Thursday, 2 July 2015

बांझ



       बांझ [ कहानी ]  

जैसे ही मॉ के शरीर में हलचल हुई , बच्ची ने अपनी मॉ से तुरन्त पूछा - " मॉ ! रात में तुझे बाबा डंडे से मार क्यों रहे थे ? " मॉ ने जवाब नहीं दिया पर ऑखों से ऑसू ढलकते रहे । कराहने की चीत्कार यह बता रही थी कि अभी वह खतरे से बाहर नहीं है । बच्ची सहम गई , वह फूट - फूट कर रोने लगी । मॉ के सिर से अभी भी खून बह रहा है । चार - बरस की बच्ची , रात - भर मॉ के सिरहाने पर बैठी रही और कब उसकी ऑख लग गई , वह नहीं जानती । जागने पर उसने देखा कि उसकी मॉ अब तक सो रही है । मॉ ने रानी से कहा - " जा भूरी - काकी को बुला - कर ले आ ।" थोडी देर में भूरी - काकी के साथ रानी आ गई । भूरी ने जब देखा कि सिर से खून बह रहा है , उसने तुरन्त नर्स - दीदी को बुलाया और सिर पर पट्टी बँधवा दी । भूरी ने भीतर जा कर देखा कि खाने को कुछ भी नहीं है तो अपने घर से थोडा सा चॉवल ले आई और खिचडी बना - कर सहोदरा और रानी को खिला दिया , और सहोदरा के पास जाकर बैठ गई । सहोदरा , भूरी को पकड - कर बहुत रोई और भूरी से बोली - " अब मैं यहॉ नहीं रह सकती भूरी । यह मुझे और मेरी बच्ची को मार डालेगा । "

  " कहॉ जाएगी तू ? " भूरी ने रोते - रोते पूछा ।
" कहीं भी चली जाऊँगी पर इसके साथ नहीं रहूँगी "
भूरी ने उससे पूछा - " उज्जैन जाएगी ? वहॉ मेरी बहन रहती है । तू तो उसे जानती है , वह पढने वाले बच्चों के लिए टिफिन बना - कर बेचती है । उसके साथ काम करेगी ? "
" हॉ मैं उसके साथ काम करूँगी " सहोदरा ने कहा ।
भूरी ने अपनी बहन अँजोरा से बात की तो अँजोरा ने कहा - " तुरन्त भेज दो ।"
      भूरी ने सहोदरा और रानी को ट्रेन में बिठा दिया । सुबह - सुबह सहोदरा अपनी बच्ची के साथ उज्जैन पहुँच गई । अँजोरा उसे स्टेशन पर लेने आई है । दोनों एक - दूसरे से परिचित हैं । कई बार भूरी के घर दोनों मिल चुकी हैं । अँजोरा निस्संतान है । उसका पति उसे ठडगी कह - कर बहुत अपमानित करता था और अचानक उसे छोड - कर किसी दूसरी के साथ कहीं चला गया ।

  घर पहुँचते ही अँजोरा ने सहोदरा को एक कमरा दे दिया और कहा - " तुम दोनों नहा - धोकर आओ फिर एक साथ नाश्ता करेंगे । " सहोदरा ने बरसों - बाद इतने इतमिनान से नहाया और रानी को भी प्यार से नहलाया । सहोदरा आज ऐसा अनुभव कर रही थी मानो उसका दूसरा जन्म हुआ हो । देह में दर्द अभी भी बहुत था पर फिर भी वह हल्का महसूस कर रही थी ।

नाश्ता करते - करते अँजोरा ने सहोदरा से कहा - " सहोदरा इसे अपना घर समझना । हम दोनों मिल - कर काम करेंगे और रानी - बिटिया को खूब पढायेंगे । " सहोदरा ने कुछ कहा नहीं पर दोनों की ऑखें भीगी हुई थी । सहोदरा और रानी वहॉ आराम से रहने लगे । अँजोरा और सहोदरा दिन भर टिफिन बनाने के काम में लगी रहती हैं । इन्हीं के समान दस - महिलायें भी वहॉ काम करती हैं । सबको एक - एक कमरा मिला है जहॉ वे अपने बच्चों के साथ रहती हैं । रानी आज - कल , ऑगन - बाडी में जाने लगी है । उसकी पढाई - लिखाई की पूरी जिम्मेदारी अँजोरा ने ले ली है ।

मनुष्य दिन - भर काम करता है और रात में थक - कर सो जाता है पर काल - चक्र नहीं थमता वह निरन्तर चलता रहता है । एक - एक दिन करते - करते कितने मौसम आए और चले गए ।
आज उज्जैन में " खीर - सोंहारी " नाम का एक रेस्टोरेंट है , जिसकी मालकिन अँजोरा है । आप वहॉ चाहे कुछ भी ऑर्डर करें , एक - कटोरी खीर , उपहार में मिलती है । सहोदरा जैसी 99 महिलायें वहॉ काम करती हैं । अभी सहोदरा वहॉ की मैनेज़र बन चुकी है । आज " खीर - सोंहारी " रेस्टोरेंट का स्थापना - दिवस है । यहॉ उत्सव का माहौल है । एक बहुत बडी खुश - खबरी भी है । सहोदरा की बेटी , रानी होटल - मैंनेज़मेंट में ग्रेजुएशन करने के बाद आज पहली - बार मॉ से मिलने आ रही है । सहोदरा आरती की थाल लेकर गेट पर , रानी की अगुवाई करने के लिए खडी है । रानी आ गई , वह मॉ से मिली फिर रानी की ऑखें किसी को खोजने लगीं , फिर धीरे से उसने अपनी मॉ से पूछा - " बडी मॉ कहॉ है ?" तभी अँजोरा सामने आई और उसने रानी को गले से लगा लिया और कहा - " बस अब इस रेस्टोरेंट को तू संभाल । तू मेरी रानी बेटी है न ! तू ही तो मेरी " सेन्चुरी "  है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग.]   
   

2 comments:

  1. बहुत प्रेरक कहानी...जब नारी अपनी शक्ति को पहचान लेती है तो वह हर परिस्थिति का सामना कर सकती है, जरूरत होती है कठिनाई के समय केवल एक मार्गदर्शक और सहारा देने वाले की...

    ReplyDelete
  2. सुंदर कहानी..

    ReplyDelete