विद्यानिधि से श्रेष्ठ कुछ नहीं
इससे परे नहीं है सुख ।
विद्या से ही संभव होता
सत्य सनातन संतति सुख ।
ऋग्वेद
ऋग्वेद सदृश हो उत्तम वाणी
यजुर्वेद सम उज्ज्वल मन ।
सामवेद सम प्राण हो प्रांजल
अथर्ववेद सम हो यह तन ।
यजुर्वेद
मेध दामिनी जल बरसाते
वे ही अन्न हमें देते हैं ।
यज्ञ हवन प्रतिदिन करके हम
इनको ही भोजन देते हैं ।
सामवेद
रहें सूर्यसम नित आलोकित ।
चतुर्शक्तियॉं वर्धित होतीं
प्रसन्नचित हम रहें प्रतिष्ठित ।
अथर्ववेद
शकुन्तला शर्मा
288/7 मैत्रीकुंज
भिलाई छ.ग.
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