विधि निषेध कहती
जग गुरु की धरती पर देखो, महापुरुष कितने
देव-गिरा की गरिमा परखो, अपराधी इतने ।
पञ्चतंत्र है कहाँ विष्णु है, विष्णु छंद कहता
नीति नेम जो सिखलाती है, वह पुनीत समता ।
पहली गुरु तो माता ही है, विधि निषेध कहती
समय समय पर ढाल बनी है, वह बचाव करती ।
उसने कई सूत्र बतलाए, जग जीवन चहका
कई सीख मन में बैठाए, मन उपवन महका ।
कई सूक्ति ने पथ दिखलाया, तमस दूर कर के
गुरु-जन ने कुछ पाठ पढाया, आँसू भर भर के ।
गुरु - लाघव गुरु ही समझाते, फर्ज अदा करते
बार - बार हमको रटवाते, हम मन में - धरते ।
बचपन की वह मीठी - यादें, मन में हैं रहती
अपनी वह भोली - फरियादे, जेहन में बसती ।
गुरु - के दिव्य - गुणों को गाये, संचित है गठरी
हम भी निज दायित्व निभाये, वही अनल जठरी ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो- 93028 30030
इसकी रिदम का कोई गीत बताईए ताकि मै भी लिख सकू
ReplyDeleteसुन्दर सृजन आदरणीया
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