Friday, 19 December 2014

नमामि गङ्गे

जिस नदिया की पूजा करते वह पूजा है अभी - अधूरी
अस्थि - विसर्जन करना  छोडें तब ही होगी पूजा पूरी ।

नारी  देवी  है  कहते  हैं  पर अब  भी शोषण करते हैं
राक्षस बन जाता  है  प्राणी मुँह में राम बगल में छूरी ।

गङ्गा-जल पावन होता था हमने नाली उसे बनाया
आज भी कूडा- फेंक रहे  हैं  मुँह में राम बगल में छूरी ।

मातृभूमि का गौरव गाते पर गरिमा का भाव कहॉ है
गुटका खा- कर थूक रहे  हैं मुँह में राम बगल में छूरी ।

देश  स्वच्छ  करना  है  हमको अब आई  है मेरी बारी
यह जल्दी से नहीं हुआ तो होगी फिर यह हार हमारी ।  

3 comments:

  1. संस्कृति और संस्कार को नई दिशा , नई सोच देनेवाली कविता है " नमामि गंगे "
    सरला शर्मा

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    1. सरला , मेरे ब्लॉग में तुम्हारा स्वागत है , अभिनन्दन है ।

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