Thursday, 30 July 2015

प्रेमचंद - पुण्यतिथि के पावन पर्व पर

           मुंशी प्रेमचंद 

मुंशी प्रेमचंद कह हम तुम्हें पुकारते हैं 
          नमक का दरोगा हमें याद बहुत आता है ।

शील दया करुणा सभी गुणों के स्वामी तुम
           कर्मभूमि - पथ  का  पाथेय बन जाता है ।

प्रेम - पगे शब्द तेरे अजर - अमर हुए 
            होरी धनिया के साथ साथ हम चलते हैं ।

मन में मगन इतिहास रच गए हो तुम 
           पंच परमेश्वर की खाला को याद करते हैं ।

चंदा - चॉदनी में तुम आज भी चमकते हो 
            बूढी काकी आज हमें रास्ता दिखाती है ।

दस - दफा पढी ईदगाह की वही कहानी 
            हामिद के चिमटे की याद बहुत आती है । 



Wednesday, 22 July 2015

वसुधा है परिवार हमारा

कर्म - योग  की  महिमा - अद्भुत  कर्मानुरूप मिलता है फल
शुभ - कर्मों  का  फल  भी शुभ है आज नहीं तो निश्चय कल ।

परमात्मा  है  सब के  भीतर  हम - सब हैं उसकी - सन्तान
हमसे अलग  नहीं  है  वह  भी  सबके  मन  में  है  भगवान ।

सत्पथ - पर  हम  चलते जायें मञ्जिल हमें ज़रूर मिलेगी
भले ही रात अमावस की हो सुबह कमल की कली खिलेगी ।

सर्व - व्याप्त  है  वह  परमात्मा  वह  ही  है  प्राणों  का प्राण
मेरे - मुख  से  वह  कहता  है  सबके - मन  में  है भगवान ।

वसुधा  है  परिवार - हमारा आओ  निज कर्तव्य - निभायें
पर - हित  में  ही  हित  है  मेरा यही बात सबको समझायें ।

मानव जीवन अति दुर्लभ है यह प्रभु की सुन्दरतम रचना
तुम  सबको  सुख  देते  रहना  पर - पीडा  से  बचते रहना ।

प्रेम  में  बसता  है  परमात्मा  प्रेम  ही है उसकी - पहचान
सभी  परस्पर - प्रेम  करें  हम  सबके  मन  में है भगवान ।

कण - कण में है वास प्रभु का वह सब  कर्मों का  साक्षी है
प्रेम का पाठ - पढाता सबको घट - घट का वह ही वासी है ।

कर्म - प्रधान विश्व यह अद्भुत इसकी महिमा को हम जानें
सबके - सुख  की  बात  करें हम सबकी पीडा को पहचानें ।

दिव्य - गुणों  का  वह  स्वामी  है देता है सब को अनुदान
भाव  का  भूखा  वह  परमात्मा सबके मन में है भगवान ।

सहज  सरल व्यवहार हमारा परमात्मा को प्यारा लगता
वह भी उसको दण्डित करता जब अपनों को कोई ठगता ।

मन  में उज्ज्वल - भाव  सदा हो जीवन बन जाए वरदान
सत्पथ - पर  हम चलें निरन्तर सबके मन में है भगवान ।

अमर है आत्मा परमात्मा  भी काया है सबकी - नाशवान
इससे  स्वयं - सिद्ध  होता  है  सबके - मन में  है भगवान ।

Sunday, 12 July 2015

रथ द्वितीया के पावन - पर्व पर

                     जगन्नाथ  [ कहानी ]


" मॉ ! भूरी - काकी की जो बेटी है न ! राधा , वह रोज एक गिलास दूध - पीती है । मॉ ! दूध कैसा लगता है ? चार - बरस की पुनियॉ ने अपनी मॉ से पूछा । मॉ की ऑखों में ऑसू आ गए पर वह कुछ बोली नहीं । बच्ची का ध्यान भटकाने के लिए मॉ ने कहा - " पुनिया ! देख तो तेरे हाथ - पैर में कितनी धूल लग गई है , चल तो तुझे ठीक से नहला दूँ । मैं भी तो देखूँ - मेरी बिटिया , नहाने के बाद कितनी सुन्दर दिखती है ! " कमला, पुनिया को नहलाने लगी पर पुनियॉ का पूछा हुआ सवाल अब भी उसके देह में , तीर की तरह चुभ रहा था । पति की रोज - रोज की मार - पिटाई पर , बच्ची का सवाल भारी पड रहा था । वह लहुलुहान हुई जा रही थी । उसने सोचा - " मैं पॉच - बरस से यह तिरस्कार सह रही हूँ , यदि आज मैंने इसका प्रतिकार नहीं किया तो मेरी बेटी की जिंदगी भी , मेरी तरह बिखर जाएगी । उसका जीवन भी बर्बाद हो जाएगा । 

कमला ने पीछे - पलट कर देखा - " पॉच - बरस पहले , कटक के इसी घर में मैं ब्याह - कर आई थी । मॉ - बाबा ने कितने सुन्दर गहने और कपडे दिए थे । तरह - तरह के गहने और रेशमी - साडियों में लिपटी मैं कितनी सुन्दर दिखती थी । मॉ - बाबा ने दहेज में , दो बीघा ज़मीन भी दी थी पर पति ने शराब के नशे में सब कुछ गँवा  दिया । उसका बस चले तो वह हमें भी बेच दे । उसने अपने आप से कहा - देख कमला ! तुमने बहुत सहा , पत्नी का कर्तव्य - निभाया पर रक्षक ही यदि भक्षक बन जाए तो उसे त्याग देने में ही भलाई है , अन्यथा अनर्थ हो जाएगा ।" उसने भगवान जगन्नाथ से व्याकुल मन से विनती की -
 " हे जगन्नाथ ! तुम जगत के नाथ हो , हम तुम्हारे बच्चे हैं । तुम्हारे होते हुए दुनियॉ में कभी कोई बच्चा अनाथ न होने पाए , तुम सबकी रक्षा करना भगवान ।"

कमला ने अपने ऑसुओं को पोछा और सोचा - रोज़ - रोज़ भूखी रह - रह कर इधर मेरी तबियत भी बिगडने लगी है और फिर फूल सी मेरी बेटी का भूख से व्याकुल होकर रोना मैं नहीं सुन सकती । कमला ने पुनिया से कहा - " जा तो बेटा ! भूरी - काकी को बुला -कर ले आ । उससे कहना कि अम्मॉ बुला रही है ।" पुनिया दौडती हुई गई और पडोस की भूरी - काकी को साथ लेकर आ गई । कमला उससे लिपट - कर जोर - जोर से रोने लगी । थोडी देर में सहज हुई तब उसने धीरे से कहा - " मैं घर छोड - कर जा रही हूँ भूरी ! तुम कविता से बात कर लो , मैं उसके साथ काम करना चाहती हूँ । " भूरी ने कविता से बात की तो कविता खुश हो गई और उसने कहा -" कमला को आज ही लखनऊ भेज दो , मैं उसे स्टेशन पर लेने आ जाऊँगी ।" भूरी जल्दी - जल्दी टिकट कटाईऔर कमला के हाथ में दे दी । रास्ते में खाने के लिए पराठा और आम का अचार भी भूरी ने कमला के हाथ में दिया क्योंकि वह जानती थी कि पुनिया को पराठे के साथ आम का अचार बहुत पसन्द है । कमला ने अपनी साडी और पुनियॉ का फ्रॉक रखा और रोती हुई , अपना घर छोड - कर स्टेशन की ओर चली गई । 

पुनियॉ खिडकी के पास बैठ कर बाहर देख - देख कर खुश होती रही पर कमला की ऑखों के ऑसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे । वह अपने ऑसुओं को जितना छिपाने की कोशिश करती वह उतनी ही तेजी से बहे जा रहे थे । उसने पीछे झॉकने की कोशिश की तो मोहित का चेहरा दिखने लगा-  " वह क्या खाएगा ? कैसे जिएगा मेरे बिना ? वह व्याकुल हो गई । सोचने लगी कि घर वापस चली जाए । उसने सोचा  पुनिया से बात करके देखती हूँ - "पुनिया ! बाबा के पास वापस चलें क्या बेटा ? " पुनिया जोर - जोर से चिल्लाने लगी - नहीं ! कभी नहीं मॉ । मुझे बाबा अच्छे नहीं लगते । वे मुझे बिल्कुल प्यार नहीं करते । मेरी सभी सहेलियों के बाबा उनको नए - नए कपडे और खिलौने ला - ला कर देते हैं पर मेरे बाबा ने मुझे कभी एक चॉकलेट भी ला कर नहीं दिया । कभी मुझसे प्यार से बात भी नहीं किये । मैं उनके पास कभी नहीं जाऊँगी और मॉ तुमने भी तो मुझे कभी नए कपडे नहीं दिये , मैं तुमसे भी नाराज़ हूँ । " पुनिया रोने लगी । बडी मुश्किल से कमला ने उसे चुप कराया और कहा - " देखना !  अब मैं तेरे लिए क्या - क्या करती हूँ ? तुझे तेरी पसन्द के कपडे पहनाऊँगी और तेरी ही पसन्द का खाना बनाऊंगी ,समझी ! तू तो मेरी रानी बेटी है न ? 

लखनऊ स्टेशन आ गया । कमला; पुनिया को लेकर ट्रेन से उतर रही है । कविता उसे लेने आई है , साथ में पुनिया के लिए दो - दो सुन्दर फ्रॉक और सुन्दर खिलौना भी लाई है । आते ही सबसे पहले कविता ने पुनिया को गोद में ले लिया और फिर उसे बिस्किट और चॉकलेट दिया फिर उसे खिलौना और कपडे दिए । रास्ते - भर कविता , कमला से बातें करती रही दोनों में पहले से ही दोस्ती थी । पुनिया रास्ते भर अपने नए - नए कपडे और खिलौने के साथ खेलती रही । घर पहुँचते ही कविता ने कमला को एक - कमरे का घर दिखाया और कहा - " यह तुम्हारा कमरा है । तुम लोग नहा - धो कर नाश्ते के लिए ऊपर आ जाना । मैं वहीं तुम दोनों का इन्तज़ार कर रही हूँ । पुनिया बहुत खुश थी । नहा - कर उसने पहली - बार नई - फ्रॉक पहनी है । उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है । दोनों ने ऊपर जाकर नाश्ता किया । कमला के समान 110 महिलायें वहॉ काम करती हैं । कविता कामकाजी कर्मचारियों को टिफिन पहुँचाने का काम करती है । सबका काम बँटा हुआ है और सब मिल - जुल कर , परिवार की तरह रहती हैं । कविता ने पुनिया को बाल - मन्दिर में प्रवेश दिलवा दिया है । वहॉ उसे बहुत सी सहेलियॉ मिल गई हैं । वह बहुत खुश रहती है । बडे - मन से वह पढाई भी करती रहती है ।

हम सब दिन - भर काम करते - करते थक जाते हैं और रात में सो जाते है पर काल - चक्र कभी नहीं थकता , वह निरन्तर चलता रहता है । कमला के बाल - सफेद होने लगे हैं । आज - कल  वह कम्पनी की मैनेज़र है । पुनिया एम बी ए करके कविता की कम्पनी में काम करने लगी है । वह माकेटिंग का काम देखती है । पुनीत नाम का एक लडका भी , पुनिया के साथ ही काम करता है । ऐसा लगता है कि पुनीत और पुनिया एक - दूसरे को पसन्द करने लगे हैं । आज पुनिया का जन्म - दिन है । कविता ने उसके जन्म - दिन की शानदार तैयारी की है । जैसे ही पुनिया ने केक काटा , पुनीत ने उसे लाल - गुलाब भेंट किया और सबके सामने शर्माते हुए कहा है - " आई लभ यू पुन्नी ।" पुनिया का चेहरा शर्म से लाल हो गया और फिर सभी समझ गए कि दोनों एक - दूसरे को प्यार करते हैं ।

आज पुनीत के माता - पिता , पुनिया की मॉ से मिलने आए हैं । वे पुनिया के लिए कई तरह के गहने , बनारसी - साडियॉ और ढेर - सारी मिठाइयॉ लाए हैं । कविता , कमला और पुनीत के माता - पिता ने पण्डित जी से पूछ - कर , शादी की तारीख पक्की कर ली है । अक्षय - तृत्तीया को उनकी शादी है ।

आज पुनिया और पुनीत की शादी है । घर दुल्हन की तरह सजा हुआ है । दूल्हा - दुल्हन , सज - धज कर मण्डप की ओर जा रहे हैं । सखी - सहेलियॉ पुनिया से परिहास कर रही हैं साथ ही सखियों की नज़र पुनीत के जूतों पर भी है । कमला वहीं पर बैठी है और सोच रही है कि उसे अकेली ही कन्या - दान करना पडेगा । सबको क्या बताएगी ? यही सब सोच रही थी कि पण्डित जी ने कहा - " कन्या के माता - पिता , कन्या - दान के लिए मण्डप पर आ जायें ।" कमला उठ ही रही थी कि उसके पास सफेद - पाजामा - कुरता पहने , गले में अँग - वस्त्र लपेटे , एक सुदर्शन - पुरुष आकर खडा हो गया । उसने अपना हाथ कमला की ओर बढाया , कमला हिचकिचा रही थी पर उसने कमला का हाथ पकड - कर  उसे उठाया । कमला ने उसे ध्यान से देखा , वह मोहित था । हाथ जोड -कर माफी मॉग रहा था । पुनिया , माता - पिता को साथ देख - कर खुश हो रही थी । दोनों ने कन्या - दान किया । इस दृश्य को देख - कर सबकी ऑखें नम थी । भगवान जगन्नाथ ने कमला की प्रार्थना सुन ली थी ।   

 


Thursday, 2 July 2015

बांझ



       बांझ [ कहानी ]  

जैसे ही मॉ के शरीर में हलचल हुई , बच्ची ने अपनी मॉ से तुरन्त पूछा - " मॉ ! रात में तुझे बाबा डंडे से मार क्यों रहे थे ? " मॉ ने जवाब नहीं दिया पर ऑखों से ऑसू ढलकते रहे । कराहने की चीत्कार यह बता रही थी कि अभी वह खतरे से बाहर नहीं है । बच्ची सहम गई , वह फूट - फूट कर रोने लगी । मॉ के सिर से अभी भी खून बह रहा है । चार - बरस की बच्ची , रात - भर मॉ के सिरहाने पर बैठी रही और कब उसकी ऑख लग गई , वह नहीं जानती । जागने पर उसने देखा कि उसकी मॉ अब तक सो रही है । मॉ ने रानी से कहा - " जा भूरी - काकी को बुला - कर ले आ ।" थोडी देर में भूरी - काकी के साथ रानी आ गई । भूरी ने जब देखा कि सिर से खून बह रहा है , उसने तुरन्त नर्स - दीदी को बुलाया और सिर पर पट्टी बँधवा दी । भूरी ने भीतर जा कर देखा कि खाने को कुछ भी नहीं है तो अपने घर से थोडा सा चॉवल ले आई और खिचडी बना - कर सहोदरा और रानी को खिला दिया , और सहोदरा के पास जाकर बैठ गई । सहोदरा , भूरी को पकड - कर बहुत रोई और भूरी से बोली - " अब मैं यहॉ नहीं रह सकती भूरी । यह मुझे और मेरी बच्ची को मार डालेगा । "

  " कहॉ जाएगी तू ? " भूरी ने रोते - रोते पूछा ।
" कहीं भी चली जाऊँगी पर इसके साथ नहीं रहूँगी "
भूरी ने उससे पूछा - " उज्जैन जाएगी ? वहॉ मेरी बहन रहती है । तू तो उसे जानती है , वह पढने वाले बच्चों के लिए टिफिन बना - कर बेचती है । उसके साथ काम करेगी ? "
" हॉ मैं उसके साथ काम करूँगी " सहोदरा ने कहा ।
भूरी ने अपनी बहन अँजोरा से बात की तो अँजोरा ने कहा - " तुरन्त भेज दो ।"
      भूरी ने सहोदरा और रानी को ट्रेन में बिठा दिया । सुबह - सुबह सहोदरा अपनी बच्ची के साथ उज्जैन पहुँच गई । अँजोरा उसे स्टेशन पर लेने आई है । दोनों एक - दूसरे से परिचित हैं । कई बार भूरी के घर दोनों मिल चुकी हैं । अँजोरा निस्संतान है । उसका पति उसे ठडगी कह - कर बहुत अपमानित करता था और अचानक उसे छोड - कर किसी दूसरी के साथ कहीं चला गया ।

  घर पहुँचते ही अँजोरा ने सहोदरा को एक कमरा दे दिया और कहा - " तुम दोनों नहा - धोकर आओ फिर एक साथ नाश्ता करेंगे । " सहोदरा ने बरसों - बाद इतने इतमिनान से नहाया और रानी को भी प्यार से नहलाया । सहोदरा आज ऐसा अनुभव कर रही थी मानो उसका दूसरा जन्म हुआ हो । देह में दर्द अभी भी बहुत था पर फिर भी वह हल्का महसूस कर रही थी ।

नाश्ता करते - करते अँजोरा ने सहोदरा से कहा - " सहोदरा इसे अपना घर समझना । हम दोनों मिल - कर काम करेंगे और रानी - बिटिया को खूब पढायेंगे । " सहोदरा ने कुछ कहा नहीं पर दोनों की ऑखें भीगी हुई थी । सहोदरा और रानी वहॉ आराम से रहने लगे । अँजोरा और सहोदरा दिन भर टिफिन बनाने के काम में लगी रहती हैं । इन्हीं के समान दस - महिलायें भी वहॉ काम करती हैं । सबको एक - एक कमरा मिला है जहॉ वे अपने बच्चों के साथ रहती हैं । रानी आज - कल , ऑगन - बाडी में जाने लगी है । उसकी पढाई - लिखाई की पूरी जिम्मेदारी अँजोरा ने ले ली है ।

मनुष्य दिन - भर काम करता है और रात में थक - कर सो जाता है पर काल - चक्र नहीं थमता वह निरन्तर चलता रहता है । एक - एक दिन करते - करते कितने मौसम आए और चले गए ।
आज उज्जैन में " खीर - सोंहारी " नाम का एक रेस्टोरेंट है , जिसकी मालकिन अँजोरा है । आप वहॉ चाहे कुछ भी ऑर्डर करें , एक - कटोरी खीर , उपहार में मिलती है । सहोदरा जैसी 99 महिलायें वहॉ काम करती हैं । अभी सहोदरा वहॉ की मैनेज़र बन चुकी है । आज " खीर - सोंहारी " रेस्टोरेंट का स्थापना - दिवस है । यहॉ उत्सव का माहौल है । एक बहुत बडी खुश - खबरी भी है । सहोदरा की बेटी , रानी होटल - मैंनेज़मेंट में ग्रेजुएशन करने के बाद आज पहली - बार मॉ से मिलने आ रही है । सहोदरा आरती की थाल लेकर गेट पर , रानी की अगुवाई करने के लिए खडी है । रानी आ गई , वह मॉ से मिली फिर रानी की ऑखें किसी को खोजने लगीं , फिर धीरे से उसने अपनी मॉ से पूछा - " बडी मॉ कहॉ है ?" तभी अँजोरा सामने आई और उसने रानी को गले से लगा लिया और कहा - " बस अब इस रेस्टोरेंट को तू संभाल । तू मेरी रानी बेटी है न ! तू ही तो मेरी " सेन्चुरी "  है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग.]