तीसगढ की गोद - बुलाए, आओ फिर से पुन्ना- लाल
सोंधी- सोंधी खुशबू -आए, चमक - उठे भारत का भाल ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
एक बार फिर तुम आ जाओ
एक बार फिर तुम आ जाओ, समझाओ माटी का मोल
हम - सोए हैं हमें - जगाओ, करो हमारा बिस्तर - गोल ।
राह - झलमला दिखलाता है, बन - जाता है - ज्ञानालोक
फिर भी मंजिल दूर भगाती, बिखर-बिखर जाता है श्लोक।
कैसे - हो साहित्य - साधना, कहाँ हो गयी - हमसे - भूल
हम - ज़मीन से दूर हो गए, भूल - गए हैं निर्मल - मूल ।
सरस्वती के वरद - पुत्र - तुम, दे - कर गए हमें वरदान
जानें माटी की महिमा हम, जाग - उठे यह हिन्दुस्तान ।
छ्त्तीसगढ की गोद - बुलाए, आओ फिर से पुन्ना- लाल
सोंधी- सोंधी खुशबू -आए, चमक - उठे भारत का भाल ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ