Sunday, 28 September 2014
Thursday, 18 September 2014
बेटी
क्यों घर में नौकरानी सी पल रही है बेटी
लडकी है लकडी जैसी क्यों जल रही है बेटी ?
संवेदना कहॉ है यह क्या हुआ मनुज को
बेबस सी रात-दिन यूँ क्यों रो रही है बेटी ?
भर-पेट रोटियॉ भी मिलती कहॉ है उसको
बाज़ार में खडी है रोटी के लिए बेटी ।
हर घर में असुर बैठा है नोचने को आतुर
जाए तो कहॉ जाए यह सोच रही बेटी ।
बेटी को दो सुरक्षा बेटे से कम नहीं वह
मॉ-बाप का सहारा खुद बन रही है बेटी ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो. 09302830030
लडकी है लकडी जैसी क्यों जल रही है बेटी ?
संवेदना कहॉ है यह क्या हुआ मनुज को
बेबस सी रात-दिन यूँ क्यों रो रही है बेटी ?
भर-पेट रोटियॉ भी मिलती कहॉ है उसको
बाज़ार में खडी है रोटी के लिए बेटी ।
हर घर में असुर बैठा है नोचने को आतुर
जाए तो कहॉ जाए यह सोच रही बेटी ।
बेटी को दो सुरक्षा बेटे से कम नहीं वह
मॉ-बाप का सहारा खुद बन रही है बेटी ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो. 09302830030
Friday, 12 September 2014
भाषा - बोध
उस दिन मुझे बहुत आश्चर्य हुआ
जब मैंने अपनी राष्ट्रभाषा को
दिन - दहाडे अपने घर पर देखा ।
उनके मुख - मण्डल पर गंभीरता तो थी
साथ ही उसमें उपालम्भ - मिश्रित वेदना भी थी ।
उन्होंने सहज भाव से मुझसे पूछा -
" हिन्दी - भाषा पढाती हो ?
बताओ, कितने छात्रों को तुमने भाषा का ज्ञान दिया है ?"
मैं मूर्छित सी हो गई ।
मेरे बारहवीं के छात्र -
" भूख लग रहा है
नींद आ रहा है
पानी गिर रहा है ।"
इस तरह की भाषा बोलते और लिखते हैं ।
जब मैं वीर - रस पढाती हूँ तो वे जँभाई भी लेते हैं
और करुण - रस पढते समय उनके चेहरे पर
डेढ - इंच मुस्कान भी होती है ।"
मैंने लज्जित हो कर कहा -
" मैं आपसे सच कहूँ -
और किसी भाषा का ज्ञान तो मुझे है ही नहीं,
हिन्दी का भी तो समुचित - ज्ञान नहीं है
इसीलिए तो हम स्वयं, कवि को कवी, दृष्टि को दृष्टी
पिता को पीता और सिन्धु को सिन्धू कहते हैं ।
इसके अतिरिक्त
हम हिन्दी भाषा के सुदृढ, शक्तिशाली
और समृध्द होते हुए भी
अँग्रेज़ी और उर्दू की बैसाखी के बिना
एक पग चलने में भी, गर्व का अनुभव नहीं करते ।
दो सशक्त पैरों के होते हुए भी
चौपाया बनने में ही गौरव का अनुभव करते हैं ।
हे माता ! अब तुम्हीं बताओ, ऐसी स्थिति में हम क्या करें ?"
उन्होंने मुझे प्रेरित करते हुए कहा-
" सर्वप्रथम तुम स्वयं भाषा को आत्मसात करो ।
फिर छात्रों को सही व सटीक उच्चारण सिखाओ ।
रसानुभूति से भाषा में रुचि बढेगी ।
पहले स्वयं रसामृत का पान करो
तत्पश्चात् छात्रों को रसास्वादन करवाओ ।
फिर देखो अपनी भाषा की गहराई और इसका विस्तार ।
गोधूलि एवम् क्षितिज जैसे शब्दों के आशय को समझाने के लिए
जिज्ञासु को इनके दर्शन करवा दो ।
सम्बन्धित अधिकारियों एवम् साहित्यकारों तक
मेरे विचार पहुँचाओ और उनसे कहो कि-
हिन्दी भाषा के समस्त शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए
जिससे कि वे स्वयं अपने उच्चारण और लेखन की
त्रुटि को सुधार सकें ।
स्वर में स्पष्टता रखें एवम्
हिन्दी भाषा बोलते एवम् लिखते समय
किसी अन्य भाषा के प्रयोग से बचें ।
छात्रों को रसानुभूति करवाने की क्षमता स्वयं में विकसित करें,
अन्यथा आने वाले युग में भीषण भाषा - संकट उत्पन्न हो जाएगा ।"
कुछ रुक कर उन्होंने पुनः कहा -
"तुम एक काम और कर सकती हो
जनता जनार्दन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए
तुम दृश्य - श्रव्य चल - चित्र निर्मित कर सकती हो ।
जिस प्रकार बेटी - बचाओ , नारी - उत्थान , एड्स और
नेत्र - दान हेतु जन - जागरण की सीख दी जा रही है ,
ठीक वैसी ही सीख
भाषा - बोध हेतु भी दी जा सकती है ।
इसके अतिरिक्त -
तुम जन - जन को प्रेरित करो कि
वे भाषा की गरिमा एवम् महिमा को समझें ।
तुम यह काम करोगी न ? "
सम्मोहन और समर्पण भरा स्वर
मेरी वाणी से फूट पडा -
" हॉ - हॉ मैं अवश्य करूँगी ।"
और तभी मेरी ऑख खुल गई ।
जब मैंने अपनी राष्ट्रभाषा को
दिन - दहाडे अपने घर पर देखा ।
उनके मुख - मण्डल पर गंभीरता तो थी
साथ ही उसमें उपालम्भ - मिश्रित वेदना भी थी ।
उन्होंने सहज भाव से मुझसे पूछा -
" हिन्दी - भाषा पढाती हो ?
बताओ, कितने छात्रों को तुमने भाषा का ज्ञान दिया है ?"
मैं मूर्छित सी हो गई ।
मेरे बारहवीं के छात्र -
" भूख लग रहा है
नींद आ रहा है
पानी गिर रहा है ।"
इस तरह की भाषा बोलते और लिखते हैं ।
जब मैं वीर - रस पढाती हूँ तो वे जँभाई भी लेते हैं
और करुण - रस पढते समय उनके चेहरे पर
डेढ - इंच मुस्कान भी होती है ।"
मैंने लज्जित हो कर कहा -
" मैं आपसे सच कहूँ -
और किसी भाषा का ज्ञान तो मुझे है ही नहीं,
हिन्दी का भी तो समुचित - ज्ञान नहीं है
इसीलिए तो हम स्वयं, कवि को कवी, दृष्टि को दृष्टी
पिता को पीता और सिन्धु को सिन्धू कहते हैं ।
इसके अतिरिक्त
हम हिन्दी भाषा के सुदृढ, शक्तिशाली
और समृध्द होते हुए भी
अँग्रेज़ी और उर्दू की बैसाखी के बिना
एक पग चलने में भी, गर्व का अनुभव नहीं करते ।
दो सशक्त पैरों के होते हुए भी
चौपाया बनने में ही गौरव का अनुभव करते हैं ।
हे माता ! अब तुम्हीं बताओ, ऐसी स्थिति में हम क्या करें ?"
उन्होंने मुझे प्रेरित करते हुए कहा-
" सर्वप्रथम तुम स्वयं भाषा को आत्मसात करो ।
फिर छात्रों को सही व सटीक उच्चारण सिखाओ ।
रसानुभूति से भाषा में रुचि बढेगी ।
पहले स्वयं रसामृत का पान करो
तत्पश्चात् छात्रों को रसास्वादन करवाओ ।
फिर देखो अपनी भाषा की गहराई और इसका विस्तार ।
गोधूलि एवम् क्षितिज जैसे शब्दों के आशय को समझाने के लिए
जिज्ञासु को इनके दर्शन करवा दो ।
सम्बन्धित अधिकारियों एवम् साहित्यकारों तक
मेरे विचार पहुँचाओ और उनसे कहो कि-
हिन्दी भाषा के समस्त शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए
जिससे कि वे स्वयं अपने उच्चारण और लेखन की
त्रुटि को सुधार सकें ।
स्वर में स्पष्टता रखें एवम्
हिन्दी भाषा बोलते एवम् लिखते समय
किसी अन्य भाषा के प्रयोग से बचें ।
छात्रों को रसानुभूति करवाने की क्षमता स्वयं में विकसित करें,
अन्यथा आने वाले युग में भीषण भाषा - संकट उत्पन्न हो जाएगा ।"
कुछ रुक कर उन्होंने पुनः कहा -
"तुम एक काम और कर सकती हो
जनता जनार्दन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए
तुम दृश्य - श्रव्य चल - चित्र निर्मित कर सकती हो ।
जिस प्रकार बेटी - बचाओ , नारी - उत्थान , एड्स और
नेत्र - दान हेतु जन - जागरण की सीख दी जा रही है ,
ठीक वैसी ही सीख
भाषा - बोध हेतु भी दी जा सकती है ।
इसके अतिरिक्त -
तुम जन - जन को प्रेरित करो कि
वे भाषा की गरिमा एवम् महिमा को समझें ।
तुम यह काम करोगी न ? "
सम्मोहन और समर्पण भरा स्वर
मेरी वाणी से फूट पडा -
" हॉ - हॉ मैं अवश्य करूँगी ।"
और तभी मेरी ऑख खुल गई ।
Friday, 5 September 2014
शिक्षक - दिवस
शिक्षक कुम्हार गीली मिट्टी को
देता है सुन्दर - तम आकार ।
क्षणिक भले वह दुख देता हो
पर करता हम पर उपकार ।
कष्ट उठा - कर दीक्षा देता
जीवन समुचित गढता है ।
दिन रात साधना वह करता
तभी शिष्य आगे बढता है ।
वह अपना कर्तव्य समझ कर
अपना दायित्व निभाता है ।
सम्यक रूप आकार प्राप्त कर
राष्ट्र तभी गौरव पाता है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो.09302830030
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