सार छंद
देख रही है लीला फिर भी, मानव - मन भरमाए
घाटी में बिखरी केशर भी, दिल के घाव दिखाए ।
काश्मीरज की सूखी - क्यारी, भारत - माँ रोती है
सुत - नालायक - हैं बेचारी, देख - दुखी होती है ।
मासूमों को ढाल - बना - कर, देश - द्रोह करते हैं
अपना मुखडा बचा छिपा कर, अपराधी पलते हैं ।
लूट - रहे हैं अपने - घर को, खुद ही बने - लुटेरे
चौकीदार क्या - कहे उसको, मन भर वही घुटे रे ।
रोती - है केशर की क्यारी, उसको कौन - बचाये
बेटे का बल पाय - पडोसी, आँचल को सरकाये ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो.- 93028 30030
देख रही है लीला फिर भी, मानव - मन भरमाए
घाटी में बिखरी केशर भी, दिल के घाव दिखाए ।
काश्मीरज की सूखी - क्यारी, भारत - माँ रोती है
सुत - नालायक - हैं बेचारी, देख - दुखी होती है ।
मासूमों को ढाल - बना - कर, देश - द्रोह करते हैं
अपना मुखडा बचा छिपा कर, अपराधी पलते हैं ।
लूट - रहे हैं अपने - घर को, खुद ही बने - लुटेरे
चौकीदार क्या - कहे उसको, मन भर वही घुटे रे ।
रोती - है केशर की क्यारी, उसको कौन - बचाये
बेटे का बल पाय - पडोसी, आँचल को सरकाये ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो.- 93028 30030