छाया बचपन से लँगडी थी
घर - वाले बोझ समझते थे ।
लँगडी क्या स्कूल जाएगी
यह सोच के घर पर रखते थे ।
छाया का स्वर बहुत मधुर था
वह हर गाना गा लेती थी ।
प्रतिदिन वह गाना गा-गा कर
चिडियों को दाना- देती थी ।
उसी गॉव में गायक आया
राग - भैरवी उसने गाया ।
सब ने उसको खूब सराहा
पावन प्यार सभी का पाया ।
" मेरे साथ कौन गाएगा
दो - गाना गाने का मन है ।"
छाया उठी मंच पर पहुँची
" गाने का मेरा भी मन है ।"
दोनों ने जब सुर में गाया
मंत्र - मुग्ध था पूरा गॉव ।
जन-जन भाव विभोर हो गया
छाया को अब मिला है छॉव ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई
घर - वाले बोझ समझते थे ।
लँगडी क्या स्कूल जाएगी
यह सोच के घर पर रखते थे ।
छाया का स्वर बहुत मधुर था
वह हर गाना गा लेती थी ।
प्रतिदिन वह गाना गा-गा कर
चिडियों को दाना- देती थी ।
उसी गॉव में गायक आया
राग - भैरवी उसने गाया ।
सब ने उसको खूब सराहा
पावन प्यार सभी का पाया ।
" मेरे साथ कौन गाएगा
दो - गाना गाने का मन है ।"
छाया उठी मंच पर पहुँची
" गाने का मेरा भी मन है ।"
दोनों ने जब सुर में गाया
मंत्र - मुग्ध था पूरा गॉव ।
जन-जन भाव विभोर हो गया
छाया को अब मिला है छॉव ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई
waah !! हिम्मत होनी चाहिए राह मिल ही जायेगी !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर...शकुंतला जी, कोई भी यहाँ पूर्ण नहीं, कोई तन से लंगड़ा है कोई मन से...पर हरेक के लिए छाँव है यहाँ
ReplyDeleteव्यक्तित्व की खासियत को सही मंच चाहिये...और आत्मविश्वास...
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