शिक्षक कुम्हार गीली मिट्टी को
देता है सुन्दर - तम आकार ।
क्षणिक भले वह दुख देता हो
पर करता हम पर उपकार ।
कष्ट उठा - कर दीक्षा देता
जीवन समुचित गढता है ।
दिन रात साधना वह करता
तभी शिष्य आगे बढता है ।
वह अपना कर्तव्य समझ कर
अपना दायित्व निभाता है ।
सम्यक रूप आकार प्राप्त कर
राष्ट्र तभी गौरव पाता है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो.09302830030
दिन रात साधना वह करता
ReplyDeleteतभी शिष्य आगे बढता है ।
वह अपना कर्तव्य समझ कर
अपना दायित्व निभाता है ।
शिक्षक समाज के लिए एक मशाल के समान है...शिक्षक दिवस पर शुभकामनायें !
शिक्षक गढ़ता है कच्ची मिटटी से शिष्य को !
ReplyDeleteसार्थक रचना !