Tuesday, 19 May 2015

हिन्दुस्तान बहुत सुन्दर है

हिन्दुस्तान  - बहुत - सुन्दर  है  पर  सुन्दर  है  हैदराबाद
हैदराबाद  में  घूम  रही  थी  एक - घटना  मुझको है याद ।

मुझको मोती खरीदना था थी चारमीनार के पास दुकान
मोती - पिरो  रही  थी लडकी  पर देख - रही थी मैं हैरान ।

उसके  दोनों - हाथ  नहीं  थे पॉवों से वह करती थी काम
जल्दी - जल्दी पिरो रही थी निपटाती थी काम - तमाम ।

कई - मोतियों  की  मालायें  मैंने -  मन  से मोल - लिया
भाव  नहीं  कम - करवाए  थे सबका वाज़िब दाम - दिया ।

मन था एक - बार  लडकी  से  बात  करूँ मैं अपने - आप
पर परेशान न कर दे मालिक़  इस डर से लौटी - चुपचाप ।

छोटी सी चोट से हम - चिल्लाते लेते  नहीं  धैर्य से काम
कुछ  भी  काम  नहीं कर पाते करते हैं दिन - भर आराम ।

पर  बिना - हाथ  की होकर भी वह पैरों से करती है काम
जिजीविषा  उसकी  प्रणम्य  है  करती  हूँ  मैं उसे प्रणाम ।

हम सबका दायित्व यही  है  हम - सब इनके काम आयें
सुख - साधन उन तक पहुँचायें उनसे जुडकर हाथ बँटायें ।

मन में हाहाकार मचा है जब से उससे मिल - कर आई हूँ
सम्  - भाषण भी हुआ नहीं है मैं बहुत - बहुत पछताई हूँ ।


2 comments:

  1. प्रेरक पंक्तियाँ

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  2. नमन इस ज़ज्बे को...प्रेरक श्रंखला के लिए आभार...

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