Sunday, 10 May 2015

मातृ - दिवस के पावन पर्व पर - मॉ

" मॉ तुम अंधेरे में क्यों खा रही हो ? " चार बरस की सपना ने अपनी मॉ से पूछा ।
" ऐसे ही बेटा ! कोई खास बात नहीं है । जाओ तुम अपनी छोटी - बहन के साथ खेलो ।" सपना दौड -  कर अपनी छोटी - बहन भावना के पास चली गई । सपना के पापा एक ऑफिस में चपरासी हैं । उनकी तनख्वाह बहुत  कम है । आए दिन वे अपनी पत्नी को डॉटते रहते हैं कि - " दो - दो बेटियों को मैं पता नहीं कैसे पालूँगा ?"   इसी गम में उन्होंने पीना भी शुरु कर दिया है । देर - रात में चिल्लाते हुए घर आते हैं और फिर बेचारी पत्नी को वही उलाहना - " अपनी बेटियों को लेकर तुम कहीं चली जाओ । मुझे चैन से जीने दो । तुम लोगों को खिलाते - खिलाते मैं थक गया हूँ । अब और नहीं खिला सकता । तुरन्त निकल जाओ मेरे घर से । मुझे माफ करो , मेरा पीछा छोडो ।" कविता चुपचाप सुनती पर उफ नहीं करती । मॉ - बाप , भगवान को प्यारे हो गए हैं । एक छोटा - भाई है जो नौकरी की तलाश में दर - दर की ठोकरें खा रहा है । वह कहॉ जाए ? क्या करे ?

हम सब काम करते - करते थक - जाते हैं और थक - कर सो जाते हैं पर काल- चक्र कभी नहीं रुकता , वह निरन्तर चलता रहता है । एक - एक दिन कर - करके न जानें कितनी बरसात बीत चुकी है । सपना अब कॉलेज में पढती है । राकेश ने दूर शहर में अपना तबादला करवा लिया है । कई बरस हो गए , वह यहॉ नहीं आया है और न - ही कभी पैसे भेजता है । सपना की मॉ कविता डाक्टर मैम के यहॉ सुबह से शाम तक काम करती है । वह पास के दो घरों में बर्तन धोती है और झाडू - पोछा करती है , इस तरह कविता का घर चलता है । उसकी दोनों बेटियॉ पढने में होशियार हैं । सपना इन्जीनियरिंग कर रही है और भावना का रुझान अभी भरत - नाट्यम् की ओर है । वह संगीत और भरत - नाट्यम् सीख रही है । वह खैरागढ विश्वविद्यालय में पढाई कर रही है । बारहवीं के बाद दोनों बच्चे अपने स्कॉलर - शिप से ग्रेजुएशन कर रही हैं । अभी दीवाली की छुट्टी में दोनों बहन मॉ के पास आई हुई हैं । मॉ , आज - कल बच्चों के पसन्द की चीजें रोज - रोज बनाती है और उनको जी भर - कर खिलाती है ।

रात के नौ बजे है । बच्चे अपनी पढाई कर रहे थे । अचानक भावना मॉ के पास गई और अंधेरा देख - कर वापस लौट आई । उसने अपनी दीदी से पूछा - " दीदी ! मॉ कहॉ है ? " दोनों ने जोर - जोर से आवाज दी - " मॉ - मॉ तुम कहॉ हो ? "
"मैं यहीं हूँ बेटा ! मैं खाना - खा रही हूँ ।"
" अच्छा रहने दे - रहने दे भावना , मॉ को अंधेरे में खाने की आदत है " सपना ने कहा ।
"नहीं दीदी ! " कहते हुए भावना ने लाइट जला दी ।
दोनों लडकियों के पैरों - तले जमीन खिसक गई । उन्होंने देखा - मॉ की प्लेट में सूखा - चावल था जिसे वह हरी मिर्ची और नमक के साथ खा रही थी ।       

3 comments:

  1. शायद हरेक माँ की कहानी. लड़कियों के पैदा होने का दोष और पति का तिरस्कार सहते हुए केवल बच्चों के सुखद भविष्य के लिए सभी दुःख सहना केवल एक माँ ही कर सकती है. बहुत मर्मस्पर्शी और प्रभावी कहानी..नमन मातृत्व को...

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  2. करुणा भरी दास्ताँ..

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  3. केवल सहन करना अपनी नियति न बना कर ,अन्याय का प्रतिरोध करना भी आ जाए तो पति का व्यवहार सुधर सकता है .

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