Thursday, 30 March 2017

काश्मीरज की सूखी क्यारी

     सार छंद

देख रही है लीला फिर भी, मानव - मन भरमाए
घाटी में बिखरी केशर भी, दिल के घाव दिखाए ।

काश्मीरज की सूखी - क्यारी, भारत - माँ रोती है
सुत - नालायक - हैं  बेचारी, देख - दुखी होती है ।

मासूमों को ढाल - बना - कर, देश - द्रोह करते हैं
अपना मुखडा बचा छिपा कर, अपराधी पलते हैं ।

लूट - रहे  हैं अपने - घर को, खुद ही  बने - लुटेरे
चौकीदार क्या - कहे उसको, मन भर वही घुटे रे ।

रोती - है  केशर की क्यारी, उसको कौन - बचाये
बेटे का बल पाय - पडोसी, आँचल को सरकाये ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो.- 93028 30030

2 comments:

  1. काश्मीर की जनता को ही फैसला करना होगा,अमन की बात करनी होगी..

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