Monday, 14 July 2014

मलेशिया में भरथरी


बारहवॉ अन्तर्राष्ट्रीय ए.आई. पी. सी. सम्मेलन , 2014 , इस बार ,मलेशिया , क्वाला लम्पुर में आयोजित था । छत्तीसगढ से हम चार बहनें , संतोष ,सावित्री , नागेश्वर और शकुन्तला शर्मा , 27 जून को शाम 5 बजे , सुभाषचन्द्र बोस ,अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँच गईं । हमसे पहले भी बहुत सी बहनें वहॉ पहुँच चुकी थीं । थोडी ही देर में , लारी भैया और मनु जी भी वहॉ आ गए । भैया ने हम सबको हमारा पासपोर्ट और टिकट दिया और एक ब्लैक कलर का सुन्दर सा बैग भी दिया । अब हम बोर्डिग - पास के लिए , लाइन में लग गए । इस औपचारिकता के दौरान भी हम मस्ती करते रहे और फिर एयर - एशिया के विमान ए.के. 62 में बैठ गए । थोडी देर में मुझे इतनी ठँड लगी कि मैं एयर - होस्टेस से कम्बल मॉगने लगी पर उसने कहा कि उसके पास ओढने के लिए कुछ भी नहीं है । मैंने अपनी सीट की ए. सी. बन्द कर ली , साइड में बैठी दोनों सहेलियों ने भी , ए. सी. बन्द कर ली क्योंकि ठँड तो सभी को लग रही थी । रात में ठीक बारह बजे होस्टेस ने वेज़- बिरयानी लाकर , परोस दिया , जिसे मैंने छुआ भी नहीं । साढे चार घन्टे का समय था पर उबाऊ था लेकिन मैं विंडो के पास बैठी थी , मैं आकाश को निहारती रही और एक ऐसा समय आया जब मैंने सूर्योदय को देखा । मेरा मन प्रसन्न हो गया ।

28 / 06 / 14
अभी - अभी सुबह - सुबह  8.50 पर हम क्वाला लम्पुर पहुँचे हैं । ए. आई. पी. सी. की ओर से हमें , रिसीव करने के लिए वाल्वो की तरह एक बडी गाडी आई है । वे लोग फूलों के हार से हमारा स्वागत कर रहे हैं । स्वागत के पश्चात हम गाडी में बैठकर " पुत्रजय " कैम्पस के रेस्टोरेण्ट में ब्रेक- फास्ट के लिए पहुँचे हैं । जलपान के बाद हम ऐतिहासिक - भूमि ,"मलक्का " जायेंगे । हमारे साथ ' सगया ' नाम का गाइड है जो हमें लगातार , मलेशिया के बारे में बता रहा है । " पुत्रजय " बहुत ही भव्य - भवन है , यहॉ बैठकर जलपान करना बहुत अच्छा लग रहा है । अब हम मलक्का की ओर जा रहे हैं । रास्ते इतने साफ - सुथरे और खूबसूरत हैं कि वहॉ से नज़र नहीं हट रही है । अचानक सगया ने हमसे कहा - " सलामादातान = सलाम देता हूँ ।" हम लोगों ने भी जवाब दिया - " वालेक़म सलाम ।" सगया ने हमें बताया कि मलेशिया , " मलय " शब्द से बना है । यद्यपि मलेशिया , मुस्लिम बहुल देश है पर यह भारत की तरह सेक्युलर है । यहॉ का मुख्य व्यवसाय " पाम - ऑयल " है जिसका 3/4 भाग  भारत में निर्यात होता है । सिंगापुर , मलेशिया से 1965 में अलग हुआ । अब हम " मलक्का " पहुँच चुके हैं । मलक्का 1511 में बना । यहॉ का "सेन्ट जेवियर्स चर्च " दर्शनीय है । यहॉ का समुद्र - तट , सिंगापुर तक फैला हुआ है । मलक्का के भवन कुछ अनूठी शैली के दिखाई दे रहे हैं । यहॉ हमने गाडी से उतर कर शॉपिंग भी की । आज हम यहीं " मलक्का " में रुक रहे हैं , होटल का नाम है - " सेन्ट्रल होटल , मलक्का ।"

29 / 06 / 14
आज हम " मलक्का " से क्वाला लम्पुर जा रहे हैं । सगया ने हमें बताया कि यहॉ के राजा , भारतीय सँस्कृति से बहुत प्रभावित थे । उनकी दिनचर्या , भारतीयों की दिनचर्या जैसी ही थी - विवाह की रस्म शुरू होने से लेकर , शादी की साल- गिरह मनाते तक हू-ब-हू भारतीय । हम पुनः " पुत्रजय " पहुँच चुके हैं । हमें अपना लँच यहीं करना है । " पुत्रजय " एक इलेक्ट्रॉनिक कॉलोनी है जो पॉच किलोमीटर में फैला हुआ है । यहॉ की इमारतें भव्य हैं और पेड - पौधे भी बहुत घने एवम् सुन्दर हैं । हमें मुस्कुरा - मुस्कुरा कर अपने पास बुलाते हैं । सब कुछ बहुत सुन्दर है - " सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर । मानव तुम सबसे सुन्दरतम ॥" पन्त

30 / 06 / 14
आज भारतीय दूतावास के सँस्कृति निदेशक श्री वाय. लक्ष्मा राव के मुख्य आतिथ्य में , ए. आई. पी. सी. का सॉस्कृतिक कार्यक्रम होने जा रहा है । सभी बहनें अपने - अपने प्रदेशों के पारम्परिक - परिधान में सुसज्जित दिखाई दे रही हैं । हम चारों छत्तीसगढी बहनें भी अपने पारम्परिक - परिधान में सजी हुई हैं । ब्रेकफास्ट के लिए जब मैं जा रही थी तो भैया मुझे लिफ्ट में मिल गए और उन्होंने मुझसे कहा - " शकुन्तला दीदी ! आप इस ड्रेस में बहुत अच्छी लग रही हैं । " इसी कार्यक्रम में मैने स्वरचित छत्तीसगढी " भरथरी " की प्रस्तुति दी जिसकी सभी ने सराहना की । मैं भूमिका में भरथरी के मूल -भाव को बता चुकी थी , इसलिए सभी को यह लोक -गीत बहुत पसन्द आया । एक और खुशी की बात यह हुई कि हमारी छत्तीसगढ की चन्द्रावती नागेश्वर को " मिस मलेशिया" का खिताब मिला । आज का दिन हमारे लिए जश्न की तरह था हमने बहुत एन्जॉय किया ।

लँच के बाद हम कुमार कार्त्तिकेय का दर्शन करने जा रहे हैं । मलेशिया में इन्हें " मुरुगन " कहा जाता है । यहॉ विश्व की सबसे पुरातन गुफायें हैं । ऐसा लगता है कि कालिदास ने जहॉ " कुमारसम्भव " लिखा , जिस गुफा में शिव और पार्वती का मिलन हुआ मानो यह , वही कन्दरा है । ये गुफायें साढे चार लाख साल पुरानी है । गुफा में जाने के लिए 250 सीढियों की खडी चढाई थी । हममें से कुछ ही लोग ऊपर चढे पर ऊपर की भव्यता देखकर , थकान मिट गई और मन ऊर्जा से भर गया । गुफा के नीचे , सीढियों के पास कुमार कार्त्तिकेय की विशाल प्रतिमा बनी हुई है । यह स्वर्णिम प्रतिमा अत्यन्त भव्य है ।

1/ 07 / 14
आज हम वाटर - वर्ड जा रहे हैं । आज हमें दिन भर पानी में रहना है । हम सब ने स्वीमिंग कॉस्ट्यूम पहन रखा है । होटल पर्ल से हमने अपना ब्रेकफॉस्ट लिया और ठीक 9 . 00 ए. एम. को अपनी गाडी में सवार होकर , हमने वाटर - वर्ड की ओर प्रस्थान किया । जल - क्रीडा की ऐसी अद्भुत दुनियॉ मैंने पहले कभी नहीं देखी थी । हम सब की अपनी - अपनी जोडी बन गई थी । मेरी और अनिता[ शिलॉंग] की जोडी बन गई । हमने अपने पूरे समय का लुत्फ उठाया और एक - एक मिनट का उपयोग किया । हम हर तरह की जल - क्रीडा में गए चाहे वह कितना भी खतरनाक क्यों न हो । इसी बीच हमने सागर रेस्टोरेण्ट में लँच भी किया । यह एक भारतीय रेस्टोरेण्ट था । लडके हमें समझा कर बताते थे कि हम अपने कूपन का उपयोग किस - किस तरह से कर सकते हैं । मैंने वहॉ इडली - सॉभर और चटनी खाई और फिर हम दोनों ने दो बार कॉफी भी पी ली । भीगते - भीगते हम दोनों ने वहॉ एक थ्री - डी पिक्चर भी देखी जो बहुत भयानक थी । अनिता और मैंने वहॉ बहुत फोटोग्राफी भी की । हम पूरे समय नाचते - गाते रहे । बहुत मज़ा आया । आखिर में हम पीछे के रास्ते रोप - वे से बाहर निकल गए । वह रास्ता सँकरा सा था और " लक्ष्मण - झूला " जैसे हिल रहा था और उसकी लम्बाई ," लक्ष्मण - झूले " से लगभग दुगुनी थी ।

बाहर निकल कर हम सब ग्रुप में फोटो खिंचवाए और फिर डिनर करने के पश्चात् अपने होटल पर्ल इन्टरनेशनल क्वाला लम्पुर में , अपने - अपने कमरे में लौट आए । मेरे कमरे का नम्बर था - 1619 और मेरी पार्टनर थी सुशीला ढाका , जो राजस्थान की है ।

2 / 07 / 14
अभी सुबह के दस बजे हैं । हम K. L.टॉवर से पूरे मलेशिया को निहार रहे हैं । इस टॉवर की ऊँचाई 421 मीटर है अभी - अभी हम एक चॉकलेट - फैक्ट्री में आए हैं । विविध तरह के चॉकलेट से पूरी दुकान सजी है । मेरे पास जो भी रिंगिट [ मलेशियाई - मुद्रा ] बची है , मैंने सबका चॉकलेट खरीद लिया है । आज हमें भारतीय दूतावास में भी आमन्त्रित किया गया है । कुल - गीत गाने का दायित्व मुझ पर है । मैं अन्य बहनों का साथ लेकर इस दायित्व का निर्वाह करती हूँ । आज हमें भारतीय दूतावास से स्वल्पाहार के पश्चात् , हमें सीधा क्वाला लम्पुर के हवाई - अड्डे में पहुँचना है और एयर - एशिया के विमान ए. के. - 63 से अपने भारत पहुँचना है । सचमुच - " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।"            

2 comments:

  1. रोचक रिपोर्ट -लारी जी से अरसा हुआ मुलाकात हुए!

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  2. सुन्दर यात्रा वृतांत पढ़ कर आनंद आ गया...

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