Saturday, 13 December 2014

विकलॉग - विमर्श - हाइकू

        एक
सूरदास है
मन से देखने का
एहसास है ।

        दो
अँधी  - भैरवी
सुन्दर गाती है ।
राग - भैरवी ।

      तीन
कुसुम - कली
देख नहीं सकती
कुसुम - कली ।

     चार
अँधा है पर
तोडता है पत्थर
सडक - पर ।

    पॉच
रानी है नाम
लंगडी  है लेकिन
करती - काम ।

     छः
गूँगी है गंगा
बरतन धोती है
मन है चंगा ।

   सात
काना - कुमार
झूम झूम गाता है
मेघ - मल्हार ।

   आठ
बहरा - राम
दिन भर करता
बढई - काम ।

    नव
अँधी है माला
अँधों को पढाती है
माला है शाला ।

    दस
लँगडा - मान
किसानी करता है
नेक - इन्सान ।

  ग्यारह
बहरा राम
टोकनी बनाता है
कहॉ आराम ?

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ. ग. 


1 comment:

  1. तभी तो कहते हैं ये विशेष योग्य हैं...

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