हिन्दुस्तान - बहुत - सुन्दर है पर सुन्दर है हैदराबाद
हैदराबाद में घूम रही थी एक - घटना मुझको है याद ।
मुझको मोती खरीदना था थी चारमीनार के पास दुकान
मोती - पिरो रही थी लडकी पर देख - रही थी मैं हैरान ।
उसके दोनों - हाथ नहीं थे पॉवों से वह करती थी काम
जल्दी - जल्दी पिरो रही थी निपटाती थी काम - तमाम ।
कई - मोतियों की मालायें मैंने - मन से मोल - लिया
भाव नहीं कम - करवाए थे सबका वाज़िब दाम - दिया ।
मन था एक - बार लडकी से बात करूँ मैं अपने - आप
पर परेशान न कर दे मालिक़ इस डर से लौटी - चुपचाप ।
छोटी सी चोट से हम - चिल्लाते लेते नहीं धैर्य से काम
कुछ भी काम नहीं कर पाते करते हैं दिन - भर आराम ।
पर बिना - हाथ की होकर भी वह पैरों से करती है काम
जिजीविषा उसकी प्रणम्य है करती हूँ मैं उसे प्रणाम ।
हम सबका दायित्व यही है हम - सब इनके काम आयें
सुख - साधन उन तक पहुँचायें उनसे जुडकर हाथ बँटायें ।
मन में हाहाकार मचा है जब से उससे मिल - कर आई हूँ
सम् - भाषण भी हुआ नहीं है मैं बहुत - बहुत पछताई हूँ ।
हैदराबाद में घूम रही थी एक - घटना मुझको है याद ।
मुझको मोती खरीदना था थी चारमीनार के पास दुकान
मोती - पिरो रही थी लडकी पर देख - रही थी मैं हैरान ।
उसके दोनों - हाथ नहीं थे पॉवों से वह करती थी काम
जल्दी - जल्दी पिरो रही थी निपटाती थी काम - तमाम ।
कई - मोतियों की मालायें मैंने - मन से मोल - लिया
भाव नहीं कम - करवाए थे सबका वाज़िब दाम - दिया ।
मन था एक - बार लडकी से बात करूँ मैं अपने - आप
पर परेशान न कर दे मालिक़ इस डर से लौटी - चुपचाप ।
छोटी सी चोट से हम - चिल्लाते लेते नहीं धैर्य से काम
कुछ भी काम नहीं कर पाते करते हैं दिन - भर आराम ।
पर बिना - हाथ की होकर भी वह पैरों से करती है काम
जिजीविषा उसकी प्रणम्य है करती हूँ मैं उसे प्रणाम ।
हम सबका दायित्व यही है हम - सब इनके काम आयें
सुख - साधन उन तक पहुँचायें उनसे जुडकर हाथ बँटायें ।
मन में हाहाकार मचा है जब से उससे मिल - कर आई हूँ
सम् - भाषण भी हुआ नहीं है मैं बहुत - बहुत पछताई हूँ ।
प्रेरक पंक्तियाँ
ReplyDeleteनमन इस ज़ज्बे को...प्रेरक श्रंखला के लिए आभार...
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