सुख से सना था शैशव मेरा चिन्ता से परिचय न था
वरद-हस्त था बडे-बडों का सुख सपना अतिशय न था।
अँजोरा भूरी शैलकुमारी प्यारी - प्यारी सखियॉ थीं
लडते - मिलते - इठलाते हम फूलझडी की लडियॉ थीं ।
जाने कब यह यौवन आया तितर-बितर कर गया हमें
सखियॉ प्यारी गॉव में रह गईं गॉव छोडना पडा हमें ।
हमें पढाए जो बचपन में गुरु - जन कितने अच्छे थे
प्रियाप्रसाद थे परसराम थे तिलकेश्वर भी सच्चे थे ।
बडे गुरु जी होरी - लाल थे सच - मुच में वे थे गुरुतर
पूरे गॉव में सम्मानित थे थे प्रणम्य वे गुरु घर - घर ।
लालटेन लेकर हम सब जाते थे उनके घर पढने
बडे प्रेम से हमें पढाते वह तो आए थे हमें गढने ।
अक्षर-अक्षर हमें पढाया गुरु है सचमुच भाग्य-विधाता
तमस हटा आलोक दिखाया गुरु ही तो है जीवन-दाता ।
छुआ - छुवौवल रेस - टीप भी गुरु सँग खेला करते थे
नया गडी और नया दाम के नेम भी गुरु पर चलते थे ।
कहॉ भूल पायेंगे हम उन खट्टी - मीठी स्मृतियों को
कुडिया पोखरी बँधवा अँधरी की खोई -खोई गलियों को ।
पावन - ठौर सिध्द बावा का अब भी बसा है इस मन में
गुडी में राम - कृष्ण लीला की मोहक स्मृति है जीवन में ।
ग्राम - देव "कोसला" नमन है तुझ में बसा है मेरा बचपन
आत्मोन्नति का मार्ग दिखाया जीवन यह कृतज्ञताज्ञापन।
वरद-हस्त था बडे-बडों का सुख सपना अतिशय न था।
अँजोरा भूरी शैलकुमारी प्यारी - प्यारी सखियॉ थीं
लडते - मिलते - इठलाते हम फूलझडी की लडियॉ थीं ।
जाने कब यह यौवन आया तितर-बितर कर गया हमें
सखियॉ प्यारी गॉव में रह गईं गॉव छोडना पडा हमें ।
हमें पढाए जो बचपन में गुरु - जन कितने अच्छे थे
प्रियाप्रसाद थे परसराम थे तिलकेश्वर भी सच्चे थे ।
बडे गुरु जी होरी - लाल थे सच - मुच में वे थे गुरुतर
पूरे गॉव में सम्मानित थे थे प्रणम्य वे गुरु घर - घर ।
लालटेन लेकर हम सब जाते थे उनके घर पढने
बडे प्रेम से हमें पढाते वह तो आए थे हमें गढने ।
अक्षर-अक्षर हमें पढाया गुरु है सचमुच भाग्य-विधाता
तमस हटा आलोक दिखाया गुरु ही तो है जीवन-दाता ।
छुआ - छुवौवल रेस - टीप भी गुरु सँग खेला करते थे
नया गडी और नया दाम के नेम भी गुरु पर चलते थे ।
कहॉ भूल पायेंगे हम उन खट्टी - मीठी स्मृतियों को
कुडिया पोखरी बँधवा अँधरी की खोई -खोई गलियों को ।
पावन - ठौर सिध्द बावा का अब भी बसा है इस मन में
गुडी में राम - कृष्ण लीला की मोहक स्मृति है जीवन में ।
ग्राम - देव "कोसला" नमन है तुझ में बसा है मेरा बचपन
आत्मोन्नति का मार्ग दिखाया जीवन यह कृतज्ञताज्ञापन।
बचपन के दिन भी क्या दिन थे..
ReplyDeleteगुरुकुल की यादें
ReplyDeleteबचपन की सुकोमल स्मृतियाँ !
ReplyDeleteकविता में होकर और लुभाएँ !
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...
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