जिस नदिया की पूजा करते वह पूजा है अभी - अधूरी
अस्थि - विसर्जन करना छोडें तब ही होगी पूजा पूरी ।
नारी देवी है कहते हैं पर अब भी शोषण करते हैं
राक्षस बन जाता है प्राणी मुँह में राम बगल में छूरी ।
गङ्गा-जल पावन होता था हमने नाली उसे बनाया
आज भी कूडा- फेंक रहे हैं मुँह में राम बगल में छूरी ।
मातृभूमि का गौरव गाते पर गरिमा का भाव कहॉ है
गुटका खा- कर थूक रहे हैं मुँह में राम बगल में छूरी ।
देश स्वच्छ करना है हमको अब आई है मेरी बारी
यह जल्दी से नहीं हुआ तो होगी फिर यह हार हमारी ।
अस्थि - विसर्जन करना छोडें तब ही होगी पूजा पूरी ।
नारी देवी है कहते हैं पर अब भी शोषण करते हैं
राक्षस बन जाता है प्राणी मुँह में राम बगल में छूरी ।
गङ्गा-जल पावन होता था हमने नाली उसे बनाया
आज भी कूडा- फेंक रहे हैं मुँह में राम बगल में छूरी ।
मातृभूमि का गौरव गाते पर गरिमा का भाव कहॉ है
गुटका खा- कर थूक रहे हैं मुँह में राम बगल में छूरी ।
देश स्वच्छ करना है हमको अब आई है मेरी बारी
यह जल्दी से नहीं हुआ तो होगी फिर यह हार हमारी ।
सत्य वचन..
ReplyDeleteसंस्कृति और संस्कार को नई दिशा , नई सोच देनेवाली कविता है " नमामि गंगे "
ReplyDeleteसरला शर्मा
सरला , मेरे ब्लॉग में तुम्हारा स्वागत है , अभिनन्दन है ।
Delete