Thursday, 16 March 2017

विष्णुपद छंद

      विधि निषेध कहती

जग गुरु की धरती पर देखो, महापुरुष कितने 
देव-गिरा की गरिमा परखो, अपराधी इतने ।

पञ्चतंत्र है कहाँ विष्णु है, विष्णु छंद कहता 
नीति नेम जो सिखलाती है, वह पुनीत समता ।

पहली गुरु तो माता ही है, विधि निषेध कहती 
समय समय पर ढाल बनी है, वह बचाव करती ।

उसने कई सूत्र बतलाए, जग जीवन चहका 
कई सीख मन में बैठाए, मन उपवन महका ।

कई सूक्ति ने पथ दिखलाया, तमस दूर कर के 
गुरु-जन ने कुछ पाठ पढाया, आँसू भर भर के ।

गुरु - लाघव गुरु ही समझाते, फर्ज अदा करते 
बार - बार हमको रटवाते, हम मन में - धरते ।

बचपन की वह मीठी - यादें, मन में हैं रहती 
अपनी वह भोली - फरियादे, जेहन में बसती ।

गुरु - के दिव्य - गुणों को गाये, संचित है गठरी  
हम भी निज दायित्व निभाये, वही अनल जठरी ।


शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो- 93028 30030

2 comments:

  1. इसकी रिदम का कोई गीत बताईए ताकि मै भी लिख सकू

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  2. सुन्दर सृजन आदरणीया

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