Sunday, 28 September 2014

जन्म - दिवस के पावन - पर्व पर - शहीद भगत सिंह

हीद भगत सिंह नाम था उनका भारत में वे रहते थे

 

हीन - भाव से बचो बढो तुम प्रेरक बन कर कहते थे ।

 

फन भले ही हो जायें पर भारत - मॉ  होगी आज़ाद

 

रत सदृश हम वीर -पुत्र हैं आज़ादी का हो शँखनाद ।

 

त आगत की नहीं है चिंता वर्तमान हित कर्म करेंगे

 

ब  ही आज़ादी आएगी  बलिदानों  की  प्रथा  गढेंगे ।

 

सिंह शायर सपूत हैं हम तो मातृभूमि हित सदा लडेंगे

 

रीभरी हो देश की धरती जननी पर प्राणोत्सर्ग करेंगे ।

 

 

                                                                      

                                        

                                    

                                   

Thursday, 18 September 2014

बेटी

क्यों  घर  में  नौकरानी  सी  पल रही है बेटी
लडकी है लकडी जैसी क्यों जल रही है बेटी ?

संवेदना  कहॉ  है  यह क्या हुआ मनुज को
बेबस सी रात-दिन यूँ क्यों रो रही  है बेटी ?

भर-पेट रोटियॉ भी मिलती कहॉ है उसको
बाज़ार  में  खडी  है  रोटी  के  लिए  बेटी ।

हर  घर  में असुर  बैठा  है नोचने को आतुर
जाए  तो  कहॉ  जाए  यह  सोच  रही  बेटी ।

बेटी को दो सुरक्षा  बेटे  से  कम  नहीं  वह
मॉ-बाप का सहारा खुद  बन  रही  है  बेटी ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो. 09302830030

Friday, 12 September 2014

भाषा - बोध

उस दिन मुझे बहुत आश्चर्य हुआ
जब मैंने अपनी राष्ट्रभाषा को
दिन - दहाडे अपने घर पर देखा ।
उनके मुख - मण्डल पर गंभीरता तो थी
साथ ही उसमें उपालम्भ - मिश्रित वेदना भी थी ।

उन्होंने सहज भाव से मुझसे पूछा -
" हिन्दी - भाषा पढाती हो ?
बताओ, कितने छात्रों को तुमने भाषा का ज्ञान दिया है ?"
मैं मूर्छित सी हो गई ।
मेरे बारहवीं के छात्र -
" भूख लग रहा है
नींद आ रहा है
पानी गिर रहा है ।"
इस तरह की भाषा बोलते और लिखते हैं ।
जब मैं वीर - रस पढाती हूँ तो वे जँभाई भी लेते हैं
और करुण - रस पढते समय उनके चेहरे पर
डेढ - इंच मुस्कान भी होती है ।"

मैंने लज्जित हो कर कहा -
" मैं आपसे सच कहूँ -
और किसी भाषा का ज्ञान तो मुझे है ही  नहीं,
हिन्दी का भी तो समुचित - ज्ञान नहीं है
इसीलिए तो हम स्वयं, कवि को कवी, दृष्टि को दृष्टी
पिता को पीता और सिन्धु को सिन्धू कहते हैं ।
इसके अतिरिक्त
हम हिन्दी भाषा के सुदृढ, शक्तिशाली
और समृध्द होते हुए भी
अँग्रेज़ी और उर्दू की बैसाखी के बिना
एक पग चलने में भी, गर्व का अनुभव नहीं करते ।
दो सशक्त  पैरों के होते हुए भी
चौपाया बनने में ही गौरव का अनुभव करते हैं ।
हे माता ! अब तुम्हीं बताओ, ऐसी स्थिति में हम क्या करें ?"

उन्होंने मुझे प्रेरित करते हुए कहा-
" सर्वप्रथम तुम स्वयं भाषा को आत्मसात करो ।
फिर छात्रों को सही व सटीक उच्चारण सिखाओ ।
रसानुभूति से भाषा में रुचि बढेगी ।
पहले स्वयं रसामृत का पान करो
तत्पश्चात् छात्रों को रसास्वादन करवाओ ।
फिर देखो अपनी भाषा की गहराई और इसका विस्तार ।
गोधूलि एवम्  क्षितिज जैसे शब्दों के आशय को समझाने के लिए
जिज्ञासु को इनके दर्शन करवा दो ।

सम्बन्धित अधिकारियों एवम् साहित्यकारों तक
मेरे विचार पहुँचाओ और उनसे कहो कि-
हिन्दी भाषा के समस्त शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए
जिससे कि वे स्वयं अपने उच्चारण और लेखन की
त्रुटि को सुधार सकें ।
स्वर में स्पष्टता रखें एवम्
हिन्दी भाषा बोलते एवम् लिखते समय
किसी अन्य भाषा के प्रयोग से बचें ।

छात्रों को रसानुभूति करवाने की क्षमता स्वयं में विकसित करें,
अन्यथा आने वाले युग में भीषण भाषा - संकट उत्पन्न हो जाएगा ।"
कुछ रुक कर उन्होंने पुनः कहा -

"तुम एक काम और कर सकती हो
जनता जनार्दन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए
तुम दृश्य - श्रव्य चल - चित्र निर्मित कर सकती हो ।
जिस प्रकार बेटी - बचाओ , नारी - उत्थान , एड्स और
नेत्र - दान हेतु जन - जागरण की सीख दी जा रही है ,
ठीक वैसी ही सीख
भाषा - बोध हेतु भी दी जा सकती है ।
इसके अतिरिक्त -
तुम जन - जन को प्रेरित करो कि
वे भाषा की गरिमा एवम् महिमा को समझें ।

तुम यह काम करोगी न ? "
सम्मोहन और समर्पण भरा स्वर
मेरी वाणी से फूट पडा -
" हॉ - हॉ मैं अवश्य करूँगी ।"
और तभी मेरी ऑख खुल गई ।
 





Friday, 5 September 2014

शिक्षक - दिवस

शिक्षक कुम्हार गीली मिट्टी को
             देता  है सुन्दर - तम आकार ।
क्षणिक भले वह दुख देता हो
             पर  करता  हम  पर उपकार ।
ष्ट  उठा - कर दीक्षा  देता
              जीवन  समुचित  गढता  है ।
दिन रात साधना वह करता
               तभी शिष्य आगे बढता  है ।
ह अपना कर्तव्य समझ कर
                अपना दायित्व निभाता है ।
म्यक रूप आकार प्राप्त कर
                 राष्ट्र  तभी  गौरव  पाता है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो.09302830030