पर्यावरण बचाओ
मन - में जिजीविषा हो पर्यावरण - बचाओ
जल - वायु स्वच्छ रखो अपना गगन - बचाओ ।
सद्भाव से जियो - तुम यह है कवच - हमारा
वाणी - मधुर हो सब की पर्यावरण - बचाओ ।
नित यज्ञ करो घर में परि - आवरण का रक्षक
इस यज्ञ - होम से तुम ओज़ोन को बचाओ ।
सत - राह पर है चलना सब सीख लें तो बेहतर
गंदी - गली से अपने- अस्तित्व को बचाओ ।
तरु हैं हमारे रक्षक रोपो 'शकुन' तुम उनको
इस - वृक्ष के कवच से अपना वतन बचाओ ।
माटी की करो रक्षा
माटी की करो - रक्षा तुम पेड को लगा - कर
फल - फूल खूब - पाओ तुम बेल को उगा- कर ।
वट - नीम - बेल- पीपल अर्जुन को तुम लगाओ
केला - पपीता - दरमी खाओ इन्हें उगा - कर ।
कुँदरू - करेला - ककडी तुम क्यों नहीं उगाते
खुद - खाओ पुण्य पाओ औरों भी खिला - कर ।
गमलों में फूल - सब्जी अच्छे से तुम उगाओ
बाहर की सब्ज़ियों से निज को रखो बचा - कर ।
लहसून - प्याज़ - अदरक घर में उगा के देखो
थोडे से श्रम से देखो सुन्दर - नतीजा पा कर ।
अँगने में जगह है 'शकुन' मेथी वहॉ उगा लो
तुम भी तो लाभ पाओ अपने को कुछ सिखाकर ।
उद्योग न खा जाए धरती को
जन्म - भूमि की महिमा समझो माटी तो मॉ है भाई
चन्दन - जैसी खुशबू - इसकी माटी तो मॉ है भाई ।
जिस माटी में खेल - कूद - कर बडे हुए हैं हम बच्चे
कभी प्रदूषित - करे न कोई माटी तो मॉ है भाई ।
बडे - बडे हम वृक्ष - लगायें जिससे माटी बह न पाए
आम - अनार - नीम भी बोयें माटी तो मॉ है भाई ।
उद्योग न खा जाए खेती को इस पर भी देना है ध्यान
अन्न - हमें देती वसुन्धरा - माटी तो मॉ है भाई ।
नल -कूप निकट माटी हो तो आर्द्र रहेगा श्रोत 'शकुन'
जल - श्रोत बढाएगी माटी - माटी तो मॉ है भाई ।
जल ही तो जीवन है
जल को रखो बचा - कर भाई जल ही तो जीवन है
सम्भव नहीं है जल बिन जीवन जल ही तो जीवन है ।
फल - सब्ज़ी जिसमें धोए हो उस जल से सींचो - पौधे
जल का अपव्यय न हो पाए जल ही तो जीवन है ।
चॉवल - दाल धुले - जल से भी फल - फूलों को सींचो
पौष्टिक - भोजन है यह उनका जल ही तो जीवन है ।
पानी का ग्लास बडा न हो बेवज़ह - फेंकना पडता है
उपयोग करो उपभोग मत करो जल ही तो जीवन है ।
फव्वारे से करो - नहाना इससे - जल बचता है भाई
जल है इस धरती का अमृत जल ही तो जीवन है ।
'शकुन' बचाओ जलश्रोतों को वाटर हारवेस्टिंग कर लो
जीवन - जल पर ही निर्भर है जल ही तो जीवन है ।
पञ्चभूतों को बचायें
कवि सम्मेलन में हम कवि गण जागरण के गीत गायें
प्रकृति के सहचर - बनें सब पञ्च - भूतों को बचायें ।
जन - जागरण करना हमारा धर्म है पहला समझ लो
प्रतिदिन करें हम यज्ञ उससे पञ्च - भूतों को बचायें ।
वृक्ष भी सन्तान हैं यह बात जन - जन को बतायें
हर घर ढँका हो पेड से हम पञ्च - भूतों को बचायें ।
सोच लो शुभ - कर्म हो सत् - कर्म ही सौभाग्य है
सत् कर्म के सौजन्य से हम पञ्च - भूतों को बचायें ।
'शकुन' सुन ले धरती असहाय हो - कर रो रही
जागें स्वयं सबको जगा कर पञ्च- भूतों को बचायें ।