'हलो ... हलो ... हलो ... हलो ...' हमारे पड़ोसी जैन साहब ज़ोर - ज़ोर से चिल्ला रहे थे | पूरा
मुहल्ला सुन रहा था | आखिर में खिसिया - खिसिया कर , तार - सप्तक में कह रहे थे ' हलो
हल्लो ... हल्लो ... हल्लो ... ' और फिर मोबाइल को , ज़ोर से जमीन पर पटक कर बोले -
'चैन हराम कर रखा है इसने | जब देखो तब ट्रिंग - ट्रिंग बजने लगता है | समय का ध्यान
ही नहीं है | इंसान क्या नहाएगा - खाएगा नहीं ? मौका देख - देख कर बजता है | मोबाइल
नाम रखा है अपना , पर मोबाइल दूसरों को बना कर रखा है | '
मैं अपने घर के बालकनी पर खड़ी थी , उनकी बातें सुन रही थी और मुझे हँसी भी बहुत आ
रही थी | मेरे मोबाइल को मेरा हँसना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा | वह बजने लगा , मानो कह
रहा हो - 'इधर आ , मैं तुझे बताता हूँ | ' मैंने डरते - डरते मोबाइल उठाया | मेरे मोबाइल ने
मुझे निर्देश दिया - ' दुनियाँ भर को पढ़ाती फ़िरती है | क्या जानती है तू ? चल मोबाइल में
प्रवचन सुन | ' उसने कुछ नंबर बताया , जिसे मैं तुरंत भूल गई | मैं अपने मोबाइल को लैंड-
लाइन की तरह यूज करती हूँ , कुछ नहीं जानती | आपको सच बताऊँ ? मैं मोबाइल से
डरती हूँ | मोबाइल बॉस जैसा लगता है | पता नहीं किस समय बज जाए और क्या निर्देश
मिल जाए | मोबाइल की महिमा अपरम्पार है | ये जो न करे कम है | मेरा मोबाइल फ़िर
बज रहा है -' हाँ , हैलो ! सुनिए बहन जी ! आपके यहाँ लाइट है क्या ? '
'हाँ जी , है | '
'और पानी ?'
'हाँ जी ! पानी भी है | '
'हाय कितना अच्छा है न ! हमारे शिमले में तो पानी जम गया है , आप कहाँ पर रहती हैं ?'
'जी ! मैं पद्मनाभपुर , दुर्ग में रहती हूँ | '
'बहन जी ! ये कौन सा स्टेट है जी ?'
'जी ये छत्तीसगढ़ है | '
'अच्छा - अच्छा वही छत्तीसगढ़ जहाँ आदिवासी रहते हैं ?'
'जी हाँ आपने ठीक पहचाना , वही छत्तीसगढ़ है | '
'क्या आप भी आदिवासी हो ?'
'जी नहीं ! मेरे ऐसे भाग्य कहाँ ?'
'बहन जी ! आप तो मज़ाक करते हो | '
मेरा मोबाइल गर्म हो चुका था और मेरा कान जल रहा था | लगता है कान और माथा का
कोई भीतरी सम्बन्ध है क्योंकि मेरा माथा भी गरम हो गया था | मोबाइल थककर लस्त
पड़ गया था , भूखा था , चुप हो गया | मैंने उसे भोजन करने के लिए छोड़ दिया , चार्जिंग
में डाल दिया | जैसे ही पेट में कुछ गया , वह छाती पर मूँग द्लने के लिए फिर तैयार हो
गया | मोबाइल बजने लगा | मैं दौड़कर , उसकी सेवा में पहुँची | ईश्वर का लाख - लाख
शुक्र कि इस बार फ़ोन मेरी फ्रेंड सरला शर्मा का था | सरला ने कहा - 'का करत हस रे
शकुन ! सुन न ! मुनगा - बरी के साग रांधे हौं अऊ चीला बनाय हौं , झट के आ , दुनों
झन खाबो | '
बात करके अभी मोबाइल रखने ही वाली थी कि वह फ़िर बजने लगा | मैंने उठाया -
'हैलो ।' दूसरी ओर से मुझे किसी ने चमकाया - 'क्या समझते हो अपने आपको ? सुनील
से बात कराओ | रांग नंबर बोलकर फ़ोन काटना नहीं , समझे न !' मैं काटो तो खून नहीं
अब कहाँ से सुनील लाऊँ ? मैं रुआँसी होकर बोली - 'देखो भैया! यह सुनील का मोबाइल
नहीं है , यहाँ कोई सुनील नहीं रहता | '
पता नहीं क्या बोलेगा , इस डर से मैंने मोबाइल को टेबल पर रख दिया | अब मैंने
निश्चय कर लिया कि मैं अपने पास मोबाइल नहीं रखूँगी | मैं परेशान हो चुकी थी |
मोबाइल फ़िर बजने लगा | मैं आपे से बाहर हो चुकी थी | मैं मोबाइल उठाई और मैंने
चिल्ला - चिल्ला कर कहा - 'देखिए भाई साहब ! आप जो भी हों , मैं आपसे कोई बात
नहीं करना चाहती और यदि फ़िर आपने मुझसे बात करने की कोशिश की तो मैं पुलिस
में कम्प्लेन कर दूँगी , समझे आप ? '
'क्या हो गया बेटा ! किस पर बिफर रही हो ?' मैं चौंकी , यह तो मेरे चाचा जी की आवाज
है | ' चाचा जी कह रहे थे - 'हमने सोचा कि शकुन को सरप्राइज दिया जाए | देख बेटा! तू
नीचे तो देख | ' मैंने बालकनी से देखा , चाचा - चाची मुस्कुराते हुए गाड़ी से नीचे उतर
रहे थे और मैं शर्म से पानी - पानी हो रही थी |
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
मुहल्ला सुन रहा था | आखिर में खिसिया - खिसिया कर , तार - सप्तक में कह रहे थे ' हलो
हल्लो ... हल्लो ... हल्लो ... ' और फिर मोबाइल को , ज़ोर से जमीन पर पटक कर बोले -
'चैन हराम कर रखा है इसने | जब देखो तब ट्रिंग - ट्रिंग बजने लगता है | समय का ध्यान
ही नहीं है | इंसान क्या नहाएगा - खाएगा नहीं ? मौका देख - देख कर बजता है | मोबाइल
नाम रखा है अपना , पर मोबाइल दूसरों को बना कर रखा है | '
मैं अपने घर के बालकनी पर खड़ी थी , उनकी बातें सुन रही थी और मुझे हँसी भी बहुत आ
रही थी | मेरे मोबाइल को मेरा हँसना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा | वह बजने लगा , मानो कह
रहा हो - 'इधर आ , मैं तुझे बताता हूँ | ' मैंने डरते - डरते मोबाइल उठाया | मेरे मोबाइल ने
मुझे निर्देश दिया - ' दुनियाँ भर को पढ़ाती फ़िरती है | क्या जानती है तू ? चल मोबाइल में
प्रवचन सुन | ' उसने कुछ नंबर बताया , जिसे मैं तुरंत भूल गई | मैं अपने मोबाइल को लैंड-
लाइन की तरह यूज करती हूँ , कुछ नहीं जानती | आपको सच बताऊँ ? मैं मोबाइल से
डरती हूँ | मोबाइल बॉस जैसा लगता है | पता नहीं किस समय बज जाए और क्या निर्देश
मिल जाए | मोबाइल की महिमा अपरम्पार है | ये जो न करे कम है | मेरा मोबाइल फ़िर
बज रहा है -' हाँ , हैलो ! सुनिए बहन जी ! आपके यहाँ लाइट है क्या ? '
'हाँ जी , है | '
'और पानी ?'
'हाँ जी ! पानी भी है | '
'हाय कितना अच्छा है न ! हमारे शिमले में तो पानी जम गया है , आप कहाँ पर रहती हैं ?'
'जी ! मैं पद्मनाभपुर , दुर्ग में रहती हूँ | '
'बहन जी ! ये कौन सा स्टेट है जी ?'
'जी ये छत्तीसगढ़ है | '
'अच्छा - अच्छा वही छत्तीसगढ़ जहाँ आदिवासी रहते हैं ?'
'जी हाँ आपने ठीक पहचाना , वही छत्तीसगढ़ है | '
'क्या आप भी आदिवासी हो ?'
'जी नहीं ! मेरे ऐसे भाग्य कहाँ ?'
'बहन जी ! आप तो मज़ाक करते हो | '
मेरा मोबाइल गर्म हो चुका था और मेरा कान जल रहा था | लगता है कान और माथा का
कोई भीतरी सम्बन्ध है क्योंकि मेरा माथा भी गरम हो गया था | मोबाइल थककर लस्त
पड़ गया था , भूखा था , चुप हो गया | मैंने उसे भोजन करने के लिए छोड़ दिया , चार्जिंग
में डाल दिया | जैसे ही पेट में कुछ गया , वह छाती पर मूँग द्लने के लिए फिर तैयार हो
गया | मोबाइल बजने लगा | मैं दौड़कर , उसकी सेवा में पहुँची | ईश्वर का लाख - लाख
शुक्र कि इस बार फ़ोन मेरी फ्रेंड सरला शर्मा का था | सरला ने कहा - 'का करत हस रे
शकुन ! सुन न ! मुनगा - बरी के साग रांधे हौं अऊ चीला बनाय हौं , झट के आ , दुनों
झन खाबो | '
बात करके अभी मोबाइल रखने ही वाली थी कि वह फ़िर बजने लगा | मैंने उठाया -
'हैलो ।' दूसरी ओर से मुझे किसी ने चमकाया - 'क्या समझते हो अपने आपको ? सुनील
से बात कराओ | रांग नंबर बोलकर फ़ोन काटना नहीं , समझे न !' मैं काटो तो खून नहीं
अब कहाँ से सुनील लाऊँ ? मैं रुआँसी होकर बोली - 'देखो भैया! यह सुनील का मोबाइल
नहीं है , यहाँ कोई सुनील नहीं रहता | '
पता नहीं क्या बोलेगा , इस डर से मैंने मोबाइल को टेबल पर रख दिया | अब मैंने
निश्चय कर लिया कि मैं अपने पास मोबाइल नहीं रखूँगी | मैं परेशान हो चुकी थी |
मोबाइल फ़िर बजने लगा | मैं आपे से बाहर हो चुकी थी | मैं मोबाइल उठाई और मैंने
चिल्ला - चिल्ला कर कहा - 'देखिए भाई साहब ! आप जो भी हों , मैं आपसे कोई बात
नहीं करना चाहती और यदि फ़िर आपने मुझसे बात करने की कोशिश की तो मैं पुलिस
में कम्प्लेन कर दूँगी , समझे आप ? '
'क्या हो गया बेटा ! किस पर बिफर रही हो ?' मैं चौंकी , यह तो मेरे चाचा जी की आवाज
है | ' चाचा जी कह रहे थे - 'हमने सोचा कि शकुन को सरप्राइज दिया जाए | देख बेटा! तू
नीचे तो देख | ' मैंने बालकनी से देखा , चाचा - चाची मुस्कुराते हुए गाड़ी से नीचे उतर
रहे थे और मैं शर्म से पानी - पानी हो रही थी |
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
सच में मोबाइल सुविधा के साथ साथ मुसीबत भी बन गया है..बहुत रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteअब स्थिति यह हो गई है कि मोबाइल रखना हर कोई चाहता है लेकिन उसका बजना गवारा नहीं है.
ReplyDeleteबहुदुरुपयोगित यंत्रों में शायद अव्वल.
ReplyDeleteमोबाईल महिमा अपरम्पार
ReplyDeleteहा हा, सच में यही हालत होती है, बुरी तरह से हिला कर रख दिया है, हम सबको इस मोबाइल ने।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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