Tuesday, 14 February 2017

आल्हा छंद

दिव्य - गुणों को ही अपनाओ, जीवन बन जाए वरदान
हे प्रभु बस इतना समझाओ, सार्थक हो जाए अभियान ।

यह मानव अद्भुत प्राणी है, यह कर सकता है सब काम
करुणा दया मधुर - बानी है, जग में कर सकता है नाम ।

कुछ भी होता नहीं असंभव, दिव्य - गुणों का है भण्डार
बन सकता है तत्सम - तद्भव, अद्भुत है इसका - संसार ।

आँख - देखती है सब कुछ - पर, नहीं देख पाती है - नैन
बस ऐसा ही है अपना - घर, सब कुछ है पर नहीं है चैन ।

दृष्टि - सृष्टि को समझाती हो, दे - दो ऐसा अनुपम ज्ञान
तथ्य समझ कर अपनाती हो, ऐसी वाणी बोल - बखान।

बहुत हो गया आना - जाना, अब तो हो जाए सम्भाव्य
मानव खुद है बडा - खज़ाना, आ - जाए मन में वैराग्य ।

कर्म - धर्म को समझें - जानें, ऐसा हो अद्भुत - आधार
जो सम्यक् है उसको - मानें, आदर्शों - की हो - पतवार ।

रोते - रोते हम आए - हैं, अब - जायेंगे - ले कर - हास
दास - कबीरा से पाए हैं, यह अद्भुत - अनुपम - विश्वास ।
 

6 comments:

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    1. सुशील जी ! मेरे ब्लाग में आपका स्वागत है ।

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  2. मानव के प्रति सुन्दर आस्था , सच कहा है मानव क्या नहीं कर सकता है बस वो अपने कर्म-धर्म को समझे तो अपने कल्याण के साथ-साथ सब का कल्याण हो। सूंदर प्रस्तुति शकुंतला जी।
    मेरी पोस्ट का लिंक :
    http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/02/blog-post_14.html

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    1. आपका ब्लाग नहीं खुल रहा है, राकेश!

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  3. बहुत सुंदर भावभरे शब्द..

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