Wednesday 13 August 2014

पुनः विश्व- गुरु बन जाएगा

घोर - अँधेरा  छँटा  देश  में  सूर्य - सदृश  कोई आया  है
बडी -  देर  के  बाद  सही  हमने  अपना  राजा  पाया  है ।

संन्यासी  सम  जीवन  उसका  देश - धर्म  है सबसे आगे
जन समूह को जिसने बॉधा नीति - नेम के कच्चे धागे ।

हर  घर  में  अब  जलेगा  चूल्हा  हर  गरीब का होगा घर
सब  मिल - जुल कर काम करें पर देश रहे सबसे ऊपर ।

अपना  देश  शक्तिशाली  हो  ऐसी  रीति - नीति बन जाए
दादा  देशों  को  तरसा  कर  भारत देस - राग अब गाए ।

अन्य  देश  में  जब  हम जायें अपने पैसे में दाम चुकायें
देश - प्रेम  की परिभाषा को भाव - कर्म में हम अपनायें ।

कर्म - योग  की  राह  चले  तो वह दिन जल्दी ही आएगा
जग कुटुम्ब सम कहने वाला पुनः विश्वगुरु बन जाएगा ।   

5 comments:

  1. बहुत सुंदर आशा भरी रचना..

    ReplyDelete
  2. आशा का संचार कर गया एक शख्स...लेकिन सपनों को पूरा करने के लिए जन सहभागिता आवश्यक है...

    ReplyDelete
  3. ऐसा ही हो, हमारी भी यही कामना।

    ReplyDelete